मंगलवार, 1 नवंबर 2016

आपातकाल के जिंदा शहीद भाजपा की सरकार में कीड़े मकोड़े पशु समान:


लोकतंत्र की रक्षा करने वाले सेनानियों की कुर्बानियों पर सत्ता में आई भाजपा के मंत्री करते तिरस्कार:
सरदार पटेल की जयंती 31 अक्टूबर पर विशेष लेख-

करणीदानसिंह राजपूत=

आपातकाल के अत्याचारों को झेलते हुए जिन लोगों ने स्वतंत्रता व लोकतंत्र की रक्षा में अपना सब कुछ न्यौछावर कर देने की मंशा लेकर अत्याचारी कांग्रेस की इंदिरा सरकार का मुकाबला किया। वे लोग जेलों में बंद रहे और उनके परिवार भी यात्नाएं झेलते रहे।उन लोकतंत्र सेनानियों में अब चंद लोग जीवित बचे हैं। राजस्थान में आपातकाल के जिंदा शहीदों की यह संख्या अब पांच सौ भी नहीं है। इन जीवित शहीदों में अनेक लोगों की उम्र 80 से 90 वर्ष के करीब है। वैसे भी साठ की आयु पार करने के बाद कोई काम करने वाली उम्र नहीं रहती लेकिन अनेक इस उम्र में अपने जीवन यापन के लिए मजदूरी चौकीदारी जैसे कार्य करने को मजबूर हैं। इस मेहनत में भी दो हजार से तीन हजार रूपए तक की मजदूरी मिल पाती है जिसमें पेट भरने को आटा ले पाते हैं और इसी रकम में वृद्धावस्था की रोज रोज की स्थाई बिमारियों का ईलाज कर पाते हैं। चाहे कैसी भी दुरावस्था हो इन लोकतंत्र के जीवित शहीदों से मरा भी नहीं जाता।
सन् 1975 के आपातकाल में अपनी कुर्बानियां देने वाले लोकतंत्र सेनानियों व लोकतंत्र शहीदों के कारण ही राज में आए लोग आज आपातकाल के जीवित लाशों के रूप लिए शहीदों का तिरस्कार करते हुए जरा भी शर्म नहीं करते।
राजस्थान की भाजपा सरकार ने आपातकाल में रासुका व मीसा बंदी रहे लोगों को पेंशन व ईलाज सुविधा के प्रतिमाह पेंशन के 13 हजार 200 रूपए देने शुरू किए। आपातकाल में शांतिभंग में पकड़े गए लोगों को भी जेलों में बंद कर दिया गया था व सजाएं दी गई थी। उनके घर परिवार भी अत्याचार सहने वालों में थे व बरबाद हुए थे। वसुंधरा राजे की सरकार ने उनक लिए पेंशन के नियम नहीं बनाए। या तो किसी को भी पेंशन नहीं दी जाती और दी जाने लगी तो शांतिभंग में बंदी रहे इन जीवित शहीदों को टालना नहीं था। सरकार पर खर्च का कोई भार नहीं होता। सरकार करोड़ों रूपए अनेक कार्यक्रमों में लगाती है।
लेकिन इन जीवित शहीदों ने जब जब सरकार से पेंशन के लिए आवेदन किया या समूह के रूप में मिले तब तब तिरस्कार झेलना पड़ा।  राजस्थान में अब आपातकाल के जीवित शहीद बचे हैं उनकी संख्या पांच सौ भी नहीं है। सरकार चाहे तो गृहमंत्रालय दो चार दिनों में ही संपूर्ण आंकड़े प्राप्त कर सकता है।
मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने शांतिभंग में बंदी रहे कार्यकर्ताओं को भी पेंशन दिए जाने बाबत एक प्रावधान तैयार करवाया था वह रिपोर्ट फाईल राजे के पास पड़े हुए दो साल होने वाले हैं। उस पर निर्णय नहीं किया जा रहा है।
आपातकाल में शांतिभंग में जेलों में बंदी रहे देशभक्त प्रतिफल व तोहफे के रूप में पेंशन मांगते तो 1977-78 में जनता पार्टी राज में ही मांग लेते। आप विचार करें कि आज कई लोग 80-90 आयु के हो चुके हैं और काम कर नहीं सकते। क्या उनके घरों में दो वक्त की रोटी भी नहीं होनी चाहिए?
आज चपरासी का वेतन उस पेंशन से अधिक है जो आपातकाल वालों को मिल रही है। इस देश में मंत्रियों सांसदों विधायकों को प्रतिमाह लाखों रूपए वेतन मिलना चाहिए और उनको कई कई हजार रूपए पेंशन भी मिलनी चाहिए। सरकारी कर्मचारियों अधिकारियों को अच्छा खासा वेतन और तीस चालीस हजार रूपए पेंशन मिलनी चाहिए। मिल ही रही है। चाहे जब वेतन भत्ते बढ़ाते रहते हैं।
आपातकाल के बदियों की पेंशन तो चपरासी के वेतन से भी कम है कुल प्रतिमाह 13,200 है। उस पर भी एतराज है। देश भक्ति के प्रतिफल शब्द का उपयोग ही गलत है और तोहफा शब्द और ज्यादा गलत। क्या सरकार को अपनी तरफ से ही उनके शेष जीवन के बारे में नहीं सोचना चाहिए? अनेक लोग संसार छोड़ गए और उनकी पत्नियां 60 से अधिक आयु में है,उनके बारे में सोचा है?स्वतंत्रता सेनानियों को पेंशन आदि दी जाने लगी तो क्या वह प्रतिफल व तोहफे में दी जा रही है?
अब आगे बात रह गई सम्मान की तो कभी सोचा कि जिन लोगों ने सब कुछ दांव पर लगा दिया कभी उनको भी याद किया जाए?
आपातकाल में शांतिभंग में जेलों में बंद रहे बचे हुए इन जीवित शहीदों की कुर्बानियों को कम नहीं समझना चाहिए व इनकी पेंशन तुरंत शुरू किए जाने के लिए कानून बनाया जाना चाहिए।
शांतिभंग में बंदी रहे लोग जब जब मंत्रियों से मिले हैं तब तब उनको तिरस्कार मिला है। जिनकी कुर्बानियों के कारण आज राज भोगने वालों को असल में राज का तोहफा मिला हुआ है और वे इस राज में खोए सद् आचरण करना भी भूल गए।
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-करणीदानसिंह राजपूत,
पत्रकार,
सूरतगढ़
94143 81356.

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