भाजपा में बढ़ती संस्कार हीनता. कोई उत्तर है?
* करणीदानसिंह राजपूत *
राष्ट्र को सर्वोपरि मानने वाले संस्कारित होने का दावा करने वाले भाजपा नेता और पार्टी चुनाव ही नहीं संगठन पदों पर एकमत नहीं हो रहे। संघ में भी यही स्थिति है कि एक राय नहीं अलग अलग व्यक्तियों की सिफारिशें होती हैं।
* चुनाव समय में और संगठन पदाधिकारी चयन में ये एक दूसरे के दुश्मन दिखते ही नहीं, दुश्मन बन जाते हैं। सारे संस्कार भूल जाते हैं। भाजपा का अपना पार्टी का संविधान भूल जाते हैं। यत्र तत्र और चौराहों तक पर एक दूसरे की आलोचना भद्दे से भद्दे शब्दों से करने से नहीं चूकते। एक दूजे की छवि खराब करने में दिन रात हर समय लगे रहकर गंदी से गंदी बातें सच्ची झूठी फैलाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ते। * कोई पद मिल जाए तो उसके चिपक जाते हैं और अवधि और उम्र के बाद भी उसे छोड़ना नहीं चाहते। उम्र और अवधि अन्य के लिए बड़े नियम भुला देते हैं। यहां पर स्पष्ट रूप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का नाम लिया जा सकता है जो 75 वर्ष आयु में हटना नहीं चाहते जबकि दूसरों के लिए यह नियम लागू किया गया। नियम लागू करने वालों में स्वयं नरेंद्र मोदी भी हैं। राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी.नड्डा जो अध्यक्ष का कार्यकाल पूरा होने के बाद अवधि विस्तार का आनंद ले रहे हैं।
* यहां जो प्रश्न है। वह यह है कि संस्कारों को कैसे भूल जाते हैं। जब छोटे से छोटे पदों पर ही एकमत एकराय नहीं हो सकते तो 'हम एक हैं' तो कह ही नहीं सकते।
11 जनवरी 2025.
* करणीदानसिंह राजपूत,
पत्रकारिता 61 वर्ष,
सूरतगढ़ ( राजस्थान)
94143 81356.
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