शुक्रवार, 7 अप्रैल 2017

आपातकाल लोकतंत्र सेनानियों की तबाही पर TT निहाला व राम प्रताप बेदर्द क्यों बने हैं

आपातकाल के ओलों से तबाह लोकतंत्र सेनानियों के लिए TT और निराला बेदर्द क्यों बने हैं?


- करणीदान सिंह राजपूत-

 श्रीगंगानगर जिले से राज्यमंत्री सुरेंद्र पाल सिंह टीटी और श्रीगंगानगर से सांसद निहालचंद मेघवाल ओलावृष्टि से नष्ट हुई फसलों से तबाह किसानों को राहत के लिए तुरंत कार्यवाही करने में जुटे हैं। हर तरह की मेहरबानी के लिए भी भाग दौड़ कर रहे हैं।मैं इन कार्यों का विरोध नहीं कर रहा। यह किया जाना चाहिए लेकिन मैं इन दोनों महानुभावों से यह महत्वपूर्ण सवाल उठा रहा हूं और इलाके के भाजपा विधायकों से भी मेरा यह सवाल है कि सन 1975 में आपातकाल लगाए जाने से लोकतंत्र रक्षा करने वाले सेनानियों के लिए किसी के भी दिल में दर्द क्यों नहीं है? 

आज प्रजातंत्र में जो सुविधाएं मंत्री विधायक सांसद भोग रहे हैं,वह लोकतंत्र की रक्षा करने के लिए उस समय जागरूक कार्यकर्ताओं ने अपनी जवानी अपना व्यवसाय अपने नौकरियां सब कुछ दाव पर लगा दिया था,उन लोगों की कुर्बानियों के कारण है। उनके कारण भारतीय जनता पार्टी सत्ता में बैठी है। श्रीगंगानगर जिले में सूरतगढ़ में राजस्थान में सबसे पहले आपातकाल के विरोध में आवाज उठी और आंदोलन की शुरुआत हुई ।

उस समय की कांग्रेस सरकार ने बदले की भावना से लोकतंत्र प्रहरियों को मीसा रासुका और शांति भंग की विभिन्न धाराओं में गिरफ्तार किया था। राजस्थान में जनता पार्टी की सरकार आने पर मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत के कार्यकाल में आपातकाल बंदियों को राजनीतिक बंदी मानते हुए ₹500 प्रतिमाह की राहत प्रदान की थी। उसका रिकार्ड सरकार के पास है। वर्तमान भारतीय जनता पार्टी की सरकार में सन 2014 से मीसा और रासुका बंदियों को पेंशन शुरू की गई। लेकिन सीआरसीपीे की धाराओं 107/ 151 /116 में बंदी रहे लोकतंत्र सेनानी गिरफ्तार हुए थे उनके लिए पेंशन सुविधा जारी नहीं की। 

वर्तमान स्थिति में जो लोग जीवित बचे हैं उनकी उम्र 70 साल से अधिक और अनेक लोग 80 और 90 वर्ष के करीब की उम्र में है। जीवन के अंतिम पड़ाव में है। अनेक लोग संसार छोड़ चुके हैं।

 लोकतंत्र सेनानियों की पत्नियां वृद्धावस्था में बड़ी कठिनाइयों में अपना वैधव्य जीवन गुजार रही हैं। 

राजस्थान की वर्तमान सरकार मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की ओर से कुछ भी कहा नहीं जा रहा।भारतीय जनता पार्टी के राजस्थान के अध्यक्ष अशोक परनामी द्वारा  किसी भी पत्र का जवाब नहीं दिया जा रहा।

 ऐसे में सवाल उठता है कि आपातकाल में जिन लोगों ने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया था उनके लिए इलाके के जनप्रतिनिधि क्या कर रहे हैं? आज ओलावृष्टि पर नहरी पानी के मामले में भागदौड़ हो रही है, सुविधाएं हो रही है। करोड़ों रुपए जनप्रतिनिधि अपने कोटे से लगा रहे हैं, तो आपातकाल के तबाह हुए लोकतंत्र प्रहरियों के लिए इलाके के यह जनप्रतिनिधि कुछ भी बोल क्यों नहीं रहे, लिख क्यों नहीं रहे? 

एक भी जनप्रतिनिधि वृदावस्था भोग रहे लोकतंत्र सेनानियों से कभी मिलने नहीं गया । कभी उनसे हाल-चाल नहीं पूछें। कभी उनसे नहीं पूछा कि उनका जीवन यापन कैसे चल रहा है।क्या उनके दिल में मामूली सा दर्द नहीं है। कभी उन महिलाओं से दुख दर्द  नहीं जाना।श्रीगंगानगर जिले में कितने लोग किन विपदाओं में  जीवन गुजार रही है। 

वर्तमान जनप्रतिनिधि आपातकाल में जेलों में नहीं गए थे।इन्होंने कोई आंदोलन नहीं किया था, इसलिए इनके दिल में कोई दर्द नहीं है। राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी आपातकाल में जेल में नहीं थी न कहीं प्रदर्शन किया हुआ था, इसलिए उनके दिल में भी आपातकाल से तबाह लोगों के प्रति दिल में कोई जगह नहीं है। यह जनप्रतिनिधि जो इलाके के हैं,क्या वे अपनी कुर्सी के लिए वसुंधरा राजे को कह नहीं पाते। लिख नहीं पाते। उनको भय है की उनकी कुर्सी चली जाएगी।भविष्य में चुनाव के लिए टिकट नहीं मिलेगी। मतलब केवल अपने पद अपने परिवार की ही परवाह है,जिन लोगों ने कुर्बानियां दी उनकी तरफ इनका कोई ध्यान नहीं है। 

मैं यह कहना चाहता हूं कि अगर मामूली सी गैरत है,मामूली सी भी इंसानियत है, तो इस विषय पर गौर करें और  लोगों से मिले तथा वसुंधरा राजे को शांति भंग में गिरफ्तार किए गए जेलों में बंद रहे लोगों को भी पेंशन देने के लिए मजबूर करें। 

ऐसा हो नहीं सकता कि अनेक जनप्रतिनिधि वसुंधरा को कहे और वसुंधरा कहना नहीं माने।जनप्रतिनिधियों के कहने से वसुंधरा को भी कहना मानना पड़ेगा। शांतिभंग 107/ 151/ 116 बटा 3 सीआरपीसी में बंदी रहे लोकतंत्र सेनानियों को पेंशन दिए जाने के लिए एक प्रावधान तैयार किया गया था जो एक  साल अधिक से वसुंधरा के पास पड़ा हुआ है। 

हाल ही में राजस्थान की विधानसभा में ध्यानाकर्षण प्रस्ताव पर यह कहा गया की एक समिति बनाई जाएगी। लेकिन समिति बनाने में ही अगर 6 महीने या साल का समय बीत गया तो उसका लाभ नहीं मिल पाएगा ।समिति तत्काल बनाई जाए और उसको रिपोर्ट देने का समय दें तीस  दिन का दिया जाए तो उसका कुछ लाभ मिल सकता है। 

मैं इस विषय में एक और सख्त बात कहना चाहता हूं  जो लोग आपातकाल में शांति भंग की धाराओं में जेलों में बंद रहे, उनकी विधवा औरतें पेंशन मांग रही है तो वह सरकारी खजाने से मांग रखी है। वसुंधरा राजे को अपने निजी खजाने से पैसा नहीं देना है। यह पैसा गुलाबचंद कटारिया राजेंद्र सिंह राठौड़ अरुण चतुर्वेदी की जेब से नहीं लगना है।यह पैसा सुरेंद्र पाल सिंह टीटी सांसद निहालचंद या हनुमानगढ़ से चुने जाने वाले डॉक्टर रामप्रताप की जेब से खर्च होने वाला नहीं है।जब यह पैसा सरकारी खजाने से दिया जाना है तब इन जनप्रतिनिधियों की सोच पर मुझे तरस आता है।

आज ओलावृष्टि पर आप तुरंत सर्वे करवाना चाहते हैं तुरंत राहत भी दिलाना चाहते हैं लेकिन जो लोग 41- 42 साल पहले तबाह हो गए अपनी जवानी और व्यवसाय लोकतंत्र के लिए दांव पर लगा दिया उन लोगों के लिए आपके पास में 1 मिनट नहीं है।

यह ब्लॉग खोजें