सोमवार, 24 मई 2021

👌 व्यापारी दुकानदार चतुर हैं। व्यंग्य- करणीदानसिंह राजपूत


उनके हाथ हैं मुंह हैं।

 सरकार को अधिकारियों को लिख कर दे सकते हैं। 

मुंह है जिससे बोल कर सत्ता को कह सकते हैं। 

अपने पास के विधायक सांसद को कह सकते हैं। 

मगर लिखते नहीं कहते भी नहीं।


क्यों नहीं लिखते क्यों नहीं बोलते?

लिखने बोलने में अपना कुछ खर्च ना हो जाए। 

दूसरे लिखें। दूसरे ही बोलें। 

अब उनको समझाएं कि लिखने बोलने से कुछ खर्च नहीं है, लिखो बोलो।


👌 क्या मजाक करते हो। ऐसा कभी हुआ है कि खर्च नहीं हो। खर्च तो होता ही है।आज के जमाने में मुफ्त कुछ भी नहीं।


 हम नहीं लिखते हम नहीं कहते।

 खर्च तो होता ही है, शायद मालुम नहीं पड़ता हो। 

ऐसे भोले नहीं कि आप के कहे अनुसार करने लग जाएं।


चलो,मान लें कि आपके लिखने बोलने से कुछ खर्च हो जाता है जो आप नहीं करना चाहते।

 फिर ऐसा करो कि जो दुसरे लिखते हैं,उसको फार्वर्ड कर दिया करो। 


अरे वाह!

आपने क्या समझा है? 

हमारे दिमाग है। 

आप फार्वर्ड कराना चाहते हैं। 

फार्वर्ड भी कोई मुफ्त में नहीं होता।

 उसमें भी खर्च होता है।

आप ये सारी सीखें कितनी भी घुमा फिरा कर बताओ। 

हम इन पर चलने वाले नहीं।

आप भी बस! 

इतना समय बरबाद किया।

 कुछ और कर लेते।

और क्या कर लेते?


बाजार में तो  लॉकडाउन लग गया?


( व्यापारियों दुकानदारों की चतुरता को समर्पित)


दि. 24 मई  2021.


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करणीदानसिंह राजपूत,

पत्रकार,

सूरतगढ़.

94143 81356.

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