रविवार, 3 जुलाई 2016

एसडीएम पोटलिया को रिश्वत में फंसाने की गहरी साजिश फाइलें बोल रही हैं



पूरी फाइल में अलग रिकार्ड जिसके आधार आवंटन हो गया व एसीबी को दिए अलग दस्तावेज:
गोधाराम ने एसीबी में मुकद्दमा किया उसमें जो दस्तावेज दिए वे आवंटन फाइल में नहीं है और शामिल होते तो भूमि आवंटन ही नहीं हो पाती:
आवंटियों को भूमि का लाभ मिला उनकी तरफ से रिश्वत का आरोप नहीं: स्पेशल रिपोर्ट- करणीदानसिंह राजपूत - 

 
सूरतगढ़। एसडीएम रामचन्द्र पोटलिया ने गोधाराम से न रिश्वत ली और न रिश्वत किसी फर्म आदि में जमा हुई लेकिन किसी खास वजह या रंजिश से शिकायत हुई है तथा रिश्वत का रिकार्ड तैयार किया जाने में गोधाराम व एसीबी लगी हुई है। रिश्वत ली जाती तो आवंटियों से ली जाने की संभावना होती जिनको भूमि का लाभ मिला लेकिन यह शिकायत तीसरे व्यक्ति गोधाराम ने की है तथा जो दस्तावेज एसीबी में दिए वे अगर मूल फाइल में शामिल करवाता तो आवंटन ही नहीं हो पाता। मूल फाइल जो एसडीएम कोर्ट में थी और जिसमें आवंटियों के नाम दस्तावेज सबूत आदि थे उनमें गोधाराम कहीं भी नहीं है। लेकिन गोधाराम ने शिकायत किस आधार पर की या किसी ने साजिश रच कर करवाई? लेकिन दस्तावेजों में यह साबित है कि गोधाराम ने सरकारी भमि को गैरकानूनी रूप में खरीदा व एक आवंटी दलीप ने गैरकानूनी रूप में आवंटन से पहले ही मालिक बनने से पहले ही जब राज की भूमि थी को बेच दिया जिसका इकरारनामा एसीबी में है,लेकिन मूल फाइल में नहीं है।
आवंटन फाइल करीब 29 साल पहले से चलती है जब उपनिवेशन विभाग था।
मानेवाला के दो भाईयों गुरबचनसिंह व दलीपसिंह की भूमि आवंटन के लिए आवेदन सहायक उपनिवेशन आयुक्त को सन् 1988 में दिया गया। भूमि पर इनका कब्जा था। एसीसी ने आवेदन खरिज कर दिया। इसके बाद सन् 1992 में अपील की गई जो रिमांड हो गई। अपीलेंट कोर्ट ने किस्तें जमा करवाने का निर्देश दिया लेकिन एक पेचीदगी के कारण किस्तें जमा नहीं करवाई जा सकी। उपनिवेशन विभाग टूट गया व सारे प्रकरण राजस्व विभाग के पास आ गए। सन् 1996 में यह मामला एसडीएम के सामने अया तब किस्तें नहीं भरवाई गई। कारण यह रहा कि जमीन रकबा राज नहीं था व रिकार्ड में सूरतगढ़ के सैनी परिवार के नाम से इन्द्राज था। हालांकि वह परिवार काबिज नहीं हुआ था। सैनी परिवार की जमीन जो वर्तमान सैनी गार्डन सूरतगढ़ के समीप थी वह सरकारी र्इंट भ_े के लिए आवाप्त करली गई थी और वहां पर स्थानान्तरण मिला जहा पर कब्जा था। बाद में भ_े बंद हुए तब सैनी परिवार ने आवेदन कर वापस स्थानान्तरण सूरतगढ़ में ले लिया। सूचना है कि उस समय सैनी परिवार की वकालत स.हरचंदसिंह सिद्धु की ओर से की गई थी।
गुरबचनसिंह व दलीपसिंह की आवंटन फाइल कई बार भूमि आवंटन सलाहकार समिति के सामने पेश हुई मगर रकबा राज नहीं था रिकार्ड में सैनी दर्ज थे, इसलिए आवंटन रूकता रहा। सैनी परिवार जब वापस सूरतगढ़ आ गया तब रकबा राज हो जाने से आवंटन का रास्ता खुला। इस दौरान गुरबचनसिंह का देहांत हो गया। उसकी पत्नी व दो लड़के वारिस हो गए।
मानेवाला आदि कई ग्राम उन दिनों पीलीबंगा विधानसभा क्षेत्र में आते थे। बावरियों व रायसिखों आदि के कब्जों को दुरूस्त कर उनको आवंटित करने के लिए राजस्थान सरकार ने सन् 2006-7 में एक विशेष नियम बनाया व आदेश जारी किया। उस समय वसुंधरा राजे की सरकार थी।
गुरबचनसिंह ने आवेदन में 17 बीघा 10 बिस्वा का आवेदन किया था व उसी जमीन में दलीप ने 7 बीघा 15 बिस्वा मांगी। सन् 2011-12 में आवंटन सलाहकार समिति के सामने फाइलें आई तब समिति ने रिमांड वाली फाइल में इनको शामिल कर लिया। आवेदन करने वालों से सबेत पेश करने का कहा गया। गुरबचनसिंह की मृत्यु हो जाने के बाद उसकी पत्नी ने मृत्यु प्रमाणपत्र,वारिस प्रमाणपत्र व हल्फनामा आदि एसडीएम रामचन्द्र पोटलिया आवंटन अधिकारी के सामने पेश किए।
आवंटन सलाहकार समिति ने समक्ष समस्त रिकार्ड आया व 22 जनवरी 2016 को भमि का आवंटन कर दिया गया। इसमें दोनों भाईयों यानि दलीपसिंह को व स्व.गुरबचनसिंह के परिवार को आधा आधा बराबर हिस्सा दिया गया। गुरबचनसिंह की पत्नी संतो देवी व दो लड़कों को वह हिस्सा मिला।
दलीपसिंह ने इस निर्णय के विरूद्ध आरएए के अपील कर दी व कहा कि सारी जमीन उसी को मिलनी चाहिए थी। अपीलेन्ट कोर्ट ने दलीपसिंह की उक्त अपील को खारिज कर दिया। अपीलेन्ट कोर्ट ने फैसला दिया कि भूमि आवंटन सलाहकार समिति का फैसला सही है।
आवंटन फाइल में सन 1988 से लेकर 22 जनवरी 2016 तक व अपीलेन्ट कोर्ट में आवेदन व फैसले तक करीब 29 साल तक मूल फाइल में कहीं भी गोधाराम नहीं है।
उक्त गोधाराम मूल फाइल में नहीं है तथा यह इसमें क्यों व कब तथा खुद या किसी के इशारे पर शामिल हुआ है? यह राज है जो अभी परदे के पीछे है।
गोधाराम मूल फाइल में नहीं है लेकिन एसीबी शिकायत में सीधा सामने आया है। एसीबी में जो शिकायत दिसम्बर 2015 में की है जिसमें लिखा है कि उसने दलीपसिंह की कब्जेशुदा जमीन खरीदली है जिसका इकरारनामा व मुखत्यारनामा पेश है। इसमें ही लिखा गया है कि एसडीएम के स्टाफ ने बताया कि एसडीएम बिना रिश्वत के आवंटन नहीं करेगा। स्टाफ का कोई नाम नहीं है। बाद में टेप किया गया जिसमें रिश्वत मांगे जाने का कोई सीधा वाक्य नहीं है। यह एसीबी रिपोर्ट में भी है। आवंटन से पहले गोधाराम एसडीएम से मिला तब एसडीएम ने साफ कहा कि तुम्हारी कोई फाईल नहीं है,तुम किसी और मकसद से आ रहे हो भाग जाओ। यहां एक खुलासा कर दिया जाएताकि समझ में आए कि सरकारी जमीन न कोई खरीद सकता है न कोई बेच सकता है। आवंटन से पहले वह जमीन सरकारी थी। इकरारनामें में भी उल्लेख है कि दलीप की कब्जेशुदा जमीन। वह इकरारनामा आदि मूल फाइल में होता तो सलाहकार समिति दलीप के नाम आवंटन ही नहीं करती और खारिज हो जाती,इसलिए मूल फाइल में वह पेश नहीं किया गया। मुखत्यारनामा भी पेश नहीं था।
आवंटन के बाद दलीप अपील कोर्ट में चला गया और महीने बीतते गए। इसके बाद अचानक यह फाइल फिर खुली।
गोधाराम ने शिकायत की कि मैंने एसीबी को बताए बिना एसडीएम के कथित दलाल के कहे अनुसार तीन लाख रूपए दे दिए। एसीबी से छुप कर रिश्वत दी और वह शिकायत कर रहा है। उस पर केस दर्ज नहीं किया गया। एसडीएम पर शिकंजा कसने के लिए उच्चाधिकरियों को जयपुर इत्तला दी गई व सबूत जुटाने शुरू किए गए। सबूतो में जो अखबारो में छपा कि गोधाराम के आढ़तिए की फर्म नारायणदास राकेश कुमार से तीन लाख रूपए निकाले गए व मां ब्रह्माणी टे्रडिंग कं में जमा करवाए गए की तस्दीक मिली है। दोनों फर्मे जैतसर में हैं। मां ब्रह्माणी टे्रडिंग कं में तीन लाख रूपए जमा होने का कोई उल्लेख खाते में नहीं है। फर्म नारायणदास राकेश कुमार में गोधाराम के नाम से तीन लाख रूपए का इन्द्राज बताया गया हे लेकिन वहां पर कहीं भी गोधाराम के हस्ताक्षर या अंगूठा निशान नहीं है जो हर हालत में दुतानदार लगवाता है।
एसडीएम को रिश्वत दी जाती तो वह लाभ लेने वाले आवंटियों की ओर से तो मानी जा सकती थी कि उनको लाभ मिल रहा था। उनका कहीं भी उल्लेख नहीं है। यह गोधाराम जिस तरह से आया वह अभी तक मिल रही सूचनाओं के अनुसार यहां दे दिया गया है। आगे देखते हैं कि एसीबी क्या कार्यवाही करती है? इस गोधाराम के विरूद्ध भी मुकद्दमा दर्ज होने की स्थिति है जिसने पहले एसीबी को शिकायत की और बाद में उनको बिना बताए छुप कर रिश्वत देने की सूचना देता है।
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