सत्ताच्युत राजनेताओं को पढऩी चाहिए एक गधे की आत्मकथा:
कामधाम है नहीं तो ठाले बैठे मशहूर लेखक कृश्रचन्द्र की यह किताब ही पढ़लें:
व्यंग्य- करणीदानसिंह राजपूत -
एक गधे की आत्मकथा उर्दू के लेखक कृश्रचन्द्र ने 1968 के आसपास लिखी थी। यह किताब राजनीति पर तगड़ा व्यंग था। किताब बहुत चर्चित हुई। उस समय चारों ओर कांग्रेस का राज था। राजनेताओं ने छिप छिप कर भी पढ़ी। जो भी पढ़ता उसे यह लगता कि किताब तो उसी पर ही लिखी गई है। हर जगह किताब के चर्चे लोगों का ध्यान आकृषित करते। किताब के हाथों हाथ बिकने के कारण कई संस्करण छपे। इसका हिन्दी संस्करण लोगों को बहुत भाया। बाद में इसके कई भाषाओं में अनुवाद भी प्रकाशित हुए। इस किताब का शीर्षक एक गधे की आत्मकथा आज भी प्रसिद्धि पर है। पुस्तक का वृतांत आज भी राजनेताओं पर सटीक बैठता है। आज भी सटीक बैठने का एक महत्वपूर्ण कारण है कि इतने सालों बाद भी हमारे राजनेता और राजनैतिक दल अपने आप को बदल नहीं पाए। सत्ता में होते हैं तब सत्ता को कायम रखने में ही सोचते हैं और उसी सोच के अनुरूप कार्य करते हैं। सत्ता विहीन होते हैं तब केवल सत्ता प्राप्ति की ही सोचते हैं। दोनों काल में जनता के प्रति कोई वफादारी नहीं होती। इसी कारण सारी योजनाएं धरी रह जाती है और उन पर लगाया गया करोड़ों रूपया व्यर्थ हो जाता है,या योजना का कार्य इतना विलंब ले लेता है कि उसका समुचित लाभ नहीं मिल पाता।
इस किताब का महत्व आज भी कायम है इसलिए कह रहा हूं कि सत्ता विहीन राजनेताओं को और उन दलों के कार्यकताओं को इसे पढऩा चाहिए। सत्ता में होते हैं तब समय नहीं होता इसलिए भी यह सलाह है कि सत्ता से बाहर होने पर समय ही समय है।
यह सोच कर भी पढ सकते हैं कि वे आदमी हैं और सत्ताधरी को पढ़ रहे हैं।
पहली बार लिखा गया 24-10-2016.
अपडेट 30-7- 2017.
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