रविवार, 6 नवंबर 2016

कथावाचक मोरारजी बापू ने धरती धोरां री गीत को भजन बताते हुए और महान बना दिया-

- करणी दान सिंह राजपूत -
राजस्थान की धरती को अमर साहित्यकार कन्हैयालाल जी सेठिया ने धरती धोरां री गीत लिखकर इस धरती के कण-कण को साहित्य में और जनमानस में अमर कर दिया। इस धरती की अनूठी व्याख्या कन्हैयालाल जी ने की वैसी व्याख्या अन्य कोई साहित्यकार आज तक नहीं कर पाया। धरती धोरां को रणबांकुरे और देवी देवताओं की रमण करने वाली धरती बताया गया। इसके कण-कण में लोगों के विश्वास और जीवन पर गीत के रूप में कन्हैयालाल जी ने जो संदेश दिया वह बहुत व्यापक है। उस पर सही रूप में व्याख्या की जाए तो हजारों पृष्ठ कम पड़ जाएंगे। कन्हैयालाल जी ने सरल राजस्थानी में यह गीत लिखा जो आज संपूर्ण भारत देश में और अन्य देशों में समारोह में गाया जाता है। इस गीत से समारोह में जान आकर प्रसिद्धि बढ जाती है। राजस्थान के अंदर राष्ट्रीय समारोह पर व अन्य समारोहों में धरती धोरां री गीत का प्रस्तुतीकरण विशेष रुप से कराया जाता है। यह गीत और इसके रचनाकार कन्हैयालाल जी सेठिया दोनों ही अमर हो गए। इस गीत को महान कथावाचक मोरारजी बापू ने भजन की उपमा देकर जनमानस में और महान तथा अमर बना दिया। मोरारजी बापू रामदेवरा में कथा वाचन कर रहे थे तब उन्होंने श्रद्धालुओं से विशेष अनुरोध किया कि सभी लोग इस गीत धरती धोरांं री को गायें यह तो भजन है। सच में यह गीत इस रूप में समारोहों में गाया जाता है। उससे यही प्रमाणित होता है। मोरारजी बापू ने जो उपमा दी है वह अक्षरक्ष: सत्य है।

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