एटा सिंगरासर माइनर आंदोलन में टकराव नहीं हो
- करणीदानसिंह राजपूत -
सूरतगढ़ 25 मार्च2017.
एटा सिंगरासर माइनर आंदोलन के नेताओं की ओर से 27 मार्च को सूरतगढ़ बंद करने के साथ ही प्रशासन को ठप करने की चेतावनी भी जारी की हुई है। प्रशासनिक कार्यालयों के चारों तरफ लक्कड़ के अवरोधक लगाकर रास्ते बंद किए हुए हैं।SDM कार्यालय के एडीएम और तहसील कार्यालय सभी के रास्तों पर अवरोधक लगे हुए हैं। पहले प्रशासन ने शहर में धारा 144 लगाई। आंदोलनकारी शहर में घुसे और इंदिरा सर्किल पर सभा की। प्रशासन पर दबाव बनाया और आखिर प्रशासन को पुलिस थाने के सामने प्रशासनिक कार्यालयों से थोड़ी सी दूरी पर महापड़ाव डालने की अनुमति देनी पड़ी। यह महापड़ाव वाली जगह कोई ज्यादा दूर नहीं है। प्रशासन तो सरकार के नीति निर्देश पर कार्य करता है। सरकार की इच्छा इससे प्रगट हो रही है। वैसे जिला कलेक्टर जिला पुलिस अधीक्षक और सूरतगढ़ के प्रशासनिक अधिकारी किसी प्रकार का भी टकराव का आरोप अपने सिर पर लेने के इच्छुक नहीं हैं। आंदोलन कब शांत रहे और कब अशांत हो जाय।उसका कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता। आंदोलनकारियों ने 27 मार्च को प्रशासन ठप करने की चेतावनी दी है तो यह मान कर ही चलना चाहिए थी प्रशासन की मामूली सी चूक होते ही मामला गड़बड़ हो सकता है। आंदोलन में महिलाओं की संख्या भी काफी है जिन्हें रोका जाना निश्चित रूप से असंभव होगा। महिला पुलिस आंदोलनकारियों से जूझे और रोक पाए यह समय बताएगा। आंदोलनकारियों में बहुत जोर व जोश है और वे हर संभव प्रयास कर रहे हैं कि सरकार उनकी मांग को मान ले। टिब्बा क्षेत्र निश्चित रूप से सिंचाई के लिए प्यासा है, बल्कि समुचित पेयजल भी अनेक बार उपलब्ध नहीं होता। इलाके के लोग और इस इलाके के सभी राजनेता इस स्थिति को समझते हैं लेकिन वे सत्ता में आते ही बेबस हो जाते हैं और मुख्यमंत्री जो चाहे उस हिसाब से खुद को बांधकर चलते हैं। विदित रहे कि राजेंद्र सिंह भादू पर निष्क्रियता का आरोप लग रहा है। ये वर्तमान में सूरतगढ़ से विधायक हैं। राजेंद्र सिंह भादू ने 2008 के चुनाव से पहले एटा सिंगरासर माइनर की मांग उठाई थी और कानौर हेड पर इलाके के किसानों को महिलाओं को एकत्रित करके और संगठित रूप से आंदोलन की शुरुआत की थी। इसके बाद 2008 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी गंगाजल मील राजेंद्र सिंह भादू की इस मांग को ले उड़े। भादू पीछे रह गये। गंगाजल मील ने लोगों को प्रभावित किया यह समझो कि इस मांग को अच्छे ढंग से प्रचारित किया और वे चुनाव जीते तथा विधायक बन गए। गंगा जल मील ने इस महत्वपूर्ण मांग में बड़ा परिवर्तन करवा दिया। राजेंद्र सिंह भादू की ओर से मांग थी इंदिरा गांधी नहर से एटा सिंगरासर माइनर निकालने की ताकि इंदिरा गांधी नहर से पानी लगातार इस माइनर को मिलता रहे। गंगाजल मील ने और तत्कालीन सरकार ने इसमें महत्वपूर्ण परिवर्तन किया। इसे लघु सिंचाई योजना बना दिया और 5 गांव तक सीमित कर दिया। इसके अलावा इंदिरा गांधी नहर के बजाए घग्घर कृत्रिम झील से पानी देने की योजना बना ली झील का पानी इंदिरा गांधी नहर में डाला जाएगा और आगे एटा सिंगरासर माइनर में निकाल लिया जाएगा।झील में पानी होगा तब ही मिल पायेगा। इसके लिए बजट भी उपलब्ध हुआ सर्वे भी हुआ मगर योजना सिरे ही नहीं चढ़ पाई। किसानों को सच्चाई नहीं बताई गई। इसके बाद सरकार बदल गई। गंगाजल मील को हरा कर राजेंद्र सिंह भादू भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर विधायक बन गए। अब चूंकि राजेंद्र सिंह भादू की ही शुरुआत में मांग थी इसलिए उनकी जिम्मेदारी भी बन गई कि किसी भी हालत में सरकार पर दबाव बनाए या अपनी मांग की अपील में इतना दम पैदा करते कि सरकार यह बात तुरंत मान लेती। राजेंद्र सिंह भादू की कार्यप्रणाली जैसी है वह इलाके के लोग भली-भांति जानते हैं। उस पर यहां किसी प्रकार की टिप्पणी करना उचित नहीं है। यह कहा जा सकता है कि आंदोलनकारियों में और विधायक के बीच में जो सामंजस्य होना चाहिए वह बन नहीं पाया। यह कहना भी उचित होगा कि विधायक को इसके लिए अधिक से अधिक प्रयास करके आंदोलनकारियों के दिल में जगह बनानी चाहिए थी। दोनों के बीच बातचीत का अभाव रहा है। राजेंद्र सिंह भादू ने आंदोलनकारियों से जहां तक ध्यान में है एक बार बात की। पानी की मांग को लेकर वसुंधरा राजे से भेंट भी करके आए लेकिन जो बात प्रभावशाली ढंग से वसुंधरा राजे को समझाई जानी चाहिए थी,,वह हो नहीं पाई। जल संसाधन मंत्री डा राम प्रताप इस इलाके के हैं। वे हनुमानगढ़ से जीतते रहे हैं, और इंदिरा गांधी नहर बोर्ड के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। अनुभवी हैं लेकिन वह भी अपने अनुभव के हिसाब से कार्य नहीं कर पाए। कम से कम डॉ राम प्रताप जी को एटा सिंगरासर माइनर की मांग को मनवाने का काम करवाना चाहिए था। यह काम केवल इस इलाके के किसान की मांग नहीं है बल्कि इस इलाके के हर प्रकार के विकास का कदम है। यहां से जो उत्पादन होगा वह किसान अपने घर में जमा करके नहीं रखेगा। उस उत्पादन से राजस्थान का लाभ होगा और साथ में राष्ट्र का भी लाभ होगा। जब खेती विकसित होती है तो उसके साथ साथ खेती से संबंधित विभिन्न उद्योग-धंधे भी पनपते हैं।रोजगार पनपते हैं। डॉक्टर रामप्रताप को यह सब मालूम है लेकिन ना जाने क्यों वे मुख्यमंत्री के आगे इस महत्वपूर्ण मांग को रख नहीं पाए। इलाके के दूसरे राज्य मंत्री हैं सुरेंद्र पाल सिंह टीटी उनकी भी जिम्मेदारी बनती है लेकिन वे कन्नी काटते रहे। एटा सिंगरासर माइनर जिन जिन गांवों में पानी पहुंचा सकती है। वहां के सभी विधायकों को भी इस मांग के साथ जुड़कर सरकार पर दबाव बनाना चाहिए था, लेकिन सभी सत्ता के अंदर जाने के बाद पत्थर बन गए हैं। लेकिन इतिहास को भी नहीं जानते कि जब क्रांति आती है तब यह मजबूत पहाड़ भी पत्थर टुकड़े टुकड़े होकर खंडित हो कर बिखर जाते हैं। कोई पावर इनकी नहीं रह पाती। यहां एक महत्वपूर्ण बात और है कि कहा जाता है कि सिंगरासर माइनर मैं पांच लिफ्ट होंगी, जिनका बनाना असंभव है। करोड़ों रुपए लगेंगे आदि आदि। और पानी भी नहीं है। पानी की खोज हो रही है। जम्मू कश्मीर में बहुत ऊंचाई पर रेल लाइन डाली जा सकती है गाड़ी चलाई जा सकती है तो सिंगरासर माइनर क्यों नहीं बनाई जा सकती। वह काम केंद्र सरकार ने किया लेकिन क्या राजस्थान की सरकार पानी नहीं पहुंचा सकती। करोड़ों रुपए सरकार के 3 साल बेमिसाल समारोहों में खर्च हो सकते हैं लेकिन किसानों की मांग पर सरकार के पास बजट नहीं है। वर्तमान भारतीय जनता पार्टी की सरकार का बजट अभी मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने पेश किया। उसमें एटा सिंगरासर माइनर का अंश मात्र वर्णन नहीं है। मुख्यमंत्री अनजान नहीं है। बजट बनाए जाने से पूर्व समस्त इलाकों से सूचनाएं मांगी जाती है। सूचना सरकार के पास थी।वसुंधरा राजे जब इस इलाके में आई थीं तब जनता ने अभूतपूर्व स्वागत करके साथ दिया था लेकिन अब जनता का भरोसा टूट रहा है। जनता जिस तरीके से आंदोलन में जुटी है उससे उनके जोश को कम आंकना सरकार की और इलाके के जनप्रतिनिधियों की मूर्खता होगी। सूरतगढ़ में 25 मार्च को बाजारों में से जुलूस निकला। भयानक गर्मी में दोपहर में महिलाएं इस जलूस में छोटे-छोटे बच्चों को अपनी गोदी में उठाए नारे लगाते हुए चल रही थी। जब इतना जोश हो तो उस जोश को कुचला नहीं जा सकता। सरकार को इसके लिए शीघ्र ही अविलंब रास्ता निकालना चाहिए और अपनी सरकार का भरोसा दिलाना चाहिए। वसुंधरा राजे सूरतगढ़ में झूम झूम कर नाची थी और उनके साथ राजेंद्र सिंह भादू भी थे। ऐसा नहीं हो कि इलाके के किसान ग्रामीण व्यापारी और अन्य संगठन वसुंधरा राजे और विधायक राजेंद्र सिंह भादू को नाचने को मजबूर कर दें। किसानों को आंदोलनकारियों को पुलिस बल से सुरक्षाबलों से 23 मार्च को सूरतगढ़ में प्रवेश करने पर रोकने की असफल कोशिश भी की गई। सरकार ने भारी भरकम सुरक्षा बलों को लगा रखा था। आश्चर्य है कि एक वाहन दंगा नियंत्रण लिखा हुआ भी था। आश्चर्य है कि मांग कर रहे किसानो को सरकार ने दंगाई माना और दंगाई लोगों से मुकाबला करने वाले सुरक्षा बलों को यहां लगाया। आंदोलनकारी किसानों में और दंगाइयों में बहुत अंतर होता है। सरकार को यह समझना चाहिए। अभी भी वक्त है । सब कुछ सरकार के हाथ में है।सरकार के पास कभी भी बजट की कमी नहीं होती। सिंगरासर एटा माइनर निर्माण की बात स्वीकार करते हुए किसानों के साथ उचित समझौता कर लेना चाहिए।