शनिवार, 7 नवंबर 2015

गुरूशरण छाबड़ा ने अपनी देह को राख नहीं बनने दिया:



ऐसा गमन तो संतों का भी नहीं हो पाता:
- करणीदानसिंह राजपूत -
गुरूशरण छाबड़ा की सोच दूरदर्शी रही और वे एक व्यक्ति के रूप में संसार से नहीं गए बल्कि संत के रूप में गए और अपनी देह को राख नहीं बनने दिया। उसी काया जो मिट्टी में मिल जाने वाली थी से अब न जाने कब तक चिकित्सा विज्ञान की छात्र छात्राएं अध्ययन करते रहेंगे। यह उनका अमूल्य दान इतिहास में याद रखा जाएगा। इसकी घोषणा पूर्व में ही कर चुके थे। उनकी नजरें सदा गरीबों की पीड़ाओं पर रही।
वे सोचा करते थे कि शराब और भ्रष्टाचार के शिकार गरीब दलित अनुसूचित जाति के पिछड़े कच्ची बस्ती और ग्रामों के लोग होते हैं। शराब और भ्रष्टाचार दोनों खत्म हो जाएं तो गरीब का उद्धार हो जाए। उनको मालूम था कि इन दोनों मुद्दों की लड़ाई बड़ी कठिन है तथा शराब बंदी को लेकर राजस्थान और देश में न जाने कितने लोग लड़ते लड़ते चले गए। भ्रष्टाचार के विरूद्ध अण्णा हजारे का आँदोलन उनके दिल और दिमाग में था। उनको मालूम था कि उनकी माँगे राजस्थान में संपूर्ण शराब बंदी और सशक्त लोकपाल की वास्ते आगे लोग बीड़ा उठाते रहेंगे। संपूर्ण शराबबंदी का मतलब था कि राजस्थान में शराब न बनेगी,न बिकेगी और न किसी अन्य राज्य से आऐगी। उनका स्पष्ट कहना था कि जब गुजरात सरकार शराब की आय के बिना चलाई जा सकती है तब राजस्थान की सरकार क्यों नहीं चलाई जा सकती?
सरकार सदा एक ही बहाना कहती रही है कि जब शराब बंद कर दी जाती है तब चोरी छुपे पी जाती है और तस्करी करके लाई जाती है। सरकार को आय नहीं होती मगर तस्करी करने वाले मालामाल होते जाते हैं।
मेरा यह कहना है कि चोरी से और ऊंची कीमत से हर आदमी नहीं पी पाता। सरकार के पास शक्ति है वह तस्करी को पावरफुल तरीके से रोकने में कामयाब हो सकती है। एक और बिंदु है कि 100 में से 10 व्यक्ति शराब पीते हैं और उन 10 लोगों के लिए 90 अन्य सामान्य लोगों को बरबाद किया जाता है। हाँ सौ में से नब्बे पीने वाले होते तो सरकार का तर्क कुछ हद तक चल सकता था। सभी मानते हैं कि अपराधों की जननी शराब है और अपराधों की रोकथाम व अपराधियों को पकडऩे और उनको न्यायालय तक पहुंचाने में करोड़ों रूपए लग जाते हैं। अपराधों की रोकथाम के लिए व्यवस्था अलग से चलती है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पंजाब के युवकों के नशे की ओर बढ़ते जाने पर गंभीर चिंता व्यक्त की थी। पंजाब के लिए चिंता है तब राजस्थान के लिए यह चिंता क्यों नहीं है?
महात्मा गांधी के नाम पर राज करते हैं लेकिन महात्मा गांधी तो शराब की बुराई के विरूद्ध थे। उनका नाम लेकर चलाई जा रही लोकतांत्रिक सरकारों को तो यह समाज विरोधी कार्य नहीं करना चाहिए। गांधी जी की तरह ही सत्याग्रह के मार्ग पर चलते हुए गुरूशरण छाबड़ा ने आमरण अनशन का कदम उठाया था और राजस्थान की भाजपा की वसुंधरा राजे सरकार ने उनसे बात तक नहीं की। वसुंधरा स्वयं उनके पास चली जाती तो कुछ मान घटने वाला नहीं था। इतिहास में यह तथ्य भी साथ में लिखा हुआ रहेगा।
वसुंधरा राजे और उनके मंत्रियों का कहना कि आबकारी आय के बिना सरकार नहीं चलाई जा सकती। लेकिन यह सरकार कोई स्थाई नहीं है और यह भी जाएगी ही चाहे शराब बेच कर चलाएं चाहे इससे भी घटिया घिनौने कार्य शुरू करके दिन निकाल लें। 

एक दिन वह आएगा ही कि वसुंधरा राजे के सिर पर ताज नहीं रहेगा।


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