मंगलवार, 11 अगस्त 2020

👌 सास और बहू * काव्य- करणीदानसिंह राजपूत.


बहू ने ससुराल को सराहा
सास ने बहु को भला और
बहु ने सास को भला बताया।

बहु अपनी मां को भूली
सास अपनी बेटी को भूली
पीहर भी खुश ससुराल भी खुश।

बहु पीहर जाए तो
सास की आंखें भर आए
सास को हो सर दर्द तब
बहु का चैन खो जाए।

हमारी सोच के विपरीत हैं
ये मधुर संबंध
हमने वर्षों से टकराव ही सोचा
अब जुड़ाव है तो कैसे सुहाए
सास बहू का मां बेटी सा यह संबंध।

अड़ोस पड़ोस में हलचल हुई
कुछ बहुएं कुछ सासूएं
अलग खोजने लगी।

पूरे मोहल्ले में सास बहू
एक दूजे को विष पिलाए तो
एक घर में प्रेमकी 

वर्षा क्यों सुहाय?
अड़ोस पड़ोस में झूठ 
फैलाई जाने लगी
सास ने बहू को पाबंद कर रखा है
बहू ने सास को तंग कर रखा है।

अफवाहें किसी का 
भला नहीं कर सकती
न इस घर का 
न उस घर का।

सासुओं ने मिल कर
उस सास को पटाया
बहु पर  कुछ नियंत्रण लगवाया।

बहुओं ने मिल कर 

उस बहु को सिखाया
बहु ने सास को डायन बताया।


सास बहू के बीच होने लगी तकरार
कभी दिन में कभी रात में 
कभी कमरे में कभी बाहर
अड़ोस पड़ोस में
दूर तक आने लगी आवाजें।


मोहल्ले की सांसुएं खुश
मोहल्ले की बहुएं भी खुश
सभी ने अपना अपना 

मोर्चा फतह किया।

नया बगीचा सींचना था मीठे जल से

उसमें खारा कड़वा पानी उड़ेल दिया
खारे पानी से फूल नहीं मुस्काते
खारे पानी से तो सूखते हैं बगीचे।


सास बहू पास बैठ भोजन करती थी
अड़ोस पड़ोस ने उनको दुश्मन बना डाला।
सास बहु के बीच झगडे़ का
क्या खेल रचा डाला।


एक दिन भड़काऊ खेल खत्म हुआ
अड़ोस पड़ोस की बहुओं और 

सासुओं में एकता भंग हो गई।

उनमें तू तू मैं मैं शुरू हो गई 

तब भेद खुला
सास बहु में झगड़ा किसने करवाया?


सास ने बहू को और बहू ने सास को निहारा
बहू ने पुकारा मां मेरी प्यारी मां
सास ने पुकारा बेटी मेरी प्यारी बेटी।


सास बहु दोनों की आंखें नम हो गई
दोनों एक दूसरे के गले मिल गई
बहू ने फिर सास को सराहा
सास ने फिर बहू को गुणवान बताया।


हमारी सोच के विपरीत सास बहु में प्रेम संबंध फिर कायम हो गए
टकराव  खत्म हुआ
दोनों में मजबूत जुड़ाव हो गया।


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यह कविता  करीब  सन 2000-5 के बीच में लिखी गई थी। यह आकाशवाणी के सूरतगढ़ केन्द्र से प्रसारित हुई थी।**
करणीदानसिंह राजपूत
स्वतंत्र पत्रकार,
सूरतगढ़।
94143 81356.
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