गुरुवार, 30 नवंबर 2017

सूरतगढ़ सीवरेज में करोड़ों के घोटाले- कांग्रेस की पत्रकारवार्ता

सूरतगढ़ 30 नवंबर 2017.

सूरतगढ़ शहर में सीवरेज निर्माण में भारी घोटाला और तकनीकी आधार पर निर्माण नहीं होने का आरोप लगाया  गया है कि स्थानीय अमित शाह सब करवा रहा है।

कांग्रेस के जिला उपाध्यक्ष गुरदर्शनसिंह सोढी और नगरपालिका बोर्ड सूरतगढ़ के पूर्व अध्यक्ष बनवारी लाल मेघवाल ने आरोप लगाया कि सीवरेज सिस्टम पूरे शहर का था जिसे सूर्योदय नगरी की 11 वार्डों को छोड़कर बाकी के 24 वार्डों में निर्माण शुरू करवाया गया। यह निर्माण भी तकनीकी आधार पर नहीं हो रहा है। मुख्य ठेकेदार कंपनी मोंटी कार्लो का कोई प्रतिनिधि इंजीनियर आदि नगर पालिका का इंजीनियर आदि मौके पर उपस्थित नहीं हो रहा और बिना किसी लेवल के यह कार्य हो रहा है।जहां सीमेंट के पाइप लगाए जाने चाहिए थे वहां पर प्लास्टिक के पाइप लगा दिए गए हैं।

पूर्व पालिकाध्यक्ष बनवारी लाल ने कहा  कि बड़े घोटाले में सूरतगढ़ के अमित शाह कमाई करने में लगे हैं इसलिए कोई  रोक टोक व देखरेख नहीं की जा रही है।

 नगर पालिका अध्यक्ष के पति का नाम लेते हुए भी उन्होंने कई आरोप लगाए।

पूर्व पालिकाध्यक्ष ने कहा कि सीवरेज सिस्टम 35 वार्डों का संपूर्ण शहर का बनाया गया था लेकिन बाद में सब बदल दिया गया। अब आधे शहर को ही शामिल किया गया है  व सूर्योदय नगरी के 11 वार्डों को छोड़ दिया गया है। आधे शहर में निर्माण मगर लागत करोड़ों की बढ़ती गई। एस्टीमेट के हिसाब से इसकी लागत करोड़ों रुपए में बढ़ गई है जो बहुत बड़ा घोटाला है।

 इसमें पूरे शहर की सड़कें एक साथ खोद डाली गई जबकि यह निर्माण एक एक ब्लॉक में अलग-अलग किया जाना चाहिए था। उन्होंने कहा कि सीवरेज का ट्रीटमेंट प्लांट का भी मापदंड बदल दिया गया है तथा अरोड़वंश कल्याण भूमि के पास का ट्रीटमेंट प्लांट 6 एमएलडी से घटाकर 4 एमएलडी कर दिया गया।

कांग्रेस के जिला उपाध्यक्ष गुरदर्शन सिंह सोढ़ी ने कहा कि नगर पालिका से सीवरेज की जी शेडूल एस्टीमेट व ड्राइंग की प्रमाणित प्रतिलिपियां सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई है।यह सब कुछ रिकॉर्ड 15 नवंबर को सूचना के अधिकार के तहत मांगा गया है, 15 दिन बीत जाने के बावजूद उपलब्ध नहीं कराया गया। यह रिकॉर्ड तो पालिका में हर वक्त ही उपलब्ध रहता है।

कांग्रेस पार्टी इसके लिए 1 दिसंबर को सुभाष चौक पर धरना लगाएगी। 

धरने के समय घोटाले के बाबत तथ्यों को आम नागरिकों के सामने उजागर किया जाएगा। सोढ़ी ने कहा की धरना स्थल पर आंदोलन की रूपरेखा के बारे में भी बताया जाएगा। 

उन्होंने कहा कि उपखंड अधिकारी ने भी जल्दी से जल्दी सूचनाएं उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था लेकिन नगर पालिका प्रशासन इतने दिन के बावजूद सूचनाएं नहीं दे रहा जिसका स्पष्ट मतलब निकलता है कि निर्माण में बहुत बड़ा घोटाला हो रहा है।

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भारतीय रेलवे में आज भी अंग्रेज दिमाग प्रशासन-रेलों को बंद करना तानाशाही

रेलों को तानाशाही तरीके से बंद करने की घोषणाओं के बाद यह प्रश्र पैदा हुआ है?

ऐसा लगता है कि ये आदेश भारतीय रेल विभाग की ओर से जारी नहीं हुए बल्कि अंग्रेजी शासन के रेल विभाग ने भारतीयों के लिए जारी किए हैं।


करणीदानसिंह राजपूत


श्रीगंगानगर जिला मुख्यालय से 1 दिसंबर 2017 से 13 फरवरी 2018 तक कुछ दूरस्त रेलगाड़ियों को कोहरे काम हवाला देते हुए रोक  दिया गया है। 

3 दिसंबर 2011 को मैंने एक सामयिक लेख लिखा था। उस  हालत में मामूली सा बदलाव नहीं हो पाया। इलाके के जनप्रतिनिधि केवल सीएम पीएम की आरती करने के अलावा कुछ करते नजर नहीं आते।

पूर्व में लिखे विचार प्रस्तुत हैं।


राजस्थान जिले श्रीगंगानगर से हरिद्वार और इंटरसिटी और दिल्ली आवागमन की आभा तूफान रेलों को धुंध के कारण बंद करने का रेलवे विभाग का आदेश इस वर्ष भी जारी हो गया है जिसका विरोध हो रहा है। जनता के विरोध को रेल विभाग हर साल अनसुना करता है, इसलिए इस बार भी वहीं करेगा। रेलों को तानाशाही तरीके से बंद करने की घोषणाओं के बाद यह प्रश्र पैदा हुआ है, कि रेलें जनता की सुख सुविधा से यात्रा करने के लिए है या जनता रेल विभाग की सुख सुविधा के लिए है? यह प्रश्र मैं जनता के बीच में तथा राजनैतिक व सामाजिक संगठनों के बीच में इसलिए रख रहा हूं कि आजतक इस मूल महत्वपूर्ण प्रश्र पर मंथन नहीं हुआ और ऐसा सोचते हुए कोई कार्यवाही नहीं हुई। हर साल रेल विभाग बिना किसी से विचार विमर्श किए तानाशाही तरीके से आदेश जारी कर देता है। ये आदेश रेल विभाग के चंद अधिकारियों कील सोच पर आधारित होते हैं।

ऐसा लगता है कि ये आदेश भारतीय रेल विभाग की ओर से जारी नहीं हुए बल्कि अंग्रेजी शासन के रेल विभाग ने भारतीयों के लिए जारी किए हैं। इन आदेशों से रेलें बंद कर दिए जाने के बाद आम जनता किन साधनों से यात्रा करेगी और वह कितनी महंगी होगी? यह सोचना इन अग्रेजों  के लिए जरूरी नहीं है। हमारे प्रशासनिक अधिकारियों की सोच आज भी नहीं बदली। वे लोकतांत्रिक भारत के होते हुए नहीं सोचते। इन अधिकारियों की सोच बदलने की कार्यवाही हमारे चुने हुए जनप्रतिनिधि भी नहीं करते। जन प्रतिनिधियों की राय लेना तक रेल अधिकारी उचित नहीं मानते। इसलिए रेलवे के अधिकारियों को उस स्तर तक मजबूर किया जाना चाहिए कि वे जब भी कभी रेलों के बारे में निर्णय करें तो उससे पहले जन प्रतिनिधियों व उस इलाके की जनता और संगठनों से राय जरूर करे।

रेल विभाग के एक तरफा आदेश निरस्त होने चाहिए और इन रेलों का संचालन पूर्व की भांति शुरू होना चाहिए।

करणीदानसिंह राजपूत

राजस्थान सरकार द्वारा अधिस्वीकृत स्वतंत्र पत्रकार,

मोबा. 94143 81356

दिनांक- 3 दिसम्बर 2011.

बुधवार, 29 नवंबर 2017

बसपा कार्यकर्ता सम्मेलन जयपुर में सूरतगढ़ कार्यकर्ता जाएंगे-

बहुजन समाज पार्टी के 1 दिसंबर 2017 को रामलीला मैदान जयपुर में होने वाले राज्य स्तरीय कार्यकर्ता महा सम्मेलन में भाग लेने के लिए सूरतगढ़ विधानसभा क्षेत्र से सैंकड़ों कार्यकर्ता 30 नवंबर को श्री गंगानगर - कोटा ट्रेन से सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए  जिला परिषद सदस्य डूंगरराम  गेदर  के नेतृत्व में  रवाना होंगे। गेदर ने बताया की भाजपा की केंद्र एवं राज्य सरकारों की  किसान एवं मध्यम वर्गीय विरोधी, सांप्रदायिक व पूंजीवादी नीतियों के खिलाफ होने वाले इस सम्मेलन में  मुख्य अतिथि उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री एवं बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्षा बहन कुमारी मायावती होंगी। सम्मेलन में कार्यकर्ताओं को ले जाने के लिए बसपा नेता श्रवण सिंगाठिया , नगर अध्यक्ष पवन सोनी , विधानसभा अध्यक्ष इंद्राज मेघवाल, लक्ष्मणम टाक ,रवि कडेला, हनुमान मेघवाल,  पृथ्वी खुडियाल, सुखराम नायक के नेतृत्व में  सेक्टर के पदाधिकारियों से संपर्क कर सूची तैयार की जा रही है।



 

गुरु जंभेश्वर महाविद्यालय रावतसर में राजस्थानी विषय खुलवाने की मांग

 

रावतसर :

गुरु जंभेश्वर पीजी महाविद्यालय में आगामी सत्र 2018 में राजस्थानी साहित्य विषय बीए स्नातक में शुरू करवाने के लिए निदेशक ओम प्रकाश सिहाग,इंद्राज वर्मा प्राचार्य गुरु जंभेश्वर बीएड महाविद्यालय,रूबी वर्मा प्राचार्य गुरु जंभेश्वर डिग्री कॉलेज से प्रतिनिधि मंडल मिला।इस अवसर पर व्याख्याता विनोद कुमार,पवन गुरिया, जयसिंह,राजबाला,मनीष,अनिल कुमार,इंद्र सिंह सहित महाविद्यालय स्टाफ़ उपस्थित था।

गौरतलब है कि कॉलेज शिक्षा आयुक्तालय,जयपुर द्वारा नए विषय स्वीकृत किए जा रहे हैं।राजस्थानी छात्र मोर्चा राजस्थान में राजस्थानी साहित्य विषय खुलवाने का अभियान चला रहा है जिसके तहत मायड़ भाषा राजस्थानी छात्र मोर्चा,रावतसर इकाई के तहसील संयोजक सूरजमल राठौर के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल ने ज्ञापन सौंपा।प्रतिनिधिमंडल में सूरजमल राठौड़,तहसील संयोजक राजस्थानी छात्र मोर्चा रावतसर सुनील कुमार,राज कुमार, सुभाष,रविंद्र कुमार,संदीप कुमार भी शामिल थे।

राजस्थानी छात्र मोर्चा के प्रांतीय संयोजक डॉ. गौरीशंकर निमिवाल ने कहा कि महाविद्यालयों में नए विषय खोलने हेतु 1 नवंबर से 30 दिसंबर तक आवेदन किए जा सकते हैं इसलिए अनेक महाविद्यालयों में नए विषय के रूप में राजस्थानी साहित्य को शुरू करवाने हेतु अभियान चलाया जा रहा है।डॉ.निमिवाल ने विद्यार्थियों से आह्वान किया कि वे इस कार्य को आगे बढ़ाने के लिए सदैव तत्पर रहें।

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मंगलवार, 28 नवंबर 2017

गगनदीप सिंह विडिंग द्वारा लगवाए सचिन पायलट स्वागत बैनर किसने फड़वाए?

- करणीदानसिंह राजपूत -

सूरतगढ़ 28 नवंबर 2017. राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट के सूरतगढ़ पधारने पर स्वागत के गगनदीप सिंह विडिंग द्वारा लगाए गये बैनर पड़वा दिए जाने की ओछी हरकत हुई जिसकी विडिंग समर्थकों द्वारा आलोचना की जा रही है। 

स्वागत बैनर में सचिन का फोटो तो कायम रखा गया लेकिन जिस ओर गगनदीप का फोटो लगा था उधर का हिस्सा फाड़ डाला गया। 

गगनदीप सिंह विडिंग सूरतगढ़ विधानसभा क्षेत्र की युवक कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष हैं। विडिंग की सूरतगढ़ विधानसभा क्षेत्र से आगामी चुनाव के लिए टिकट की दावेदारी भी है, ऐसी स्थिति में समझा जा रहा है कि उनके द्वारा लगाए गए बैनरों को कांग्रेस के ही किसी ग्रुप ने फाड़ा है या फड़वाया है,जो किसी भी तरह से विडिंग से जलता है। आशंका है कि बैनर इसलिए फाड़े गये ताकि विडिंग की चर्चा न हो सके उसका प्रचार नहीं हो पाए।

इससे यह तो मालूम पड़ता ही है कि कांग्रेस में गुटबाजी किस घृणित स्तर तक गिरी हुई है।

सचिन पायलट ने भी अपने भाषण में सभी को एक होकर पार्टी को मजबूत करने का आह्वान किया ताकि राजस्थान में कांग्रेस की सरकार आ सके।





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सूरतगढ़ में क्या कह गए सचिन पायलट? गुजरात और राजस्थान के बारे में?

- करणीदानसिंह राजपूत -  

सूरतगढ़ 28 नवंबर 2017.

 राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट कांग्रेस के  इलाकाई नेताओं को महत्वपूर्ण संदेश देने के साथ ही एकता का आह्वान कर गए।

सचिन ने कहा कि गुजरात में भारतीय जनता पार्टी जा रही है और वहां कांग्रेस राज में आ रही है। 

सचिन ने कहा कि राजस्थान में भी कांग्रेस आएगी। सचिन ने कहा कि इसके लिए जरूरी है कि सभी एकजुट होकर कांग्रेस की मजबूती को और अधिक मजबूत बनाएं। 

सचिन पायलट के अलावा राजस्थान विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता रामेश्वर डूडी, राजस्थान के  पूर्व शिक्षा मंत्री भंवर लाल मेघवाल, पूर्व सांसद भरत मेघवाल, पूर्व संसदीय सचिव एवं राजस्थान महिला कांग्रेस की अध्यक्ष श्रीमती विजयलक्ष्मी विश्नोई,पूर्व विधायक गंगाजल मील आदि ने संबोधित किया। सभी ने अपने वक्तव्यों में भारतीय जनता पार्टी की कड़े शब्दों में आलोचना की। सभी ने अपने भाषणों में कहा कि राजस्थान की जनता हर तरह से भारतीय जनता पार्टी के राज से बुरी तरह से परेशान हो चुकी है और राज बदलने को तैयार है। 

यह भी कहा गया कि राजस्थान का किसान भारतीय जनता पार्टी के राज से परेशानी और कर्जे में डूब रहा है। इलाके में किसान अपनी फसलें बचाने के लिए पानी की मांग कर रहे हैं मगर डैम में पानी होते हुए भी दिया नहीं जा रहा और इसके लिए किसानों को आंदोलन करना पड़ रहा है।

इस मंच पर अमित कड़वासरा व धर्मदास सिंधी सहित कुछ अन्य लोगों ने कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ग्रहण की। 

अमित कड़वासरा ने पत्रकार वार्ता में घोषणा की थी कि वह और उसके हजारों कार्यकर्ता प्रदेशाध्यक्ष के सानिध्य में कांग्रेस में शामिल होंगे​। कार्यक्रम में घोषणा के अनुरूप हजारों कार्यकर्ता कांग्रेस सदस्यता ग्रहण करते नजर नहीं आए।

यह कार्यक्रम नए बस अड्डे के सामने आयोजित किया गया था जिसमें सूरतगढ़ व बाहर के लोग काफी संख्या में आए। 

माना जा रहा है कि करीब 5-7 हजार की यह भीड़ थी जिसमें सूरतगढ़ विधानसभा क्षेत्र के करीब डेढ़ 2000 लोग शामिल हुए।

 (इस कार्यक्रम में क्या हुआ - क्या नहीं हुआ- अलग से देंगे)








बलराम वर्मा कांग्रेस जिला उपाध्यक्ष द्वारा प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट का स्वागत




सूरतगढ़ 28 नवंबर 2017 कांग्रेस के राजस्थान अध्यक्ष सचिन पायलट का सूरतगढ़ समारोह में भव्य स्वागत किया गया।श्रीगंगानगर जिला कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष बलराम वर्मा और उनके पुत्र पूर्व पार्षद,युवक कांग्रेस विधानसभा क्षेत्र सूरतगढ के महासचिव वेद प्रकाश वर्मा ने मंच पर प्रदेशाध्यक्ष का स्वागत किया।

विदित रहे कि बलराम वर्मा सूरतगढ़ सीट से कांग्रेस टिकट के प्रमुख दावेदारों​ में हैं।

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सोमवार, 27 नवंबर 2017

विधायक राजेंद्र भादू ने दुकानदारों और रेहड़ी वालों का झगड़ा शांत कराया

सूरतगढ 27 नवंबर 2017.

 संयुक्त व्यापार संघ की ओर से आज 27 नवंबर को बाजार बंद रखा गया था। मामला था एक रेहडी वाले और एक दुकानदार के बीच झगड़ा जो बढ़कर दुकानदारों और रेहड़ी वालों के बीच बन गया।

 रेलवे​ रोड दुकानदारों की ओर से कहा गया कि किसी भी हालत में  बाजार में दुकानों के आगे रेहड़ियां नहीं लगने देंगे। इसी दौरान यह मांग भी उठी कि रेहड़ी वालों को कोई स्थाई जगह दे दी जाए। सूरतगढ़ में सैंकड़ों रेहड़ियों के लिए एक स्थान पर जगह उपलब्ध होना संभव नहीं है। 

पूर्व में दो बार रेहड़ी वालों को स्थान दिया गया लेकिन रेहडिय़ां फिर बढ़ गई और सभी रेहड़ी वाले रेलवे रोड पर ही रहने को उत्सुक रहते हैं। 

पूर्व में नगर पालिका अध्यक्ष आरती शर्मा के समय जब रेलवे रोड का एक टुकड़ा सीसी रोड बनाया गया तब  रेहडी वालों को हटाया गया था। स्पष्ट किया गया कि रेलवे रोड पर रेहड़ियों को नहीं लगने दिया जाएगा।पालिका ने सड़क के बीच में सौंदर्य के लिए फूल पौधे भी लगवाए थे।

 उस समय पालिका प्रशासन का विरोध करने वाले एक ग्रुप की रेहड़ियां लगाते पुलिस से भी झड़प हुई और मामला अदालत तक गया।जहां दो तीन नेताओं को सजा हुई और बड़े कोर्ट एडीजे में शांति के लिए पाबंद करते हुए रिहाई दी गई।

उसके काफी समय बाद रेहडी वालों के लिए समय निर्धारित किया गया शाम के समय रेहडी लगा सकते हैं लेकिन इस छूट को लापरवाही से देखा गया और दिन में रेलवे रोड और करनानी धर्मशाला के आगे रेहड़ियों को लगाने की छूट यातायात पुलिस और नगर पालिका द्वारा नियुक्त किए गए कर्मचारियों की ओर से दी जाती रही।

अब विवाद होने ने पर कुछ लोग इसे चुनावी तूल देने में लगे।

 विधायक भादू से मिले तब उनकी ओर से कहा गया कि दोनों पक्षों के पांच पांच प्रतिनिधि आ जाएं ताकि समझौता करवाया जा सके।पहले यह संभव नहीं हुआ लेकिन आज 27 नवंबर को विधायक राजेंद्र सिंह भादू ने महाराणा प्रताप चौक पर पहुंचकर धरना देने वाले दुकानदारों से और रेहड़ी वालों से बातचीत वाली समझाईश की। विधायक के आश्वासन का प्रभाव पड़ा।

 विधायक ने कहा की रेहड़ी वालों के  रोजगार उजाड़ना नहीं चाहते और दुकानदारों को परेशानी हो ऐसा काम भी करना नहीं चाहते।दोनों वर्ग सूरतगढ़ के हैं आपस में मिलजुल कर रहना अच्छा है और दोनों के व्यवसाय चलते रहें ऐसा कार्य करने को उचित मानते हुए नगर पालिका वालों से भी बात की है। सूरतगढ़ में स्थान की खोज की जाए जहां रेहडी वालों को जगह दी जा सके। 

विधायक ने यह भी कहा कि दो-चार बैठकों के बाद में सब कुछ संभव हो सकेगा।

समाजसेवी धर्मप्रेमी बजरंग सोनी कड़ेल का सड़क दुर्घटना में निधन


सूरतगढ़ 27 नवंबर 2017.

बजरंग सोनी आज सुबह मोटरसाईकिल पर सूरतगढ़ से दौलतांवाली जा रहे थे कि बीच में मानकथेड़ी गांव के पास हादसा हो गया। किसी वाहन ने टक्कर मार दी।

बजरंग सोनी के सड़क दुर्घटना में निधन होने की खबर ने सभी को शोक में डुबो दिया। 

वे स्वर्णकार संघ के अध्यक्ष थे। समाज सेवा और धार्मिक कार्यों में सदा आगे रहने वाले लोगों में थे। समाजसेवी संस्था महावीर इंटरनेशनल सूरतगढ़ के सदस्य थे। 

श्रीबालाजी ज्वैलर्स उनकी संस्था  आभूषण निर्माण और विक्रय में अग्रणी संस्था का नाम विख्यात है।

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रविवार, 26 नवंबर 2017

सूरतगढ भाजपा को झटका-धर्मदास सिंधी की कांग्रेस में जाने की घोषणा:



सूरतगढ़ 26.11.2017.

पूर्व भाजपा नगर महामन्त्री एंव भाजपा नगरपालिका प्रकोष्ठ के प्रदेश महासचिव एंव नगरपालिका प्रकोष्ट के बीकानेर संभाग प्रभारी श्री धर्मदास सिंधी द्वारा अपने निवास पर  सिंधी समाज के अनेक लोगों की एक बैठक कर 28 नवम्बर को कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष श्री सचिन पॉयलट के समक्ष कांग्रेस की सदस्यता लेने की घोषणा की। 

इस बैठक में पूर्व विधायक  गंगाजल मील, कांग्रेस जिला उपाध्यक्ष  गुरदर्शन सिंह सोढ़ी, पूज्य झूलेलाल सिंधी पंचायत विभाग भानुशाली सिंधी समाज के अनेक कार्यकर्ता व पदाधिकारी मौजूद थे।

पूर्व विधायक गंगाजल मील ने धर्म दास सिंधी के साथ तस्वीरें खिंचवाई।

ऐसा है कि कुछ और कार्यकर्ता भी कांग्रेस में शामिल होंगे​।

समझा जाता है कि धर्मदास सिंधी व कुछ और कार्यकर्ता नगरपालिका चुनाव के वक्त पार्षदों चुनाव में टिकटों के वितरण से ही विधायक भादू से नाराज चल रहे थे।



पानी संघर्ष:मरूप्रदेश बनादो-हरचंदसिंह ने पीएम को लिखा 8 साल पहले

मरूप्रदेश बनाओ:




रिपोर्ट - करणीदानसिंह राजपूत:  

 सूरतगढ़  19 जनवरी 2013.

उतरी पश्चिमी राजस्थान की उपेक्षा का आरोप:सिंचाई पानी को तरसते रहे

कृषि जगत में पहचान दिलाने वाले सिखों को लगातार धत्ता:यह राजनीति कभी भयानक लपटें बन जाऐंगी

राजस्व मंडल और उच्च न्यायालय की बैंचे बीकानेर में क्यों नहीं बनाई गई?

पूर्व विधायक हरचंदसिंह सिद्धु ने 16-12-2009 को यह पत्र प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह को लिखा था


राजस्थान के उतरी पश्चिमी क्षेत्र की निरंतर उपेक्षा के कारण इस इलाके के लोगों का विकास नहीं हो रहा है तथा मरू प्रदेश की मांग एक बार पुन: उठ खड़ी हुई है। 

पानी के मामले में किसान मजदूर व्यापारी आंदोलन निरंतर चल रहा है। 

ऐसे मौके पर लोगों के सामने पूर्व विधायक हरचंदसिंह सिद्धु का तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह को लिखा पत्र सामने रखना उचित है, ताकि लोग सोच सकें कि उनके विकास को किस तरह से अवरूद्ध करके रख दिया गया।

सिद्धु कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं व 2 बार विधायक रह चुके हैं,इसलिए उनके पत्र में  लिखे बिंदुओं का तथ्यों का बड़ा महत्व है। 

सिद्धु के पत्र का महत्व इसलिए भी है कि राजस्थान विकास का मतलब केवल जयपुर क्षेत्र होकर रह गया है और उतरी पश्चिम राजस्थान धूल में मिल रहा है।


माननीय प्रधानमंत्री महोदय,

राजस्थान राज्य का विभाजन करके मरू प्रदेश का गठन करने के संबंध में।

राजस्थान क्षेत्रफल की दृष्टि से भारतवर्ष का सबसे बड़ा प्रांत है। पश्चिम भू भाग रेगिस्तानी,दक्षिणी भाग पहाड़ी,पूर्वी उतरी भाग मैदानी है। रहन सहन,भाषाएं, रीति रिवाज भिन्न भिन्न हैं। हर भाग की समस्याएं भी भिन्न भिन्न हैं, लेकिन उनका समाधान एक ही तरह के निर्णय से संभव नहीं हो सकता। प्रशासनिक विसंगतियां बनी हुई है।

राजस्थान प्रदेश का गठन 30 मार्च 1948 को हुआ। राजधानी जयपुर,उच्च न्यायालय जोधपुर,राजस्व मंडल अजमेर को दिया गया।

उसके बाद राजस्थान का नेतृत्व मोहनलाल सुखाडिय़ा के हाथों में रहा। उस कारण एकांकी विकास उदयपुर संभाग का हुआ और पश्चिम उतरी भाग नजरोन्दाज किया गया।

बीकानेर राज्य की जीवन दायिनी गंगनहर का निर्माण तमाम भूमि खरीद कर किया गया था। नहर निर्माण के लिए पंजाब के गिदड़बाहा में बीकानेर राज्य की 2 कॉलोनियों का निर्माण हुआ जहां से निर्माण का संचालन हुआ। उनके लिए ईंट भट्ठे लगाए गए। फरीदकोट में स्टाफ के लिए नहर के संचालन वास्त विश्रामगृह बनाया गया। पंजाब में इस प्रकार की (बीकानेर की जो अब राजस्थान की) संपत्तियां हैं,उन पर पंजाब सरकार ने अनाधिकृत कब्जा जमाया हुआ है। गंगनहर संरक्षित नहर थी,मगर पंजाब ने उसमें से 90-90 क्यूसेक की दो नहरें अनाधिकृत निकाल ली। यह श्रीगंगानगर जिले के अधिकार का हनन किया गया,मगर राज्य सरकार ने इसका किसी भी स्तर पर विरोध नहीं किया। यह इसलिए हुआ कि राजस्थान की राजनैतिक हस्तियों ने बीकानेर एवं पश्चिम राजस्थान के भाग की अनदेखी की।आज श्रीगंगानगर जिला,हनुमानगढ़ जिला बीकानेर जेसलमेर रेगिस्तान में परिवर्तित हो रहा है। भाखड़ा नहर के साथ भी यही हुआ। इस क्षेत्र में भूजल खारा है,जिसका उपयोग सिंचाई में नहीं हो सकता।


एशिया की सबसे बड़ी इंदिरागांधी नहर परियोजना में 60 प्रतिशत राशि राजस्थान की लगी हुई है, उसमें इतने प्रतिशत हिस्सा राजस्थान का होना चाहिए था। परन्तु राज्य सरकार की कमजोर और भेदभावी नीति के कारण पश्चिम भू भाग के हितों की अनेक समझौतों में बलि चढ़ा दी। 

यही कारण है कि उतरी पश्चिमी भाग पानी के लिए आंदोलित रहता है। राज्य सरकार इस मांग के प्रति उदासीन बनी रहती है। इसी कारण पंजाब व हरियाणा ने इसमें से 52 मोघे अवैध निकाल लिए और उनसे लाभ ले रहे हैं। राजस्थान के उतरी पश्चिमी भाग के अधिकारों का हनन हुआ। लेकिन राज्य सरकार को इसकी परवाह ही नहीं है।

यह क्षेत्र स्थाई रूप से अकालग्रस्त क्षेत्र बन गया है। इसी उदासीनता के कारण यहां औद्योगिक विकास नहीं हुआ जैसा पूर्वी क्षेत्र में कोटा और अलवर में हुआ है।

 राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के कारण लोगों का जीवनयापन हो रहा है। शिक्षा के क्षेत्र में भी यह इलाका पिछड़ा हुआ है।

प्रशासनिक भेदभाव के कारण जब राजस्थान के 25 जिलों का पुन:गठन हुआ तब दौसा,करौली,राजसमंद,प्रतापगढ़ का गठन हुआ तब हनुमानगढ़ को भी जिला बनाया गया। परंतु तथ्यों को नजरोन्दाज किया गया। 

बीकानेर राज्य में सूरतगढ़ महत्वपूर्ण जिला था। गंगनहर के आने के बाद सूरतगढ़ को जिला तोड़ कर उपखंड बना दिया गया। महाजन के लोगों को तहसील स्तरीय सुविधा के लिए काफी दूर जाना पड़ता है।

    राज्य सरकार की नीति के कारण उच्च न्यायालय की बैंच व राजस्व मंडल अजमेर की बैंच बीकानेर में नहीं खोली गई। श्रीगंगानगर के लोगों को काफी फासला तय करना पड़ता है। इसलिए अब समय आ गया है कि राजस्थान राज्य का विभाजन करके मरूप्रदेश का गठन किया जाए।

    राजस्थान में पनप रही जातिवादी राजनीति राजस्थान को तबाह कर देगी। इसमें बड़ी जातियां लाभ उठा रही हैं। छोटी जातियों का स्तर नीचे जा रहा है। इससे असंतोष बढ़ रहा है, जो कभी भयंकर लपटों का रूप ले लगा।

 बीकानेर संभाग को कृषि जगत में पहचान दिलाने वाली सिख जाति अपने आपको हर स्तर पर उपेक्षित महसूस कर रही है। आक्रोश फैल रहा है। सत्ता में भागीदारी के नाम पर सिख जाति को हमेशा धत्ता बताया गया है। यह अच्छे संकेत नहीं हैं। मैं सिख होने के कारण विरोध नहीं कर रहा हूं,यह मानवता के कारण लिख रहा हूं।

    इसलिए निष्पक्ष भाव से राज्य पुन: गठन आयोग का गठन करके संभावित राज्यों की विवेचना की जाए और निर्माण​ किए जाएं।

( पूर्व विधायक स. हरचंद सिंह सिद्धू ने यह पत्र 16.12.2009 को लिखा था। पानी आंदोलन अभी कुछ सालों से चलता हुआ 2017 में भी चल रहा है।
वर्तमान में केंद्र और राजस्थान में भाजपा की सरकारें हैं।
किसान मजदूर व्यापारी सभी परेशान हैं।)

आतंककारी पाक को जा रहा पानी नहीं रोका जाता:सबक क्या सिखलाएंगे?


नरेन्द्र मोदी प्रकाशसिंह बादल और वसुंधरा राजे सभी दोषी:


भारत के खेत प्यासे और पाक को सालों से 7 हजार क्यूसेक पानी:


- करणीदानसिंह राजपूत -

पाकिस्तान लगातार सीमा पर गोली बारी कर और आतंकवादियों को भेज कर भारत को नुकसान पहुंचा रहा है। सीमा पर हमारे सैनिकों को घात लगा का मार रहा है और आतंकवादियों से खून खराबा करवा रहा है। हमारे सैनिकों की शहादत के बावजूद भी हमारे सत्ताधारी नेताओं व पार्टियों की आँखें नहीं खुलती।
हमारे नेता सबक सिखलाने के थोथे भाषण देते रहते हैं। जब भी सीमा पर गोलीबारी होती है और जब भी कोई आतंकारी घटना होती है तब भाषण होते हैं तथा कुछ देर बाद भूल जाते हैं।
बड़ी दुखद हालत है कि पाक को सबक सिखलाने के भाषण देने वाले हमारे नेता व सरकारें सबक सिखलाना तो दूर रहा,पाक को हमारा पानी जा रहा है  वह बंद नहीं कर पा रहे हैं। सालों से 7 हजार क्यूसेक पानी बह कर पाकिस्तान जा रहा है और हम उसे रोकने के लिए कुछ लाख रूपए लगा कर प्रबंध का निर्माण नहीं करवा रहे।
कितना दुखद है कि हिन्दुस्तान के खेत प्यासे रहते हैं और पाकिस्तान के खेतों में हमारे पानी से सिंचाई होती है वह लहलहाते हैं। हमारे किसान सालों से इस पानी को रोकने की मांग करते रहे हैं। लेकिन किसी भी पार्टी की सरकार के नेताओं के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी है।
नरेन्द्र मोदी 19 फरवरी को सूरतगढ़ में अपने भाषण में पानी की कमी बतलाते हुए कम पानी प्रयोग का आह्वान कर गए। उन्होंने कहा कि अधिक पानी के इस्तेमाल से यहां की जमीनें बेकार बंजर हो गई है। उस दिन मंच पर राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे व पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाशसिंह बादल भी मौजूद थे।
हुसैनीवाला हेड से यह पानी छोड़ा जा रहा है।
किसान संघर्ष समिति मांग करती रही है कि यह पानी पाकिस्तान को छोडऩे के बजाय गंगनहर,भाखड़ा नहर, इंदिरागांधी नहर में छोड़ दिया जाए।
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27~7~2015
up Date 4-1-2016
अपडेट 26.11.2017.

समूह लोक गायन में सूरतगढ़ टीम जिला स्तर पर विजेता


सूरतगढ़ 25 नवम्बर 2017.युवा बोर्ड श्रीगंगानगर द्वारा आयोजित युवा महोत्सव के जिला स्तरीय आयोजन में समूह लोक गायन में सूरतगढ़ के कलाकारों नें जिलास्तर पर प्रथम स्थान हासिल कर अपनी गायकी का लोहा मनवाया। हंस वाहिनी संगीत कला केन्द्र के उमा स्वामी, समृद्वि वशिष्ठ, कश्मीर सिंह, सौरभ सारड़ा, ज्योति स्वामी, अंजु बाला, राजपाल व गणेश नें प्रतियोगिता में छोटी सी उमर परणाई औ बाबो सा लोक गीत गाकर सब का महमोहा। श्रीगंगागनर से विजेता होकर लौटी लोक गायक कलाकारों की इस टीम का मायड़ भाषा राजस्थानी लोक कला रंग मच की ओर से अध्यक्ष ओम साबणियां, मनोज कुमार स्वामी, हंसराज शर्मा, अमरिश जवरियां, पवन गौस्वामी आदि नें स्वागत किया। 


पीएम मोदी का पानी दुरूपयोग का आरोप झूठा-पूर्व विधायक सिद्धु



पूर्व विधायक स.हरचंदसिंह सिद्धु ने कहा कि किसानों ने कभी पानी का दुरूपयोग नहीं किया:

पानी आंदोलन में सूरतगढ़ के वर्तमान विधायक राजेन्द्र भादू भी शामिल रहे थे।कौन सच्चा है?

सूरतगढ़, 27 फरवरी  2015.
अप डेट 26.11.2017.

पूर्व विधायक हरचंदसिंह सिद्धु ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उस भाषण को कंडम किया कि श्रीगंगानगर हनुमानगढ़ इलाके के किसान सिंचाई पानी को बेवजह अधिक इस्तेमाल करते हैं जिससे यहां कि जमीनें सेम ग्रस्त होकर अन उपजाऊ हो गई हैं। सिद्धु ने कहा कि यहां सिंचाई में बहाव की प्रणाली प्रचलित है और उसके अनुरूप किसानों को कभी भी पूरा पानी नहीं मिला। जब पूरा पानी नहीं मिला तब अधिक सिंचाई का तो कोई मतलब ही नहीं रहा है। 
इस इलाके का किसान पानी की मांग ही करता रहा है। सिद्धु ने कहा कि वर्तमान भाजपा विधायक राजेन्द्रसिंह भादू भी पानी मांग के घड़साना आंदोलन में थे।
यदि वह मांग गलत थी तो राजेन्द्र भादू को पार्टी ने टिकट देकर विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी क्यों बनाया? प्रधानमंत्री ने झूठा कहा तो पार्टी को उनको भी बताया जाना चाहिए था कि वे गलत बात कह गए हैं। सिद्धु ने कहा कि इस बाबत न तो विधायक भादू कुछ बोले हैं और न वसुंधरा राजे बोली जो मंच पर प्रधामंत्री के पास में ही मौजूद थी।
सिद्धु ने आरोप लगाया कि दुनियां में कच्चे तेल की कीमतें काफी नीचे चली गई लेकिन हमारी सरकारें उनके भाव कम नहीं कर रही हैं तथा आम लोगों के साथ किसानों को भी लूटने में लगी हैं।
सिद्धु ने कहा कि किसान को अपनी फसल की पूरी कीमत ही नहीं मिल रही है।
किसान के उत्पादन तो ीााव से नीचे गिर रहे हैं तथा उसके उपयोग में आने वाली कारखाने की उत्पादित सभी वस्तुओं के भावों में वृद्धि होती जा रही है।  सिद्धु ने कहा कि किसान तो फिर भी दिन रात लगा रह कर इतना उत्पादन कर रहा है कि सरकार के पास में रखने को भंडार गृह नहीं है। भारतीय खाद्या निगम इस उत्पादन को संभाल नहीं पाता और वह नष्ट हो रहा है तथा इस प्रकार से खराब होने वाले अन्नाज को शराब बनाने वाली कंपनियों को बेच दिया जाता है।
प्रधानमंत्री यहां जिस मृदा स्वास्थ्य कार्ड का विमोचन करने आए उस योजना की असलियत भी पोल खोल रही है कि इनके पास में प्रयोगशालाएं नहीं है तथा जहां पर हैं वहां कर्मचारी ही नहीं है। उन्होंने प्रमाण देते हुए कहा कि श्रीगंगानगर की प्रयोगशाला में कर्मचारी की ड्यूटी चुनाव में लगाई हुई थी।
सिद्धु ने कहा कि प्रधानमंत्री के यात्रा कार्यक्रम समारोह आदि पर ढाई हजार करोड़ रूपए विभिन्न राज्यों में कुल लगे लेकिन उसका कोई लाभ नहीं मिला।
सिद्धु ने आरोप लगाया कि दिल्ली में करारी हार की शर्म को उतारने के लिए यह करोड़ों की चपत लगाने का कार्यक्रम बनाया गया। सिद्धु ने कहा कि यह धन तो जनता का ही है जिसका दुरूपयोग किया गया।
सिद्धु ने कहा कि प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार समाप्त करने की घोषणाएं करने में लगे हुए हें लेकिन उनकी ही राजस्थान की भाजपा सरकार में खुले आम भ्रष्टाचार हो रहा है।
सिद्धु ने आरोप लगाया कि नगरपालिकाओं व पुलिस थानों में जम कर भ्रष्टाचार हो रहा है।
सिद्धु पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे।

शनिवार, 25 नवंबर 2017

सूरतगढ़-2 सैकिंड का झगड़ा जिसे शांत कराने वाला कोई नेता नहीं

- करणीदानसिंह राजपूत-

सूरतगढ में एक दुकानदार और एक रेहड़ी वाले के बीच झगड़ा हुआ और शहर के बीच की प्रमुख सड़कों रेलवे रोड और बीकानेर रोड के महाराणा प्रताप चौक पर अवरोधक लगाकर सड़कों को बंद  कर दिया गया।

मामूली सी 2 सेकंड की घटना और घंटों तक सड़कें जाम होने से लोगों को परेशानी हुई। ऊपर से 27 नवंबर को बाजार बंद की घोषणा कर दी गई।

 एक लाख की जनता के बीच लगता है कि सत्ताधारी और गैर सत्ताधारी राजनैतिक व्यक्तियों में कोई भी इतना समझदार और प्रभावशाली नहीं है,जो दोनों पक्षों को समझा कर या डांट डपट कर शांत कर देता।

पुलिस और प्रशासन ऐसी साधारण सी घटना में भी हाथ बांधे खड़े रहे और समझा कर या मामूली सा दबाव देकर सड़कें नहीं खुलवा पाए। पुलिस और प्रशासन इस प्रकार की स्थिति में जहां मामूली सी बात राजनीतिक रूप धारण कर ले वहां चुप रहना ही बेहतर समझते हैं।यही हालत सूरतगढ़ की हुई पुलिस और प्रशासन आवागमन को ही डाइवर्ट करने में लगे रहे।

 मौके का अवलोकन जिन लोगों ने किया वे सभी हतप्रभ थे।चकित थे। पुलिस के अवरोधक सड़क जाम करने वालों ने इस्तेमाल किए। पुलिस उनको दूर नहीं कर पाई।

धरना लगाए हुए दुकानदारों की संख्या 50-60 से अधिक नहीं थी।

पब्लिसिटी के लिए कहें या चैनलों पर अखबारों पर न्यूज़ अच्छी छप जाए के  लिए टायर तक जलाया गया और प्रशासन ने उसके बुझाने के लिए तत्काल कोई कार्यवाही नहीं।

सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि राजनीतिक नेता और कार्यकर्ता दो पक्षों में बंट गए। कुछ दुकानदारों के साथ हुए और कुछ रेहड़ी वालों के साथ हो गये। 

शहर में रहने वाले लोग और बाहर से शहर में आने वाले लोग भलीभांति जानते हैं कि सड़कें कब्जा करने में न दुकानदार भले हैं और न रेहड़ी वाले भले हैं। दोनों ही मनमाने तरीके से सड़कों पर कब्जा करने में आगे रहते हैं और यातायात पुलिस तथा नगर पालिका ऐसे कब्जा करने वालों का साथ देती है। रेहड़ी का नियम एक निश्चित स्थान पर रहना नहीं है।घूमते फिरते रेहड़ी की दुकानदारी होती है।दुकानदार का अधिकार शटर से बाहर नहीं है मगर रेलवे रोड बीकानेर रोड और अन्य सड़कें सभी के फुटपाथ चौकियां बनाकर कब्जा कर लिए गए।इससे भी दुकानदारों का पेट हीं भरा स्लोप बना कर आधी दूरी तक सड़कों पर कब्जा किया गया। जहां पर स्थाई रूप से सामान रखते हैं।

 दुकानदारों को कभी भी अपने अतिक्रमण पर शर्म नहीं आई।समाचार पत्रों में इन अतिक्रमणों के समाचार छपते रहे लेकिन बेशर्मी से फुटपाथों को तोड़ तोड़ कर 4-5 फुट ऊंचा उठाया गया, जहां कोई चल फिर नहीं सकता। वृद्ध व्यक्ति बच्चे महिलाएं जो सड़क के बीच चल नहीं सकते उन्हें फुटपाथ चाहिए लेकिन Footpath को कोई छोड़ना नहीं चाहता। 

उच्च न्यायालय ने अतिक्रमण हटाने का निर्देश दिया जिस पर कुछ आशा बंधी की हर सड़क पर चौकियां हटेंगी और वापस Footpath बन जाएंगे तो आम जनता आराम से चल फिर सकेगी। प्रत्येक दुकान में आना जाना आसानी से हो सकेगा लेकिन अभी गौरव पथ का नाला एक तरफ बना है।दुकानदारों ने इस नाले पर ढाई तीन फिट ऊपर कब्जा कर पट्टियां लगाई है। इस स्थिति में उन की पेड़ियां हर हालत में सड़क पर तीन फुट आगे तक पहुंचेंगी लेकिन दुकानदारों को अपनी यह स्थिति नजर नहीं आती। 

शहर के राजनीतिक व्यक्तियों ने भी दुकानदारों के फुटपाथ पर हुए अतिक्रमणों पर जबान नहीं खोली। कारण स्पष्ट है की दुकानों के मालिक बहुत पैसे वाले हैं।

 नगर पालिका ने भी फुटपाथों पर पक्के अतिक्रमणों को रोका नहीं। कम से कम  गौरव पथ निर्माण में तो अब ये अतिक्रमण रोक दिए जाने चाहिए थे। लेकिन नाले के ऊपर फिर से अतिक्रमण होने शुरू हुए संभव है कि फिर अदालती कार्यवाही से ही कुछ होगा।

दुकानदारों ने 27 नवंबर के बंद का आह्वान किया है। इसमें कुछ वह नेता भी शामिल हैं जो कभी किसी भी समस्या पर घरों से कोठियों से बाहर नहीं निकले।अब चुनाव आने वाले हैं इसलिए उनके चेहरे नजर आने लगे हैं।ऐसे नेता दुकानदारों को स्थाई वोटर मानते हैं इसलिए वे दुकानदारों के साथ हैं और रेहड़ी वालों को दूसरे प्रदेशों का मानते हैं। ऐसा प्रचार भी शनिवार को चर्चाओं में गरम रहा की बाहर से आने वाला मामूली सा रेहड़ी वाला दुकानदार से उलझा और दुकानदार के थप्पड़ मार दिया।

यह घटना केवल दो व्यक्तियों के बीच में हुई। किसी भी हालत में इसे बड़ी घटना नहीं कहा जा सकता।दुकानदार और रेहड़ी वाले इस मामूली सी बात में समझौता कर सकते थे लेकिन लगता है कि इस मामूली घटना को भड़काने में लोग आगे रहे।

महाराणा प्रताप चौक पर CCTV कैमरे लगे हुए हैं वहां पर जो कुछ शनिवार के दिन हुआ और रात तक चला पूरा घटनाक्रम देखा जा सकता है की आग लगाने में भड़काने में कौन-कौन लोग आगे रहे।

 दुकानदारों की ओर से 27 नवंबर का आह्वान किया गया है लेकिन आश्चर्य है कि पूर्व में जितने भी बंद घोषित हुए उनमें दुकानदारों ने कभी भी दो-तीन घंटे से ज्यादा बंद नहीं रखा और डेढ़ 2 बजे बाजार खोलने में सदा आगे रहे। अब वे ही दुकानदार 27 नवंबर का पूर्ण बंद कैसे कर पाएंगे? 

27 नवंबर बीत जाएगा लेकिन यह सवाल जिंदा रहेगा की क्या दुकानदारों को Footpath ऊंचे उठाकर कब्जा करने का हक है?क्या दुकानदारों को सड़क पर सामान रखने का हक है? क्या यह सामान रखना अतिक्रमण नहीं है? रेहड़ीवाला किसी दुकान के आगे निकलता हुआ सामान देने लग जाए तो वह 5-10 मिनट रुकता है तब दुकानदार को अड़चन क्यों होती है?

 जब दुकानदार दुकान खोलते ही सड़क पर सामान रखता है और शाम तक रखता है,तब उसे अपनी स्थिति पर कभी भी सोचने-विचारने का मौका क्यों नहीं आया?

लगता है कि शहर की लोगों की भलाई के लिए, शहर के दुकानदारों और रेहड़ी वालों की भलाई के लिए सोचने वाला एक भी नेता नहीं है,जो एक आवाज दे और सब शांत होकर कह उठें कि सभी पक्ष भाईचारे से रहेंगे और मामूली सी बातों से झगड़ा फसाद नहीं करेंगे।

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पाकिस्तान में रसूल अल्लाह संगठन और सुरक्षा बलों में झड़पें


पाकिस्तान इस्लामाबाद और रावलपिंडी में तहरीक-ए-लब्बैक (टीएलपी) या रसूल अल्लाह नाम के इस्लामिक संगठन के 20 दिन से जारी धरने को खत्म कराने पहुंचे सुरक्षाबलों और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प हो गई। इसमें एक पुलिसवाले की मौत और 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक शुक्रवार रात 8,500 सुरक्षाबलों ने 2000 प्रदर्शनकारियों के खिलाफ अॉपरेशन शुरू किया। इस्लामाबाद पुलिस और फ्रंटियर फ्रंटियर कांस्टेबुलरी (एफसी) ने शुरुआत में घटनास्थल से प्रदर्शनकारियों को खदेड़ना शुरू किया। लेकिन शनिवार सुबह प्रदर्शनकारी एक बार फिर एक जुट हो गए। इस दौरान हिंसा भड़क गई और कई वाहनों को फूंक दिया गया। रिपोर्ट्स में कहा गया कि पुलिस ने करीब 50 लोगों को गिरफ्तार किया है। एएफपी के मुताबिक पाकिस्तान मीडिया रेग्युलेटर ने स्थानीय टीवी चैनलों द्वारा घटनास्थल का सीधा प्रसारण दिखाने पर रोक लगा दी। हालांकि स्थानीय मीडिया की रिपोर्ट्स के मुताबिक 67 लोग झड़प में घायल हुए हैं। पाकिस्तान इंस्टिट्यूट अॉफ मेडिकल साइंसेज (पीआईएमएस) के डॉ.अल्ताफ ने कहा कि कोई गंभीर मामला सामने नहीं आया है। ”ज्यादातर लोगों को मामूली चोटें आई हैं, लेकिन कुछ लोगों को फ्रैक्चर भी हुआ है।”


गौरतलब है कि प्रदर्शनकारियों ने सड़कों और बाजारों को बंद कर दिया है। यह धरना 6 नवंबर को टीएलपी नाम के छोटे से इस्लामिक संगठन ने शुरू किया था। अब प्रदर्शनकारियों ने मुख्य हाइवे को ब्लॉक कर दिया है जिसकी वजह से रोज हजारों लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। टीएलपी कार्यकर्ता अल्पसंख्यक अहमदी समुदाय के प्रति कथित नरम रुख को लेकर संघीय और प्रांतीय कानून मंत्री जाहिद हमीद और राणा सनाउल्लाह के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं।


वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान के दक्षिण पश्चिमी शहर क्वेटा में शनिवार को एक बम विस्फोट में चार लोगों की मौत हो गई और 13 अन्य घायल हो गए। समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार, विस्फोट शहर के एक बस स्टेशन के समीप हुआ। घायलों में महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, विस्फोट में पुलिस के वाहनों को निशाना बनाया गया था। स्थानीय पुलिस और बचावकर्मी घटनास्थल पर पहुंच गए हैं।


सूरतगढ़ वार्ड 10 में अशुद्ध जल वितरण बंद करने और शुद्ध पेयजल वितरित करने की मांग


सूरतगढ़ 24 नवंबर  2017.

नारी उत्थान केंद्र  की अध्यक्ष व पार्षद  श्रीमती राजेश सिडाना  ने वार्ड नंबर 10 में आवासन मंडल के सेक्टर 2 में अशुद्ध पेयजल काफी दिनों से वितरित होने की  शिकायत की है।

राजेश सिडाना ने अधिशासी अभियंता जन स्वास्थ्य अभियांत्रिक विभाग को ज्ञापन देकर अशुद्ध पेयजल का वितरण रोकने की मांग की है। श्रीमती राजेश सिडाना ने मांग में कहा है कि शुद्ध पेयजल वितरित किया जाए।अधिशासी अभियंता ने पाइपलाइनों  जांच शुरू करवाई है और आश्वासन दिया है कि शुद्ध पेयजल वितरित किया जाएगा।

शुक्रवार, 24 नवंबर 2017

मोदी के मंत्री-90 प्रतिशत को जानते नहीं-10 प्रतिशत को कोई मानते नहीं-शत्रुघ्न सिन्हा भाजपा नेता विजय अभिनेता

भाजपा नेता और बॉलीवुड के मशहूर एक्टर शत्रुघ्न सिन्हा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रियों का मजाक उड़ाया है। गुरुवार को उन्होंने कहा है कि कैबिनेट के 90 फीसद मंत्रियों को कोई नहीं जानता है। जबकि, बचे हुए 10 फीसद मंत्रियों की कोई इज्जत नहीं करता है। जैसे ही सोशल मीडिया पर शत्रुघ्न की यह टिप्पणी आई, लोगों ने भी इस पर अपनी प्रतिक्रियाएं देना शुरू कर दिया। टि्वटर यूजर्स इस पर उल्टा उन्हीं के मजे लेने लगे। उन्होंने कहा, “आपने कितनी इज्जत दी। जिस पार्टी ने बढ़ाया, उसी को अपशब्द कहे।” किसी ने मजाक बनाने के पीछे का कारण उनकी कुंठा को बताया। कहा, “शुक्र है कि वह मंत्री नहीं हैं, वर्ना वह कहां फिट होते? कुंठा में।” वहीं, एक यूजर ने पूछा कि वह भाजपा छोड़ क्यों नहीं देते? तो किसी ने उनके लिए सिर्फ खामोश शब्द का इस्तेमाल किया। यह पहला मौका नहीं है जब शॉटगन शत्रुघ्न पीएम पर हमलावर हुए हैं। फिल्म पद्मावती पर विवाद को लेकर उन्होंने पीएम और सूचना-प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी पर की चुप्पी पर सवाल खड़े कर किए थे।

उन्होंने इसी के साथ कुछ बॉलीवुड की नामी हस्तियों को भी कठघरे में खड़ा किया था। मंगलवार को उन्होंने कहा था कि अमिताभ बच्चन, आमिर खान, शाहरुख खान, सूचना और प्रसारण मंत्री के साथ इस पर हमारे सबसे लोकप्रिय पीएम चुप किसलिए हैं? उन्होंने ट्वीट किया, “जैसा कि पद्मावती ज्वलंत मुद्दा बन गई है। लोग पूछ रहे हैं कि महानायक अमिताभ बच्चन, बेहद बहुमुखी आमिर खान और सबसे मशहूर शाहरुख खान के पास बोलने के लिए इस पर कुछ नहीं है। कैसे हमारी सूचना और प्रसारण मंत्री या फिर सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री (अमेरिकन थिंक टैंक पोल पीईडब्ल्यू के मुताबिक) इस पर मौन क्यों धारण किए हुए हैं। हाई टाइम!”

23.11.2017.


गुरुवार, 23 नवंबर 2017

सूरतगढ़ गौरव पथ- सी सी रोड निर्माण शुरू

-  करणी दान सिंह राजपूत - 

23 नवंबर 2017.

गौरव पथ में आज अचानक ही सी सी रोड काम निर्माण शुरू कर दिया गया। यह निर्माण सेठ रामदयाल राठी राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय क े सामने वाली दुकानों के आगे दोपहर बाद शुरु हुआ। करीब 50 फुट लम्बाई में निर्माण हुआ।

 मामला अदालत में जाने के बाद यह निर्माण शुरू हुआ। अदालत में परिवाद दायर करने वाले पक्ष ने इस पर स्थगन मांग रखा है जिसकी तारीख 27 नवंबर है। 

निर्माण पक्ष स्थगन जारी नहीं होने के लिए अपनी दलील में कह सकता है कि निर्माण शुरू कर दिया है और इतना निर्माण हो चुका है। अदालत की तारीख तक 200 फुट से अधिक लंबाई में निर्माण हो सकता है।

देखते हैं अदालत में दोनों पक्ष क्या दलील देंगे और अदालत क्या फैसला करती है?

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सीबीआई जज बृजगोपाल लोया की मौत का रहस्य!बाद के जज ने अमित शाह को बरी किया-29 दिन बाद ही-

सीबीआई जज बृजगोपाल लोया की मृत्यु के बाद आए जज ने 29 दिन बाद अमित शाह को बरी कर दिया था, जिसके ख़िलाफ़ सीबीआई ने आज तक अपील नहीं की है.

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'दि वायर' की रिपोर्ट और आगे!


सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले की सुनवाई कर रहे विशेष सीबीआई अदालत के न्यायाधीश बृजगोपाल लोया की अचानक हुई मौत के लगभग तीन साल बाद उनके परिजनों ने चुप्पी तोड़ते हुए उनकी मौत पर सवाल खड़े किए हैं.

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मालूम हो कि गुजरात के इस चर्चित मामले में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह समेत गुजरात पुलिस के कई आला अधिकारियों के नाम आए थे.

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बृजगोपाल लोया के परिजनों से हुई बातचीत का हवाला देते हुए सोमवार को द कारवां पत्रिका में प्रकाशित हुई एक रिपोर्ट में लोया की मौत की संदेहास्पद परिस्थितियों पर सवाल उठाए गए हैं.


ज्ञात हो कि लोया की मौत 1 दिसंबर 2014 को नागपुर में हुई थी, जिसकी वजह दिल का दौरा पड़ना बताया गया था. वे नागपुर अपनी सहयोगी जज स्वप्ना जोशी की बेटी की शादी में गए हुए थे.


द कारवां की इस रिपोर्ट में उनके परिजनों की ओर से कई सवाल उठाए गए हैं, जैसे-


लोया की मौत के समय को लेकर कोई स्पष्टता नहीं है. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के अनुसार मृत्यु का समय 1 दिसंबर 2014 को सुबह 6:15 बजे दर्ज है, जबकि परिजनों के मुताबिक उन्हें एक तारीख़ को सुबह 5 बजे फोन पर उनकी मृत्यु की सूचना दी गई थी.लोया की मौत दिल के दौरे से होना बताया गया, जबकि परिजनों ने उनके कपड़ों पर खून के धब्बे देखे थे.लोया के पिता के अनुसार उनके सिर पर चोट भी थी.परिवार को लोया का फोन मौत के कई दिन बाद लौटाया गया, जिसमें से डाटा डिलीट किया गया था.बताया गया कि रात में दिल का दौरा पड़ने के बाद नागपुर के रवि भवन में ठहरे लोया को ऑटो रिक्शा से अस्पताल ले जाया गया था. लोया की बहन ने रिपोर्टर से बात करते हुए पूछा कि क्या इतने वीआईपी लोगों के ठहरने की व्यवस्था होने के बावजूद रवि भवन में कोई गाड़ी नहीं थी, जो उन्हें अस्पताल ले  जा सकती थी.साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि रवि भवन से सबसे नज़दीकी ऑटो स्टैंड की दूरी दो किलोमीटर है. ऐसे में आधी रात को ऑटो मिलना कैसे संभव हुआ.एक सवाल ईश्वर बहेटी नाम के आरएसएस कार्यकर्ता पर भी उठाया गया है. इसी कार्यकर्ता ने लोया की मौत के बाद पार्थिव शरीर को उनके पैतृक गांव ले जाने की जानकारी परिजनों को दी, साथ ही लोया का फोन भी परिवार को बहेटी ने ही लौटाया था.पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के हर पन्ने पर एक व्यक्ति के दस्तखत हैं, जिसके नीचे मृतक से संबंध मराठी में ‘चचेरा भाई’ लिखा है, लेकिन परिवार का कहना है कि परिवार में ऐसा कोई व्यक्ति ही नहीं है.रिपोर्ट कहती है कि लोया की मौत प्राकृतिक कारणों से हुई, तो फिर पोस्टमॉर्टम की ज़रूरत क्यों पड़ी?इसके अलावा पोस्टमॉर्टम के बाद पंचनामा भी नहीं भरा गया.


लोया की मौत के 29 दिन बाद आए जज ने इस मामले में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को मामले की सुनवाई शुरू हुए बिना ही बरी कर दिया.


उसके बाद आज तक इस मामले में 11 अन्य लोग, जिनमें गुजरात पुलिस के आला अधिकारी भी हैं, को बरी किया जा चुका है.


गौर करने वाली बात है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इस मामले की जांच संभाल रही प्रमुख संस्था सीबीआई ने इस फैसले के ख़िलाफ़ कोई अपील नहीं की है.


इससे पहले जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मामले की सीबीआई जांच के आदेश दिए गये थे, तब दो बातें स्पष्ट रूप से कही गयी थीं, पहली- इस मामले की सुनवाई गुजरात से बाहर हो, दूसरी- एक ही जज इस जांच को शुरू से अंत तक देखे.


लेकिन शीर्ष अदालत के दूसरे आदेश की अवहेलना हुई. मामले की जांच की शुरुआत जज जेटी उत्पत ने की, लेकिन अचानक वे इससे हट गये.


6 जून 2014 को जज उत्पत ने अमित शाह को इस मामले की सुनवाई में उपस्थित न होने को लेकर फटकार लगायी और उन्हें 26 जून को पेश होने का आदेश दिया. लेकिन 25 जून को 2014 को उत्पत का तबादला पुणे सेशन कोर्ट में हो गया.


इसके बाद बृजगोपाल लोया आये, जिन्होंने भी अमित शाह के उपस्थित न होने पर सवाल उठाये. उन्होंने सुनवाई की तारीख 15 दिसम्बर 2014 तय की, लेकिन 1 दिसम्बर 2014 को ही उनकी मौत हो गयी.


उनके बाद सीबीआई स्पेशल कोर्ट में यह मामला जज एमबी गोसवी देख रहे हैं, जिन्होंने दिसम्बर 2014 के आखिर में अमित शाह को इस मामले से बरी करते हुए कहा कि उन्हें अमित शाह के ख़िलाफ़ कोई सबूत नहीं मिला.


द कारवां की रिपोर्ट में लोया की बहनों और पिता के बयान शामिल हैं. रिपोर्ट के अनुसार लोया की पत्नी शर्मिला और बेटे अनुज ने इस रिपोर्टर से बात करने से मना कर दिया क्योंकि उनके अनुसार उन्हें अपनी जान का खतरा था.






निरंजन टाकले / The Caravan / 21-22 नवंबर, 2017 


पहला अध्‍याय


30 नवंबर 2014 की रात 11 बजे लोया ने अपनी पत्‍नी शर्मिला को अपने मोबाइल से नागपुर से फोन किया। करीब 40 मिनट हुई बातचीत में वे दिन भर की अपनी व्‍यस्‍तताएं उन्हें बताते रहे। लोया अपने एक सहकर्मी जज सपना जोशी की बेटी की शादी में हिस्‍सा लेने नागपुर गए थे। उन्‍होंने शुरुआत में नहीं जाने का आग्रह किया था, लेकिन उनके दो सहकर्मी जजों ने साथ चलने का दबाव बनाया। लोया ने पत्‍नी को बताया कि शादी से होकर वे आ चुके हैं और बाद में वे रिसेप्‍शन में गए। उन्‍होंने बेटे अनुज का हालचाल भी पूछा। उन्‍होंने पत्‍नी को बताया कि वे साथी जजों के संग रवि भवन में रुके हुए थे। यह नागपुर के सिविल लाइंस इलाके में स्थित एक सरकारी वीआइपी गेस्‍टहाउस है।


लोया ने कथित रूप से यह आखिरी कॉल की थी और यही उनका अपने परिवार के साथ हुआ आखिरी कथित संवाद भी था। उनके परिवार को उनके निधन की खबर अगली सुबह मिली।


उनके पिता हरकिशन लोया से जब मैं पहली बार लातूर शहर के करीब स्थित उनके पैतृक गांव गाटेगांव में नवंबर 2016 में मिला, तब उन्‍होंने बताया था कि 1 दिसंबर 2014 को तड़के ”मुंबई में उसकी पत्‍नी, लातूर में मेरे पास और धुले, जलगांव व औरंगाबाद में मेरी बेटियों के पास कॉल आया।” इन्‍हें बताया गया कि ”बृज रात में गुज़र गए, उनका पंचनामा हो चुका है और उनका पार्थिव शरीर लातूर जिले के गाटेगांव स्थित हमारे पैतृक निवास पर भेजा जा चुका है।” उन्‍होंने बताया, ”मुझे लगा कि कोई भूचाल आ गया हो और मेरी जिंदगी बिखर गई।”


परिवार को बताया गया था कि लोया की मौत कार्डियक अरेस्‍ट (दिल का दौरा) से हुई थी। हरकिशन ने बताया, ”हमें बताया गया था कि उन्‍हें सीने में दर्द हुआ था, जिसके बाद उन्हें नागपुर के एक निजी अस्‍पताल दांडे हास्पिटल में ऑटोरिक्‍शा से ले जाया गया, जहां उन्‍हें कुछ चिकित्‍सा दी गई।” लोया की बहन बियाणी दांडे हास्पिटल को ”एक रहस्‍यमय जगह” बताती हैं और कहती हैं कि उन्‍हें ”बाद में पता चला कि वहां ईसीजी यूनिट काम नहीं कर रही थी।।” बाद में हरकिशन ने बताया, लोया को ”मेडिट्रिना हॉस्पिटल में शिफ्ट कर दिया गया”- शहर का एक और निजी अस्‍पताल- ”जहां उन्‍हें पहुंचते ही मृत घोषित कर दिया गया।”


अपनी मौत के वक्‍त लोया केवल एक ही मुकदमे की सुनवाई कर रहे थे, जो सोहराबुद्दीन हत्‍याकांड था। उस वक्‍त पूरे देश की निगाह इस मुकदमे पर लगी हुई थी। सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में आदेश दिया था कि इस मामले की सुनवाई को गुजरात से हटाकर महाराष्‍अ्र में ले जाया जाए। उसका कहना था कि उसे ”भरोसा है कि सुनवाई की शुचिता को कायम रखने के लिए ज़रूरी है कि उसे राज्‍य से बाहर शिफ्ट कर दिया जाए।” सुप्रीम कोर्ट ने यह भी आदेश दिया था कि इसकी सुनवाई शुरू से लेकर अंत तक ही एक ही जज करेगा, लेकिन इस आदेश का उल्‍लंघन करते हुए पहले सुनवाई कर रहे जज जेटी उत्‍पट को 2014 के मध्‍य में सीबीआइ की विशेष अदालत से हटा कर उनकी जगह लोया को लगा दिया गया।


उत्‍पट ने 6 जून 2014 को अमित शाह को अदालत में पेश न होने को लेकर फटकार लगाई थी। अगली तारीख 20 जून को भी अमित शाह पेश नहीं हुए। उत्‍पट ने इसके बाद 26 जून की तारीख मुकर्रर की। सुनवाई से एक दिन पहले 25 जून को उनका तबादला हो गया। इसके बाद आए लोया ने 31 अक्‍टूबर 2014 को सवाल उठाया कि आखिर शाह मुंबई में होते हुए भी उस तारीख पर कोर्ट क्‍यों नही आए? उन्‍होंने अगली सुनवाई की तारीख 15 दिसंबर तय की थी।


लोया की 1 दिसंबर को हुई मौत की खबर अगले दिन कुछ ही अखबारों में छपी और इसे मीडिया में उतनी तवज्‍जो नहीं मिल सकी।

 दि इंडियन एक्‍सप्रेस ने लोया की ”मौत दिल का दौरा पड़ने से” हुई बताते हुए लिखा, ”उनके करीबी सूत्रों ने बताया कि लोया की मेडिकल हिस्‍ट्री दुरुस्‍त थी।” मीडिया का ध्‍यान कुछ वक्‍त के लिए 3 दिसंबर को इस ओर गया जब तृणमूल कांग्रेस के सांसदों ने संसद के बाहर इस मामले में जांच की मांग को लेकर एक प्रदर्शन किया जहां शीतसत्र चल रहा था। अगले ही दिन सोहराबुद्दीन के भाई रुबाबुद्दीन ने सीबीआइ को एक पत्र लिखकर लोया की मौत पर आश्‍चर्य व्‍यक्‍त किया।


सांसदों के प्रदर्शन या रुबाबुद्दीन के ख़त का कोई नतीजा नहीं निकला। लोया की मौत के इर्द-गिर्द परिस्थितियों को लेकर कोई फॉलो-अप ख़बर मीडिया में नहीं चली।


लोया के परिजनों से कई बार हुए संवाद के आधार पर मैंने इस बात को सिलसिलेवार ढंग से दर्ज किया कि सोहराबुद्दीन के केस की सुनवाई करते वक्‍त उन्‍हें किन हालात से गुज़रना पड़ा और उनकी मौत के बाद क्‍या हुआ? बियाणी ने मुझे अपनी डायरी की प्रति भी दी जिसमें उनके भाई की मौत से पहले और बाद के दिनों का विवरण दर्ज है। इन डायरियों में उन्‍होंने इस घटना के कई ऐसे आयामों को दर्ज किया है जो उन्‍हें परेशान करते थे। मैं लोया की पत्‍नी और बेटे के पास भी गया, लेकिन उन्‍होंने कुछ भी बोलने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि उन्‍हें अपनी जान का डर है।


धुले निवासी बियाणी ने मुझे बताया कि 1 दिसंबर 2014 की सुबह उनके पास एक कॉल आई। दूसरी तरफ़ कोई बार्डे नाम का व्‍यक्ति था जो खुद को जज कह रहा था। उसने उन्‍हें लातूर से कोई 30 किलामीटर दूर स्थित गाटेगांव निकलने को कहा जहां लोया का पार्थिव शरीर भेजा गया था। इसी व्‍यक्ति ने बियाणी और परिवार के अन्‍य सदस्‍यों को सूचना दी थी कि लाश का पंचनामा हो चुका है और मौत की वजह दिल का दौरा पड़ना है।


लोया के पिता आम तौर से गाटेगांव में रहते हैं लेकिन उस वक्‍त वे लातूर में अपनी एक बेटी के घर पर थे। उनके पास भी फोन आया था कि उनके बेटे की लाश गाटेगांव भेजी जा रही है। बियाणी ने मुझे बताया था, ”ईश्‍वर बहेटी नाम के आरएसएस के एक कार्यकर्ता ने पिता को बताया था कि वह लाश के गाटेगांव पहुंचने की व्‍यवस्‍था कर रहा है। कोई नहीं जानता कि उसे क्‍यों, कब और कैसे बृज लोया की मौत की खबर मिली।”


लोया की एक और बहन सरिता मांधाने औरंगाबाद में ट्यूशन सेंटर चलाती हैं और उस वक्‍त वे लातूर में थीं। उन्‍होंने मुझे बताया कि उनके पास सुबह करीब 5 बजे बार्डे का फोन आया था यह बताने के लिए कि लोया नहीं रहे। उन्‍होंने बताया, ”उसने कहा कि बृज नागपुर में गुज़र गए हैं और हमें उसने नागपुर आने को कहा।” वे तुरंत लातूर के हॉस्पिटल अपने भतीजे को लेने निकल गईं जहां वह भर्ती था, लेकिन ”हम जैसे ही अस्‍पताल से निकल रहे थे, ईश्‍वर बहेटी नाम का व्‍यक्ति वहां आ पहुंचा। मैं अब भी नहीं जानती कि उसे कैसे पता था कि हम सारदा हॉस्पिटल में थे।” मांधाने के अनुसार बहेटी ने उन्‍हें बताया कि वे रात से ही नागपुर के लोगों से संपर्क में हैं और इस बात पर ज़ोर दिया कि नागपुर जाने का कोई मतलब नहीं है क्‍योंकि लाश को एम्‍बुलेंस से गाटेगांव लाया जा रहा है।” उन्‍होंने कहा, ”वह हमें अपने घर ले गया यह कहते हुए कि वह सब कुछ देख लेगा।” (इस  कहानी के छपने के वक्‍त तक बहेटी को भेजे मेरे सवालों का जवाब नहीं आया था)।


बियाणी के गाटेगांव पहुंचने तक रात हो चुकी थी- बाकी बहनें पहले ही पैतृक घर पहुंच चुकी थीं। बियाणी की डायरी में दर्ज है कि उनके वहां पहुंचने के बाद लाश रात 11.30 के आसपास वहां लाई गई। चौंकाने वाली बात यह थी कि नागपुर से लाई गई लाश के साथ लोया का कोई भी सहकर्मी मौजूद नहीं था। केवल एम्‍बुलेंस का ड्राइवर था। बियाणी कहती हैं, ”यह चौंकाने वाली बात थी। जिन दो जजों ने उनसे आग्रह किया था कि वे शादी में नागपुर चलें, वे साथ नहीं थे। परिवार को मौत और पंचनामे की खबर देने वाले मिस्‍टर बार्डे भी साथ नहीं थे। 

यह सवाल मुझे परेशान करता है: आखिर इस लाश के साथ कोई क्‍यों नहीं था?” उनकी डायरी में लिखा है, ”वे सीबीआइ कोर्ट के जज थे। उनके पास सुरक्षाकर्मी होने चाहिए थे और कायदे से उन्‍हें लाया जाना चाहिए था।”


लोया की पत्‍नी शर्मिला और उनकी बेटी अपूर्वा व बेटा अनुज मुंबई से गाटेगांव एकाध जजों के साथ आए। उनमें से एक ”लगातार अनुज और दूसरों से कह रहा था कि किसी से कुछ नहीं बोलना है।” बियाणी ने मुझे बताया, ”अनुज दुखी था और डरा हुआ भी था, लेकिन उसने अपना हौसला बनाए रखा और अपनी मां के साथ बना रहा।”


बियाणी बताती हैं कि लाश देखते ही उन्‍हें  दाल में कुछ काला जान पड़ा। उन्‍होंने मुझे बताया, ”शर्ट के पीछे उनकी गरदन पर खून के धब्‍बे थे।” उन्‍होंने यह भी बताया कि उनका ”चश्‍मा गले से नीचे था।” मांधाने ने मुझे बताया कि लोया का चश्‍मा ”उनकी देह के नीचे फंसा हुआ था।”


उस वक्‍त बियाणी की डायरी में दर्ज एक टिप्‍पणी कहती है, ”उनके कॉलर पर खून था। उनकी बेल्‍ट उलटी दिशा में मोड़ी हुई थी। पैंट की क्लिप टूटी हुई थी। मेरे अंकल को भी महसूस हुआ था कि कुछ संदिग्‍ध है।” हरकिशन ने मुझे बताया, ”उसके कपड़ों पर खून के दाग थे।” मांधाने ने बताया कि उन्‍होंने भी ”गरदन पर खून” देखा था। उन्‍होंने बताया कि ”उनके सिर पर चोट थी और खून था… पीछे की तरफ” और ”उनकी शर्ट पर खून के धब्‍बे थे।” हरकिशन ने बताया, ”उसकी शर्ट पर बाएं कंधे से लेकर कमर तक खून था।”


नागपुर के सरकारी मेडिकल कॉलेज द्वारा जारी उनकी पंचनामा रिपोर्ट हालांकि ”कपड़ों की हालत- पानी से भीगा, खून से सना या क़ै अथवा फीकल मैटर से गंदा” के अंतर्गत हस्‍तलिखित एंट्री दर्ज करती है- ”सूखा”।


बियाणी को लाश की स्थिति संदिग्‍ध लगी क्‍योंकि एक डॉक्‍टर होने के नाते ”मैं जानती हूं कि पीएम के दौरन खून नहीं निकलता क्‍योंकि हृदय और फेफड़े काम नहीं कर रहे होते हैं।” उन्‍होंने कहा कि दोबारा पंचनामे की मांग भी उन्‍होंने की थी, लेकिन वहां इकट्ठा लोया के दोस्‍तों और सहकर्मियों ने ”हमें हतोत्‍साहित किया, यह कहते हुए कि मामले को और जटिल बनाने की ज़रूरत नहीं है।”


हरकिशन बताते हैं कि परिवार तनाव में था और डरा हुआ था लेकिन लोया की अंत्‍येष्टि करने का उस पर दबाव बनाया गया।


कानूनी जानकार कहते हैं कि यदि लोया की मौत संदिग्‍ध थी- यह तथ्‍य कि पंचनामे का आदेश दिया गया, खुद इसकी पुष्टि करता है- तो एक पंचनामा रिपोर्ट बनाई जानी चाहिए थी और एक मेडिको-लीगल केस दायर किया जाना चाहिए था। पुणे के एक वरिष्‍ठ वकील असीम सरोदे कहते हैं, ”कानूनी प्रक्रिया के मुताबिक अपेक्षा की जाती है कि पुलिस विभाग मृतक के तमाम निजी सामान को ज़ब्‍त कर के सील कर देगा, पंचनामे में उनकी सूची बनाएगा और जस का तस परिवार को सौंप देगा।” बियाणी कहती हैं कि परिवार को पंचनामे की प्रति तक नहीं दी गई।


लोया का मोबाइल फोन परिवार को लौटा दिया गया लेकिन बियाणी कहती हैं कि बहेटी ने उसे लौटाया, पुलिस ने नहीं। वे बताती हैं, ”हमें तीसरे या चौथे दिन उनका मोबाइल मिला। मैंने तुरंत उसकी मांग की थी। उसमें उनकी कॉल और बाकी चीज़ों का विवरण होता। हमें सब पता चल गया होता अगर वह मिल जाता। और एसएमएस भी। इस खबर के एक या दो दिन पहले एक संदेश आया था, ”सर, इन लोगों से बचकर रहिए।’ वह एसएमएस फोन में था। बाकी सब कुछ डिलीट कर दिया गया था।”


बियाणी के पास लोया की मौत वाली रात और अगली सुबह को लेकर तमाम सवाल हैं। उनमें एक सवाल यह था कि लोया को ऑटोरिक्‍शा में क्‍यों और कैसे अस्‍पताल ले जाया गया जबकि रवि भवन से सबसे करीबी ऑटो स्‍टैंड दो किलोमीटर दूर है। बियाणी कहती हैं, ”रवि भवन के पास कोई ऑटो स्‍टैंड नहीं है और लोगों को तो दिन के वक्‍त भी रवि भवन के पास ऑटो रिक्‍शा नहीं मिलता। उनके साथ के लोगों ने आधी रात में ऑटोरिक्‍शा का इंतज़ाम कैसे किया होगा?”


बाकी सवालों के जवाब भी नदारद हैं। लोया को अस्‍पताल ले जाते वक्‍त परिवार को सूचना क्‍यों नहीं दी गई? उनकी मौत होते ही ख़बर क्‍यों नहीं की गई? पंचनामे की मंजूरी परिवार से क्‍यों नहीं ली गई या फिर प्रक्रिया शुरू करने से पहले ही क्‍यों नहीं सूचित कर दिया गया कि पंचनामा होना है? पोस्‍ट-मॉर्टम की सिफारिश किसने की और क्‍यों? आखिर लोया की मौत के बारे ऐसा क्‍या संदिग्‍ध था कि पंचनामे का सुझाव दिया गया? दांडे अस्‍पताल में उन्‍हें कौन सी दवा दी गई? क्‍या उस वक्‍त रवि भवन में एक भी गाड़ी नहीं थी लोया को अस्‍पताल ले जाने के लिए, जबकि वहां नियमित रूप से मंत्री, आइएएस, आइपीएस, जज सहित तमाम वीआइपी ठहरते हैं? महाराष्‍ट्र असेंबली का शीत सत्र नागपुर में 7 दिसंबर से शुरू होना था और सैकड़ों अधिकारी पहले से ही इसकी तैयारियों के लिए वहां जुट जाते हैं। रवि भवन में 30 नवंबर और 1 दिसंबर को ठहरे बाकी वीआइपी कौन थे?” वकील सरोदे कहते हैं, ”ये सारे सवाल बेहद जायज़ हैं। दांडे अस्‍पताल में लोया को दी गई चिकित्‍सा की सूचना परिवार को क्‍यों नहीं दी गई? क्‍या इन सवालों के जवाब से किसी के लिए दिक्‍कत पैदा हो सकती है?”


बियाणी कहती हैं, ”ऐसे सवाल अब भी परिवार, मित्रों और परिजनों को परेशान करते हैं।”


वे कहती हैं कि उनका संदेह और पुख्‍ता हुआ जब लोया को नागपुर जाने के लिए आग्रह करने वाले जज परिवार से मिलने उनकी मौत के ”डेढ़ महीने बाद” तक नहीं आए। इतने दिनों बाद जाकर परिवार को लोया के आखिरी क्षणों का विवरण जानने को मिल सका। बियाणी के अनुसार दोनों जजों ने परिवार को बताया कि लोया को सीने में दर्द रात साढ़े बारह बजे हुआ था, फिर वे उन्हें दांडे अस्‍पताल एक ऑटोरिक्‍शा में ले गए, और वहां ”वे खुद ही सीढ़ी चढ़कर ऊपर गए और उन्‍हें कुछ चिकित्‍सा दी गई। उन्‍हें मेडिट्रिना अस्‍पताल ले जाया गया जहां पहुंचते ही उन्‍हें मृत घोषित कर दिया गया।”


इसके बावजूद कई सवालों के जवाब नहीं मिल सके हैं। बियाणी ने बताया, ”हमने दांडे अस्‍पताल में दी गई चिकित्‍सा के बारे में पता करने की कोशिश की लेकिन वहां के डॉक्‍टरों और स्‍टाफ ने कोई भी विवरण देने से इनकार कर दिया।”


मैंने लोया की पोस्‍ट-मॉर्टम रिपोर्ट निकलवाई जो नागपुर के सरकारी मेडिकल कॉलेज में की गई थी। यह रिपोर्ट अपने आप में कई सवालों को जन्‍म देती है।


रिपोर्ट के हर पन्‍ने पर सीनियर पुलिस इंस्‍पेक्‍टर, सदर थाना, नागपुर के दस्‍तखत हैं, साथ ही  एक और व्‍यक्ति के दस्‍तखत हैं जिसने नाम के साथ लिखा है ”मैयाताजा चलतभाऊ” यानी मृतक का चचेरा भाई। ज़ाहिर है, पंचनामे के बाद इसी व्‍यक्ति ने लाश अपने कब्‍ज़े में ली होगी। लोया के पिता कहते हैं, ”मेरा कोई भाई या चचेरा भाई नागपुर में नहीं है। किसने इस रिपोर्ट पर साइन किया, यह सवाल भी अनुत्‍तरित है।”


इसके अलावा, रिपोर्ट कहती है कि लाश को मेडिटिना अस्‍पताल से नागपुर मेडिकल कॉलेज सीताबर्दी पुलिस थाने के द्वारा भेजा गया और उसे लेकर थाने का पंकज नामक एक सिपाही आया था, जिसकी बैज संख्‍या 6238 है। रिपोर्ट के मुताबिक लाश 1 दिसंबर 2014 को दिन में 10.50 पर लाई गई, पोस्‍ट-मॉर्टम 10.55 पर शुरू हुआ और 11.55 पर खत्‍म हुआ।


रिपोर्ट यह भी कहती है कि पुलिस के अनुसार लोया को ”1/12/14 की सुबह 4.00 बजे सीने में दर्द हुआ और 6.15 बजे मौत हुई।” इसमें कहा गया है कि ”पहले उन्‍हें दांडे अस्‍पताल ले जाया गया और फिर मेडिट्रिना अस्‍पताल लाया गया जहां उन्‍हें मृत घोषित किया गया।”


रिपोर्ट में मौत का वक्‍त सबह 6.15 बजे बेमेल जान पड़ता है क्‍योंकि लोया के परिजनों के मुताबिक उन्‍हें सुबह 5 बजे से ही फोन आने लग गए थे। मेरी जांच के दौरान नागपुर मेडिकल कॉलेज और सीताबर्दी थाने के दो सूत्रों ने बताया कि उन्‍हें लोया की मौत की सूचना आधी रात को ही मिल चुकी थी और उन्‍होंने खुद रात में लाश देखी थी। उनके मुताबिक पोस्‍ट-मॉर्टम आधी रात के तुरंत बाद ही कर दिया गया था। परिवार के लोगों को आए फोन के अलावा सूत्रों के दिए विवरण पोस्‍ट-मॉर्टम रिपोर्ट के इस दावे पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं कि लोया की मौत का समय सुबह 6.15 बजे था।


मेडिकल कॉलेज के सूत्र- जो पोस्‍ट-मॉर्टम जांच का गवाह है- ने मुझे यह भी बताया कि वह जानता था कि ऊपर से आदेश आया था कि ”इस तरह से लाश में चीरा लगाओ कि पीएम हुआ जान पड़े और फिर उसे सिल दो।”


रिपोर्ट मौत की संभावित वजह ”कोरोनरी आर्टरी इनसफीशिएंसी” को बताती है। मुंबई के प्रतिष्ठित कार्डियोलॉजिस्‍ट हसमुख रावत के मुताबिक ”आम तौर से बुढ़ापे, परिवार की हिस्‍ट्री, धूम्रपान, उच्‍च कोलेस्‍ट्रॉल, उच्‍च रक्‍तचाप, मोटापा, मधुमेह आदि के कारण कोरोनरी आर्टरी इनसफीशिएंसी होती है।” बियाणी कहती हैं कि उनके भाई के साथ ऐसा कुछ भी नहीं था। वे कहती हैं, ”बृज 48 के थे। हमारे माता-पिता 85 और 80 साल के हैं और वे स्‍वस्‍थ हैं। उन्‍हें दिल की बीमारी की कोई शिकायत नहीं है। वे केवल चाय पीते थे, बरसों से दिन में दो घंटे टेबल टेनिस खेलते आए थे, उन्‍हें न मधुमेह था न रक्‍तचाप।”


बियाणी ने मुझे बताया कि उन्‍हें अपने भाई की मौत की आधिकारिक मेडिकल वजह विश्‍वास करने योग्‍य नहीं लगती। वे कहती हैं, ”मैं खुद एक डॉक्‍टर हूं और एसिडिटी हो या खांसी, छोटी सी शिकायत के लिए भी बृज मुझसे ही सलाह लेते थे। उन्‍हें दिल के रोग की कोई शिकायत नहीं थी और हमारे परिवार में भी इसकी कोई हिस्‍ट्री नहीं है।”


दूसरा अध्‍याय


बृजगोपाल हरकिशन लोया को जून 2014 में सीबीआइ की विशेष अदालत में उनके पूर्ववर्ती जज जेटी उत्‍पट के तबादले के बाद नियुक्‍त किया गया था। अमित शाह ने अदालत में पेश होने से छूट मांगी थी जिस पर उत्‍पट ने उन्‍हें फटकार लगाई थी। इसके बाद ही उनका तबादला हुआ। आउटलुक में फरवरी 2015 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार: ”इस एक साल के दौरान जब‍ उत्‍पट सीबीआइ की विशेष अदालत की सुनवाई देखते रहे और बाद में भी, कोर्ट रिकॉर्ड के मुताबिक अमित शाह एक बार भी अदालत नहीं पहुंचे थे। यहां तक कि बरी किए जाने के आखिरी दिन भी वे अदालत नहीं आए और शाह के वकील ने उन्‍हें इस मामले में रियायत दिए जाने का मौखिक प्रतिवेदन दिया जिसका आधार यह बताया कि वे ”मधुमेह ग्रस्त हैं और चल-फिर नहीं सकते” या कि ”वे दिल्‍ली में व्‍यस्‍त हैं।”


आउटलुक की रिपोर्ट कहती है, ”6 जून, 2014 को उत्‍पट ने शाह के वकील के सामने नाराज़गी ज़ाहिर कर दी। उस दिन तो उन्‍होंने शाह को हाजिरी से रियायत दे दी और 20 जून की अगली सुनवाई में हाजिर होने का आदेश दिया लेकिन वे फिर नहीं आए। मीडिया में आई रिपोर्टों के मुताबिक उत्‍पट ने शाह के वकील से कहा, ‘आप हर बार बिना कारण बताए रियायत देने की बात कह रहे हैं।”’ रिपोर्ट कहती है कि उत्‍पट ने ”सुनवाई की अगली तारीख 26 जून मुकर्रर की लेकिन 25 जून को उनका तबादला पुणे कर दिया गया।” यह सुप्रीम कोर्ट के सितंबर 2012 में आए उस आदेश का उल्‍लंघन था जिसमें कहा गया था कि सोहराबुद्दीन मामले की सुनवाई ”एक ही अफ़सर द्वारा शुरू से अंत तक की जाए।”


लोया ने शुरू में अदालत में हाजिर न होने संबंधी शाह की दरख्‍वास्‍त पर नरमी बरती। आउटलुक लिखता है, ”उत्‍पल के उत्‍तराधिकारी लोया रिआयती थे जो हर तारीख पर शाह की हाजिरी से छूट दे देते थे।” लेकिन हो सकता है कि ऊपर से दिखने वाली यह नम्रता प्रक्रिया का मामला रही हो। आउटलुक की स्‍टोरी कहती है, ”ध्‍यान देने वाली बात है कि उनकी एक पिछली नोटिंग कहती है कि शाह को ‘आरोप तय होने तक’ निजी रूप से हाजिर होने से छूट जाती है।’ साफ़ है कि लोया भले उनके प्रति दयालु दिख रहे हों, लेकिन शाह को आरोपों से मुक्‍त करने की बात उनके दिमाग में नहीं रही होगी।” मुकदमे में शिकायतकर्ता रहे सोहराबुद्दीन के भाई रुबाबुद्दीन के वकील मिहिर देसाई के मुताबिक लोया 10,000 पन्‍ने से ज्‍यादा लंबी पूरी चार्जशीट को देखना चाहते थे और साक्ष्‍यों व गवाहों की जांच को लेकर भी काफी संजीदा थे। देसाई कहते हें, ”यह मुकदमा संवेदनशील और अहम था जो एक जज के बतौर श्री लोया की प्रतिष्‍ठा को तय करता।” देसाई ने कहा, ”लेकिन दबाव तो लगातार बनाया जा रहा था।”


लोया की भतीजी नूपुर बालाप्रसाद बियाणी मुंबई में उनके परिवार के साथ रहकर पढ़ाई करती थी। उसने मुझे बताया कि वे देख रही थीं कि उनके अंकल पर किस हद तक दबाव था। उन्‍होंने बताया, ”वे जब कोर्ट​ से घर आते तो कहते थे, ‘बहुत टेंशन है।’ तनाव काफी था। यह मुकदमा बहुत बड़ा था। इससे​ कैसे निपटें?हर कोई इसमें शामिल है।” नूपुर के मुताबिक यह ”राजनीतिक मूल्‍यों” का प्रश्‍न था।


देसाई ने मुझे बताया, ”कोर्टरूम में हमेशा ही जबरदस्‍त तनाव कायम रहता था। हम लोग जब सीबीआइ के पास साक्ष्‍य के बतौर जमा कॉल विवरण का अंग्रेजी अनुवाद मांगते थे, तब डिफेंस के वकील लगातार अमित शाह को सारे आरोपों से बरी करने का आग्रह करते रहते थे।” उन्‍हेांने बताया कि टेप की भाषा गुजराती थी जो न तो लोया को और न ही शिकायतर्ता को समझ में आती थी।


देसाई ने बताया कि डिफेंस के वकील लगातार अंग्रेजी में टेप मुहैया कराए जाने की मांग को दरकिनार करते रहते थे और इस बात का दबाव डालते थे कि शाह को बरी करने संबंधी याचिका पर सुनवाई हो। देसाई के मुताबिक उनके जूनियर वकील अकसर कोर्टरूम के भीतर कुछ अनजान और संदिग्‍ध से दिखने वाले लोगों की बात करते थे, जो धमकाने के लहजे में शिकायतकर्ता के वकील को घूरते थे और फुसफुसाते रहते थे।


देसाई याद करते हुए बताते हैं कि 31 अक्‍टूबर को एक सुनवाई के दौरान लोया ने पूछा कि शाह क्‍यों नहीं आए। उनके वकीलों ने जवाब दिया कि खुद लोया ने उन्‍हें आने से छूट दे रखी है। लोया की टिप्‍पणी थी कि शाह जब राज्‍य में न हों, तब यह छूट लागू होगी। उन्‍होंने कहा कि उस दिन शाह मुंबई में ही थे। वे महाराष्‍ट्र में बीजेपी की नई सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में हिस्‍सा लेने आए थे और अदालत से महज 1.5 किलोमीटर दूर थे। उन्‍होंने शाह के वकील को निर्देश दिया कि अगली बार जब वे राज्‍य में हों तो उनकी मौजूदगी सुनिश्चित की जाए और सुनवाई की अगली तारीख 15 दिसंबर मुकर्रर कर दी।


अनुराधा बियाणी ने मुझे बताया कि लोया ने उन्‍हें कहा था कि मोहित शाह- जो जून 2010 से सितंबर 2015 के बीच बंबई उच्‍च न्‍यायालय के मुख्‍य न्‍यायाधीश थे- उन्‍होंने लोया को शाह के हक में फैसले के लिए 100 करोड़ रुपये की रिश्‍वत की पेशकश की थी। उनके मुताबिक मोहित शाह ”देर रात उन्‍हें फोन कर के साधारण कपड़ों में मिलने के लिए कहते और उनके ऊपर जल्‍द से जल्‍द फैसला देने का दबाव बनाते थे और यह सुनिश्चित करने को कहते कि फैसला सकारात्‍मक हो। मुख्‍य न्‍यायाधीश मोहित शाह ने खुद रिश्‍वत देने की पेशकश की थी।”


उन्‍होने बताया कि मोहित शाह ने उनके भाई से कहा था कि यदि ”फैसला 30 दिसंबर से पहले आ गया, तो उस पर बिलकुल भी ध्‍यान नहीं जाएगा क्‍योंकि उसी के आसपास एक और धमकादेार स्‍टोरी आने वाली है जो लोगों का ध्‍यान इससे बंटा देगी।”


लोया के पिता हरकिशन ने भी मुझे बताया था कि उनके बेटे ने उनहें रिश्‍वत की पेशकश वाली बात बताई थी। हरकिशन ने कहा, ”हां, उन्‍हें पैसे की पेशकश की गई थी। क्‍या आपको मुंबई में मकान चाहिए, कितनी ज़मीन चाहिए, वह हमें ये सब बताता था। बाकायदे एक ऑफर था।” उन्‍होंने बताया कि उनके बेटे ने इसे स्‍वीकार करने से इनकार कर दिया। हरकिशन ने बताया, ”उसने मुझे बताया था कि या मैं तबादला ले लूंगा या इस्‍तीफ़ा दे दूंगा। मैं गांव जाकर खेती करूंगा।”


इस परिवार के दावों की जांच के लिए मैंने मोहित शाह और अमित शाह से संपर्क किया। इस कहानी के छपने तक उनका कोई जवाब नहीं आया है।  जब भी वे जवाब देते हैं, स्‍टोरी को अपडेट कर दिया जाएगा।


लोया की मौत के बाद एमबी गोसावी को सोहराबुद्दीन केस में जज बनाया गया। गोसावी ने 15 दिसंबर 2014 को सुनवाई शुरू की। मिहिर देसाई बताते हैं, ”उन्‍होंने तीन दिन तक अमित शाह को बरी करने संबंधी डिफेंस के वकीलों की दलीलें सुनीं जबकि सीबीआइ की दलीलों को केवल 15 मिनट सुना गया। उन्‍होंने 17 दिसंबर को सुनवाई पूरी कर ली और आदेश सुरक्षित रख लिया।”


लोया की मौत के करीब एक माह बाद 30 दिसंबर 2014 को गोसावी ने डिफेंस की इस दलील को पुष्‍ट किया कि सीबीआइ की आरोपी को फंसाने के पीछे राजनीतिक मंशा है। इसके साथ ही उन्‍होंने अमित शाह को बरी कर दिया।


ठीक उसी दिन पूरे देश के टीवी परदे पर टेस्‍ट क्रिकेट से एमएस धोनी के संन्‍यास की खबर छायी हुई थी। जैसा कि बियाणी ने याद करते हुए बताया, ”नीचे बस एक टिकर चल रहा था- अमित शाह निर्दोष साबित, अमित शाह निर्दोष साबित।”


लोया की मौत के करीब ढाई महीने बाद मोहित शाह शोक संतप्‍त परिवार के पास मिलने आए। मुझे लोया के परिवार के पास से उनके बेटे अनुज का लिखा एक पत्र मिला जो उसने उसी दिन अपने परिवार के नाम लिखा था जिस दिन मुख्‍य न्‍यायाधीश आए थे। उस पर तारीख पड़ी है 18 फरवरी 2015 यानी लोया की मौत के 80 दिन बाद। अनुज ने लिखा था, ”मुझे डर है कि ये नेता मेरे परिवार के किसी भी सदस्‍य को कोई नुकसान पहुंचा सकते हैं और मेरे पास इनसे लड़ने की ताकत नहीं है।” उसने मोहित शाह के संदर्भ में लिखा था, ”मैंने पिता की मौत की जांच के लिए उनसे एक जांच आयोग गठित करने को कहा था। मुझे डर है कि उनके खिलाफ हमें कुछ भी करने से रोकने के लिए वे हमारे परिवार के किसी भी सदस्‍य को नुकसान पहुंचा सकते हैं। हमारी जिंदगी खतरे में है।”


अनुज ने ख़त में दो बार लिखा था कि ”अगर मुझे और मेरे परिवार को कुछ भी होता है तो उसके लिए इस साजिश में लिप्‍त चीफ जस्टिस मोहित शाह और अन्‍य लोग जिम्‍मेदार होंगे।”


मैं लोया के पिता से नवंबर 2016 में मिला। वे बोले, ”मैं 85 का हो चुका हूं और मुझे अब मौत का डर नहीं है। मैं इंसाफ़ भी चाहता हूं लेकिन मुझे अपनी बच्चियों और उनके बच्‍चों की जान की बेहद फि़क्र है।” बोलते हुए उनकी आंखों में आंसू आ गए। वे रह-रह कर उस पैतृ‍क घर की दीवार पर टंगी लोया की तस्‍वीर की ओर देख रहे थे जिस पर अब माला थी।


(निरंजन टाकले की लिखी यह कहानी और वीडियो अंग्रेज़ी पत्रिका दि कारवां से साभार प्रकाशित है, आवरण तस्‍वीर भी वहीं से साभार – संपादक) 

यह रिपोर्ट 'मिडिया दरबार' वेब साइट पर लगी हुई है। एक जज की मौत मिडिया इस खबर को चलाना नहीं चाहता।'

करणी प्रेस इंडिया के लिए वहीं से ली गई है।



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