शुक्रवार, 10 जून 2016

राजनीति में कामिनी जिंदल और वसुंधरा राजे का जोरदार मिलन:


मजबूरी जोड़ मजबूरी बराबर नई दोस्ती: आगे जब तक वसुंधरा चाहे:
- करणीदानसिंह राजपूत -
राजनीति में राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और भाजपा को पटखनी देकर जीती हुई विधायक कामिनी जिंदल का जोरदार मिलन हुआ है। इसे बिना फोटो के ही समझ जाऐं कि जैसे शादी ब्याह में खुशी के खासमखास मौकों पर जैसे गले मिल कर झूमते हुए खुशी का इजहार किया जाता है ठीक उस तरह का गले मिलन हुआ है।
राजस्थान से भाजपा के 4 नेताओं को राज्य सभा के लिए प्रत्याशी बनाया गया है और उनकी जीत को पक्की करने के लिए ऐसा किया गया है। राजनीति में ऐसे समझौते या दोस्ती चाहे किसी भी मजबूरी में किए जाते हों लेकिन उनको कभी भी दोनों ओर से मजबूरी नहीं कहा जाता। यह राजनैतिक दलों व उनके नेताओं की सूझबूझ होती है। कोई कितनी ही गालियां निकाल चुका हो जब गले मिलते हैं तो ऐसे मिलते हैं कि लोग ठगे से रह जाते हैं।
श्रीगंगानरगर के वोटरों ने कामिनी जिंदल को इसलिए जिताया कि वे न तो भाजपा को वोट देना चाहते थे और न अपना वोट कांग्रेस को देना चाहते थे।
इसलिए उन्होंने जमींदारा पार्टी की प्रत्याशी कामिनी जिंदल को चुना। वे वोटर अब ठगा सा अनुभव करते ही होंगे जिन्होंने कामिनी जिंदल को चुना। खासकर उन वोटरों की हालत का अंदाजा लगाया जाना चाहिए जिन्होंने भाजपा के होते हुए भाजपा को ठुकराया और कामिनी जिंदल को साथ दिया। वे वोटर न घर के रहे न घाट के रहे। अपने पुराने वर्षों वर्षों के साथियों को छोड़ा। उनकी पुराने दोस्तों से चुनाव में बातें भी हुई होंगी तकरार भी हुई होगी। वे वोटर माने या न माने लज्जा का अनुभव तो करेंगे ही। कोई जोरदार ढंग से कुचरेगा तब कह देंगे कि राजनीति में किसका भरोसा करें किसका भरोसा नहीं करें। कामिनी जिंदल भरोसे वाली नहीं निकली तो अब करें भी क्या? कामिनी जिंदल ने जीत से पहले और बाद में भी वोटरों को जो भरोसा दिया वह भरोसा अब राज की मालिक वसुंधरा राजे को दे दिया।
एक बात है भारतीय वोटर को बहुत समझदार माना जाता है लेकिन समझदारी क्या करे? यह हालत लगभग सभी राजनैतिक पार्टियां जरूरत के समय जिसे मजबूरी का समय भी कह सकते हैं,करती रही है।
अभी तो दोनों की मजबूरी हो सकती है लेकिन राज्य सभा के चुनाव संपन्न होने के बाद मजबूरी केवल कामिनी जिंदल की रहेगी। वसुंधरा राजे की कोई मजबूरी नहीं रहेगी। वसुंधरा राजे की जो पद्धति रही है उसके अनुसार तो उनके पास में वक्त भी नहीं होता। दोनों के बीच क्या अलिखित समझौता हुआ है। उदोनो ही जानती हैं और यदि दोस्ती आगे नहीं चली तब कामिनी जिंदल कैसे बताऐगी?
जनता के सामने जो विचार हैं उनमें कामिनी के पिता बीडी अग्रवाल का मुकद्दमा भी प्रमुख वजह हो सकता है जिसके कारण कामिनी जिंदल ने वसुंधरा का सहारा लेना उचित समझा हो।
अभी तो कोई सटीक बात कही नहीं जा सकती केवल अनुमान लगाते रहें जो जिसके दिमाग में आए।
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