मंगलवार, 20 जून 2017

देसी पिस्तौल बनाने वाली फैक्ट्री पकड़ी गई तीन गिरफ्तार

नई दिल्ली 20-6-2017.

पुलिस ने दिल्ली-गाजियाबाद सीमा पर देसी पिस्तौल कट्टे बनाने वाली एक फैक्ट्री के तीन लोगों को गिरफ्तार कर लिया है और फैक्ट्री को सील कर दिया गया है।

 यह तीनों एक वेल्डिंग की दुकान की आड़़ में यह धंधा चलाते थे। इनके पास से 16 देसी पिस्तौल बरामद की गईं हैं। काफी समय से पुलिस की पहुंच से बाहर मास्टरमाइंड कसमुद्दीन भी पकड़ा गया। 


कसमुद्दीन के साथ उसके साथियों अजय कुमार और हाशिम को भी पकड़ा गया है। अब इन तीनों के जरिए पुलिस इनके ग्राहकों तक पहुंचने की कोशिश में लग गई है। 

जॉइंट पुलिस कमिश्नर रवींद्र यादव के अनुसार अतिरिक्त डीसीपी देवेंदर आर्या और इंस्पेक्टर ऐशवीर सिंह के नेतृत्व वाली टीम ने अवैध हथियार बनाने वाले इन लोगों का पता लगाया। 


पुलिस को खबर मिली थी कि दो सप्लायर बाइक से सीलमपुर के पास आएंगे। वहां पहुंचकर पुलिस ने बाइकरों को धर-दबोचा। उन्होंने भागने की कोशिश की लेकिन पुलिस उन्हें पकड़ने में कामयाब रही। अजय ने पुलिस को बताया कि उसने कसमुद्दीन से ₹3,500-₹4000 में पिस्तौल और रजनीश से ₹200 में गोलियां खरीदी थीं। 


अपराध जगत में मशहूर हैं 'कसमू के कट्टे'

पूर्व और उत्तरपूर्व दिल्ली के अपराध जगत में अगर कोई बात लगभग सभी अपराधियों को आपसे में जोड़ती थी तो वह थे 'कसमू के कट्टे'। पुलिस के मुताबिक कसमुद्दीन पिछले 2 दशकों से हथियार बनाता रहा है। वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हथियार मुहैया कराता था। 10 साल पहले भी उसे पकड़ा गया था और जेल भेज दिया गया था। बाहर आने के बाद उसने वेल्डिंग जैसे काम किए लेकिन इससे उसका खर्चा नहीं चल रहा था। वह फिर से हथियार बनाने के धंधे में लग गया। उसने लोन लेकर मशीनें भी खरीदीं। वह दिल्ली, उत्तर प्रदेश और हरियाणा के स्नैचर्स से लेकर कॉन्ट्रैक्ट किलर्स तक को हथियार उपलब्ध कराता था।


पिछली बार पकड़े जाने के बाद कसमुद्दीन ने सारा काम अपने-आप करने का फैसला किया। वह अपनी पहचान छिपाने के लिए अपने ग्राहकों से भी नहीं मिलता था। इस तरकीब से वह लंबे समय तक अपना काम चलाने में कामयाब रहा। कसमुद्दीन दिन में 2 से 3 पिस्तौल बनाया करता था। वह मेरठ के एक सप्लायर, महबूब, से कच्चा माल खरीदता था और छोटे पुर्जे खुद बनाता था। पकड़े जाने से बचने के लिए वह न तो अपने ग्राहकों से फोन पर बात करता था और न ही थोक में ऑर्डर लेता था। इससे वह वर्कशॉप में एक साथ अधिक सामान इकट्ठा करने से बच जाता था। वह केवल पुराने ग्राहकों से ही डील करता था। 


कसमुद्दीन की पिस्तौलों से सभी अपराधी बेहद प्रभावित रहते थे। उसके ग्राहकों के मुताबिक उसके बनाए कट्टे कभी मिसफायर नहीं करते थे।

 जेसीपी ने बताया कि कसमू के बनाए कट्टे आमतौर पर मिलने वाले ₹20 हजार से ₹25 हजार वाले कट्टों के मुकाबले काफी सस्ते मिलते थे। 

फैक्ट्री दिल्ली-गाजियाबाद की सीमा पर होने के कारण अपराधियों को आसानी से मिल भी जाया करते थे।

 कट्टे अक्सर मिसफायर कर जाते  हैं लेकिन कसमू के कट्टे मिस फायर नहीं करते थे। वह इस कला में काफी पारंगत हो गया था जिसकी वजह से उसके बनाए कट्टों की मांग काफी बढ़ गई थी। 






यह ब्लॉग खोजें