सोमवार, 29 फ़रवरी 2016

महावीर इन्टरनेशनल का संभागीय अधिवेशन बीकानेर 2016


 जीना है तो पूरा जीना, मरना है तो पूरा मरना, अभिशाप है जीवन में, आधा जीना आधा मरना
बीकानेर 28.02.2016,
महावीर इन्टरनेशनल का संभागीय अधिवेशन भोमिया भवन, रानी बाजार, बीकानेर में महावीर इन्टरनेशनल बीकानेर सेवा केन्द्र की मेजबानी में आयोजित किया गया। यह अधिवेशान वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय, कोटा के पूर्व वाईस चांसलर प्रो. डॉ. घनश्याम लाल देवड़ा के मुख्य आतिथ्य में सम्पन्न हुआ। आयोजन के अन्य अतिथि महावीर इन्टरनेशनल एपेक्स के अन्तर्राष्ट्रीय अध्यक्ष वीर विजय सिंह बाफना, अन्तर्राष्ट्रीय महासचिव वीर विनय शर्मा, पूर्व सांसद पाली व पूर्व अन्तर्राष्ट्रीय अध्यक्ष वीर पुष्प जैन, अन्तर्राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वीर गोपाल मेहता, कोषाध्यक्ष वीर निर्मल कोठारी, पूर्व अन्तर्राष्ट्रीय महासचिव वीर नवरतन पारख व सम्भागीय अध्यक्ष वीर फूसराज छल्लानी थे।
मुख्य अतिथि प्रो. डॉ. घनश्याम लाल देवड़ा ने अपने उद्बोधन में महावीर इन्टरनेशनल के सेवाकार्यों की सराहना करते हुए उपस्थित सदस्यों को जिन जरूरतमंद लोगों तक किसी की पहुंच न हो, उन लोगों तक पहुंचने व महिला शक्ति को भी सेवा कार्यों में भाग लेने का सुझाव दिया। साथ ही साथ सेवा कार्यों का ग्रामीण क्षेत्र मेें विस्तार करने व जरूरतमंद लोगों के कौशल (ैापसस) का विकास करने पर बल दिया। पूर्व अन्तर्राष्ट्रीय अध्यक्ष वीर पुष्प जैन ने अपने वक्तव्य में जीवन में प्रसन्न रहकर व स्थायी प्रोजेक्ट पर सेवा कार्य करने का सुझाव देते हुए कहा कि ‘‘जीना है तो पूरा जीना, मरना है तो पूरा मरना, अभिशाप है जीवन में, आधा जीना आधा मरना’’। अन्तर्राष्ट्रीय सचिव वीर विनय शर्मा ने कहा कि सबको प्यार, सबकी सेवा के सिद्धान्त पर इन्सान, पशु-पक्षी, जानवर आदि की सेवा करते हुए सब प्राणियों के चेहरे पर खुशियां लाना ही सच्ची सेवा है, इससे सुख की अनुभूति का अहसास होता है। 
इस अधिवेषन में जोन बीकानेर से महावीर इन्टरनेषनल के 20 केन्द्रों के 275 वीर-वीराओं ने भाग लिया। सभी केन्द्रों की ओर से 01.11.2014 से 31.01.2016 तक का कार्य मूल्यांकन प्रस्तुत किया गया। जोन बीकानेर के द्वारा संबंधित केन्द्रों को उनकी उपलब्धियों के आधार पर प्रमाण-पत्र व स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। इस समारोह में महावीर इन्टरनेषनल सूरतगढ़ केन्द्र ने रक्तदान,  शिक्षा प्रसार, मरणोपरान्त नेत्रदान, जल सेवा एवं जल संरक्षण व चिकित्सा शिविर के क्षेत्र में प्रथम पुरस्कार सहित कुल 6 पुरस्कार प्राप्त किये। इस संदर्भ में सूरतगढ़ केन्द्र के अध्यक्ष वीर संजय बैद को सर्वश्रेष्ठ अध्यक्ष के रूप में पुरस्कृत किया गया। श्रीगंगानगर केन्द्र के सचिव वीर राजेश झूंथरा को सर्वश्रेष्ठ सचिव व रायसिंहनगर केन्द्र के वीर सीताराम को सर्वश्रेष्ठ कार्यकर्ता के रूप में सम्मानित किया गया। सर्वश्रेष्ठ केन्द्र का पुरस्कार महावीर इन्टरनेशनल बीकाणा वीरां केन्द्र को दिया गया।
इस अधिवेशन में सूरतगढ़ केन्द्र की प्रेरणा से रामपुरा रंगमहल में खोले गये महावीर इन्टरनेशनल के नये केन्द्र के अध्यक्ष वीर शंकरलाल वर्मा सहित कुल 5 सदस्यों को अन्तर्राष्ट्रीय अध्यक्ष वीर विजयसिंह बाफना द्वारा शपथ दिलाई गई। 
सूरतगढ़ केन्द्र की ओर से अध्यक्ष वीर संजय बैद, सचिव नत्थूराम कलवासिया, रतनलाल चौपड़ा, ओमप्रकाश शर्मा, लालचन्द वर्मा, श्रीकान्त राठी, दिनेश शास्त्री, राजकुमार छाबड़ा, राजेश वर्मा आदि सदस्यों ने भाग लिया। 




रविवार, 28 फ़रवरी 2016

नेता विहीन श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ जिले:


रेल बजट पर आई टिप्पणियों पर यह टिप्पणी- करणीदानसिंह राजपूत
अक्सर अभियान से सफलता मिलने का दावा करने वाले अखबारों ने रेल बजट पर अपने अभियान के फुस्स होने का सच्च नहीं छापा:
रेल बजट में श्रीगंगानगर हनुमानगढ़ जिलों हाथ कुछ नहीं आया-क्या हाथ हैं? दिखाई नहीं देते?
भाजपा नेता अपनी पीठ थपथपा रहे हैं। भाजपा नेता ही नहीं हैं तो उनकी पीठ कहां से आ गई?
रेल बजट पर श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ जिलों के कई नेताओं की टिप्पणियां छपी है तो कई अखबारों ने लोगों के बयान छापे हैं मगर अधिकतर नेताओं के बयान ही हैं। रेल बजट को किसी ने अच्छा बताया है तो किसी ने साधारण कागजी तक बताया है।
मैं यहां पर मुख्य रूप में दो शीर्षकों पर छपी टिप्पणियों पर अपनी टिप्पणी कर रहा हूं।
1. पहली टिप्पणी का शीर्षक है कि श्रीगंगानगर हनुमानगढ़ जिलों के हाथ कुछ नहीं आया। क्या दोनों जिलों के हाथ हैं? मुझे या आम जनता को वे हाथ नजर क्यों नहीं आते? हमें क्यों लगता है कि इलाके के लोग या नेता लूले हैं। मतलब बिना हाथों के हैं। जब हाथ ही नहीं हैं तो हाथों में क्या आयेगाï?
2.पहली टिप्पणी का शीर्षक है कि भाजपा नेता अपनी पीठ थपथपा रहे हैं। दोनों ही जिलों में भाजपा के नेता ही नहीं है तो उनकी पीठ कहां से आ गई? कहीं नजर आते हों तो बतलाना कि यह सजीव मौजूद है।
एकेले भाजपा ही नहीं कोई नेता इन जिलों को कभी मिला ही नहीं जो नेतृत्व कर सके। चुनाव जीतना और छोटा बड़ा मंत्री बन जाना अलग बात है और इलाके का नेतृत्व करते हुए कुछ बना जाना अलग बात है। जब गंगानगर जिले के टुकड़े नहीं हुए थे तब भी कोई ऐसा नेता नहीं हुआ था।
मैं यह टिप्पणी कर रहा हूं तो बेवजह नहीं कर रहा हूं। इसकी वजह है।
इलाके में पानी का संकट आता रहा है नेता सिंचाई अधिकारियों पर रोष प्रगट करते रहे हैं लेकिन किसी ने भी पाकिस्तान जाते हुए पानी को रोकने के लिए सरकारों पर दबाव नहीं डाला। आज भी 7 हजार क्यूसेक पानी पाकिस्तान जा रहा है। यहां के लोगों को किसानों को पानी मांगने पर गोलियां और मुकद्दमें मिलते हैं जेलें मिलती हैं और आतंकवादी पाकिस्तान को बिना माँगे पानी का उपहार भेजा जाता है। इलाके में नेता होते तो क्या ऐसा होता? करीब 35 सालों में मैंने कई बार यह मुद्दा विभिन्न अखबारों में उठाया था। किसान नेता सहगल ने यह मुद्दा कई बार उठाया है।
हनुमानगढ़ में सहकारी क्षेत्र में स्पिनिंग मिल की स्थापना हुई तब नेताओं ने खूब प्रचार किया कि इससे कपास उत्पादकों को बहुत लाभ मिलेगा और हजारों लोगों को रोजगार मिलेगा। पिछले कुछ सालों से यह मिल हमारे नेताओं की निष्क्रियता के कारण दम तोड़ रही है और कामगारों को वेतन  मिल को बचाने के लिए जूझना पड़ रहा है। कितने नेताओं ने इस मिल के लिए प्रयास किए हैं?
श्रीगंगानगर जयपुर की रेलें बंद पड़ी हैं। रेल लाइन बदलाव का भी निर्धारित अवधि थी जो कभी की पूरी हो गई। यहां तो सालों तक कोई काम नहीं हो तो भी नेता कहलाने वाले बोलते नहीं?
चिकित्सा व शिक्षा पर कभी किसी नेता को जनता के साथ खड़े नहीं देखा। श्रीगंगानगर के जिला चिकित्सालय में प्रसव के लिए पहुंचाई जाने वाली महिलाओं की दुर्गति होती है यहां तक की प्राण गंवाने पर भी किसी नेता की जमीर जागती नहीं।
भाजपा वाले तो यह मान लेते हैं कि यह हमारी सरकार का विरोध माना जाएगा। इसलिए वे चुप रहतें हैं मगर कांग्रेस का मुंह भी सिला हुआ मिलता है।
अब बात अखबारों की भी करली जाए।
इलाके में जब जब जनता संघर्ष करती है और मामली सी भी सफलता मिलने की खबर आती है तब तब अभियान चलाने का श्रेय अखबार लेता है और संवाददाता अपना नाम सहित छापता है। लेकिन रेलवे बजट पर पहले रपटें छापने वाले अखबार यह नहीं छापते कि हमारी रपटें फुस्स हो गई।
जनता बेचारी किसका विश्वास करे और किसका विश्वास न करे।
चुनाव के पूर्व में जो दावे कर राज लेता है वह राज मिलते ही मुकर जाता है। न किसी का धर्म न किसी का ईमान।

सोमवार, 22 फ़रवरी 2016

आपातकाल बंदी पेंशन सभी राजनैतिक बंदियों को दी जाने की माँग:


आपातकाल लोकतंत्र मंच के प्रदेश संयोजक प्रभात रांका का मुख्यमंत्री राजस्थान को माँगपत्र:
मांगपत्र 15 फरवरी 2016 को भेजा गया:
स्पेशल रिपोर्ट- करणीदानसिंह राजपूत
सूरतगढ़ 22 फरवरी 2016.
राजस्थान सरकार द्वारा आपातकाल बंदियों को दी जा रही पेंशन शांतिभंग में गिरफ्तार कर जेलों में बंद रखे गए लोगों को भी दी जाने की मांग राजस्थान में निरंतर उठ रही है तथा आपातकाल लोकतंत्र मंच के राजस्थान प्रदेश संयोजक प्रभात रांका भीलवाड़ा ने ताजा पत्र भेजा है।
रांका ने लिखा है कि सन 1978 में सरकार ने सभी बंदियों को समान मान कर ही सहायता राशि प्रदान की थी। रांका ने उस आदेश की प्रति भी संलग्र की है। विदित रहे कि वर्तमान राजस्थान सरकार ने मीसा व रासुका के बंदियों को ही पेंशन देने का आदेश जारी किया हुआ है। शांतिभंग संबंधी एक प्रस्ताव पूर्ण तैयार किया हुआ मुख्यमंत्री के पास करीब 6 माह से अधिक समय से विचाराधीन है और उस पर केवल हसताक्षर करने ही बाकी हैं।
रांका का पत्र व आदेश की प्रतियां यहां दी जा ही है।


बुधवार, 10 फ़रवरी 2016

शब्द-वेद‘ नामक अनुपम ग्रंथ जिला पुस्तकालय को भेंट


श्रीगंगानगर, 10 फरवरी। राजकीय सार्वजनिक जिला पुस्तकालय श्रीगंगानगर में विगत सप्ताह में आयोजित कार्यक्रम में श्री द्वारका प्रसाद नागपाल, व्याख्याता एवं कार्यवाहक प्रधानाचार्य राजकीय उच्च माध्यमिक विधालय रिडमलसर और श्री कृष्ण नागपाल ने अपनी माता शांतिदेवी नागपाल की स्मृति में ‘शब्द-वेद‘ नामक अनुपम ग्रंथ जिला पुस्तकालय को भेंट किया। वस्तुतः यह ग्रंथ मन्त्रादृष्टा ऋषियों के मुख से निश्वासित ऋगवेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद की 1131 शाखवेदों में कालावशेष वर्तमान में मात्रा ग्यारह (ऋगवेद-एक, शक्ल यजुर्वेद-दो, कृष्ण यजेर्वेद-चार तथा सामवेद-दो, अथर्ववेद-दो) का संकलन यह शब्द-वेद है। विगत शताब्दियों में मूल वैदिक संहिताओं में द्रुतगति से लुप्त हो रहे स्वरूप का संरक्षण इस महान ग्रंथ के प्रकाशन की पृष्ठ भूमि रहा है। रूपये छह हजार पांच सौ की राशि का यह उत्कृष्ट छर्पाइ एवं उत्तम क्वालिटी का गं्रथ, जिसकी आकर्षक मंजूषा जो कि लगभग एक हजार रूपये की है, ग्रंथ को सुरक्षा एवं संदर्भ निर्धारित करती है,साथ में है। श्री कर्पूरचंद कुलिश  द्वारा संकलित/सम्पादित यह शब्द-वेद नामक ग्रंथ श्री द्वारका प्रसाद नागपाल परिवार द्वारा जिला पुस्तकालयाध्यक्ष श्री रामनारायण शर्मा को सौंपा गया। पुस्तकालयाध्यक्ष श्री शर्मा द्वारा नागपाल परिवार के प्रति आभार प्रकट किया गया। 

 

शनिवार, 6 फ़रवरी 2016

सौ करोड़ से अधिक की जमीन खसरे बदल हड़प ली:


धूर्त नेताओं धनपतियों व अधिकारियों की मिली भगत:
सूरतगढ़ में कपड़े के नक्शे पर सीमाएं मिटा कर नए खसरा नम्बर लिखे जाने शंका:
स्पेशल रिपोर्ट - करणीदानसिंह राजपूत
सूरतगढ़। राष्ट्रीय उच्च मार्ग के चिपते हुए नगरपालिका सीमा में सन सिटी के पीछे से लेकर वर्तमान में रिलायंस पंप के पास से और आगे तक जहां पर कुछ साल पहले जमीन के कब्जे को लेकर गोली चलने तक की घटना वाला समूचा रकबा आवंटन में बहुत बड़ा घोटाला होने का आरोप चर्चा में है। सूरतगढ़ में चल रहे भावों के हिसाब से जमीन की कीमत 100 करोड़ से अधिक ही हो सकती है। इतनी कीमती जमीन बिना प्रभाव और सत्ता वालों के कोई भी हड़प नहीं सकता और जो तरीका अपनाया गया है उससे यही लग रहा है। राजस्व विभाग में कपड़े के नक्शे का महत्वपूर्ण प्रमाण होता है लेकिन यहां पर जो कपड़े का नक्शा है उसमें धूर्तता से खसरों की सीमाओं में लिखे नम्बर मिटा कर नए लिख दिए गए या कहीं सीमा बदल दी जाने की शंकाएं हैं। इतना बड़ा घोटाला सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत  बिना नहीं हो सकता। 

बुधवार, 3 फ़रवरी 2016

जनता की सुरक्षा की जिम्मेदारी नगरपालिका प्रशासन की है या नहीं है?




क्या एडीएम एसडीएम मौका देख कर सड़कों से खतरा हटवाऐंगे?
- करणीदानसिंह राजपूत -
सूरतगढ़ 3 फरवरी 2016.
मुख्य बाजार में भोर में दुकान के गिरने से कोई जानलेवा कहर नहीं हो पाया लेकिन गलत तरीके के निर्माणों को प्रशासन ने खुली छूट दे रखी है और जनता सच्च में भगवान के भरोसे पर ही सड़कों पर चल रही है। इस हादसे से पहले एक हादसा नई सब्जी मंडी के पीछे हो चुका था जिसमें दो छतें गिर गई थी और उसमें एक व्यक्ति तो बुरी तरह से घायल हाल में कई घंटों बाद निकाला गया था। उसका मामला पुलिस में भी दर्ज हुआ था। लेकिन हादसों के बाद भी नगरपालिका प्रशासन को होश नहीं आया। पालिका प्रशासन गलत निर्माण को शह देता रहा है और लाभ लेता रहा है।


जब फुटपाथ पर निमार्ण नहीं किया जा सकता और छज्जे कमरों के रूप में बंद नहीं किए जा सकते तो फिर यह अवैध कार्य सूरतगढ़ में दिन रात कैसे चल रहा है? मुख्य बाजारों में इस प्रकार के निर्माण होना और खबरें छपने के बाद भी रोका नहीं जाने का एक ही अर्थ निकलता है कि पालिका भ्रष्टाचार में शामिल है और जिनी ड्यूटी है वे अपनी देखरेख में सब करवा रहे हैं। 

जब दुकानों के आगे से सामान उठवाने में कार्यवाही होती है तो क्या पालिका कर्मचारियों को ये अवैध निर्माण दिखाई नहीं देते? पालिका दस्ता कच्ची बस्तियों में हो रहे निर्माणों पर अवैध बतलाते हुए कार्यवाही करता है और जेसीबी भेज कर तुड़वा देता हे तो फिर बाजारों में किए जा रहे गैर कानूनी निर्माणों को तोडऩे में पीछे क्यों रहता है? पालिका के अतिक्रमण हटाओ दस्ते से ही रिपोर्ट लेकर तत्काल ही कार्यवाही हो तो वह नजर आए।
नगरपालिका के अध्यक्ष काजल छाबड़ा,उपाध्यक्ष पवन औझा और समस्त सदस्यों की यह सामूहिक जिम्मेदारी बनती है कि वे जनता की सुरक्षा का ध्यान रखें और  अवैध निर्माणों पर तत्काल ही कार्यवाही करते हुए पुलिस में प्रकरण दर्ज करवाएं। अध्यक्ष उपाध्यक्ष व ईओ बड़े अखबारों के द्वारा कमेंट्स लिए जाने पर हमेशा रटा रटाया कहते हैं कि मालूम करेंगे अगर ऐसा हुआ है तो कार्यवाही करेंगे। लेकिन उसके बाद कभी न तो वहां पर कोई जाता है और न कोई कार्यवाही होती है। इसी का नतीजा है कि बीकानेर रोड आधी चौड़ी रह गई है। कभी इस पर से निकली हैं अध्यक्ष व ईओ?
जिस दिन जनता इतनी जागरूक हो गई और हादसे का मुकद्दमा पालिका बोर्ड पर व पालिका प्रशासन पर करना शुरू कर दिया तब शायद जाग जाऐं।

मंगलवार, 2 फ़रवरी 2016

रचनात्मक पत्रकारिता लेखन व सेवा लूटे जा, खाए जा, पचाए जा।



नई परिभाषा~ सत्ताधारी मंत्री से संतरी तक के हर कार्य को उनकी स्तुति रूप में लिखते रहें और छापते रहें
करणीदान सिंह राजपूत
सत्ताधारी मंत्री से संतरी तक के हर कार्य को उनकी स्तुति रूप में लिखते रहें और छापते रहें। इनके छापे इसके अलावा अच्छा हो कि इनके चमचे कड़छों तक के फेवर में छापे तो उस रचनात्मक पत्रकारिता का कोई मुकाबला ही नहीं।
 उनस पूछकर छापो और उनके यहां  खुद जाकर देकर भी आओ। पांच-सात चमचे बैठे हों तो उनके सामने अपने श्रीमुख से बोलकर भी कहें कि नेताजी के कार्य से लोग कितने खुश हैं। नेताजी या उनके परिजन कोई रेप, हत्या, मारपीट कर बैठें हैं तो उनके पक्ष में छापें या चुप रहें कि कुछ हुआ ही न हों। अपनी तरफ से गारंटी भी दे डाले कि आरोप एकदम झूठे हैं। नेताजी और और उनके परिवार के लोग ऐसा कर ही नहीं सकते। ज्यादा ही रचनात्मक रवैया साबित करना हो तो पीडि़त परिवार को ही झूठा साबित करने के लिए लोगों के स्टेटमेंट तक छाप दें। नेताजी की समाजसेवा की रिपोर्ट बनाकर छाप दें। लोगों का क्या है? कुनमुना कर रह जाएंगे। रचनात्मक पत्रकारिता और लेखन का खिताब तो जनता ही नहीं देती वह तो शासन प्रशासन और नेताजी वाली संस्थाएं ही देंगी। बस लिखते रहो रचनात्मकता का पुरस्कार सम्मान  एक क्या कई मिलते चले जाएंगे। अपने जीवन साथी तक को दिलवा दें। उसे चाहे न आए कक्का। आप लिखें और सम्मान  आपकी साथिन को मिलता रहेगा। रचनात्मकता का सम्मान न जाने क्या-कया लाभ दिला देता है और न जाने कहां-कहां तक की ऊंचाइयों तक पहुंचा देता है। बस घर में तो सच मानना ही पड़ेगा कि इसके लिए नेताजी की हाजिरी जी हजूरी करनी ही होगी, लेकिन यह बाहर कौन देखता है। 
रचनात्मकता की पहली सीख है कि जिसे लोग और कानून की पोथियां भ्रष्टाचार बतलाती है। उन पर कुछ भी न लिखा जाए न कुछ प्रकाशित किया जाए। मान लो आपके शहर में नगरपालिका सड़क बना रही है और वह घटिया है तो चुप रहे। नगरपालिका सफाई नहीं कराती, गंदी सड़कें, मौहल्ले हैं तो देखते रहें। भ्रष्टाचार है अध्यक्ष अधिकारी का कमीशन मालूम है तो भी चुप रहे। रचनात्मकता साबित करनी हो तो पक्ष में लिखें। जनता कुछ बोले तो वह दबा दें।
यही रचनात्मकता की परिभाषा आज सभी नेता उपनेता, समाजसेवी और शिक्षा संस्थाएं भी चाहती है।
शिक्षा देने वाली संस्थाएं घपले करें, झूठे दावे करें तो भी उनके दावों को छापे। यह रचनात्मक है। किसी छात्र-छात्रा को सच बतलाने वाली न्यूज छापें लेख न छापे। संस्थाएं चाहे जो फीस ले। पुस्तकों आदि के रूप में कितना भी वसूले तब भी लिखें कि वहां नि:शुल्क कोचिंग दी जाती है। फीस देने वाले तो प्रतिवाद करते नहीं हैं।
नेताजी उनके परिजन, कोई भी सत्ताधारी, अधिकारी, संस्थाएं या उनके गधे गधेड़ी, बकरियां मैमने जो भी ढेंचू-ढेंचू की राग अलापे चाहे मिमियाए तो उनको शानदार प्रस्तुति बतलाए।

 बस यही रचनात्मकता है।
बदमाश को बदमाश, भ्रष्टाचारी को भ्रष्टाचारी, बलात्कारी को बलात्कारी, चोर को चोर लिखना छापना रचनात्मकता नहीं है। 

ऐसे लोगों को अध्यक्ष,मुख्य अतिथि, मुख्य वक्ता बनाने, कार्यक्रमों,
समारोहों में
सम्मानित  करने का आग्रह करें। उन्हें  सम्मान प्रशस्ति पत्र दिलवाएं। यह रचनात्मक कार्य  है
दुखियारे, पीडि़तों, शोषण का शिकार, बलात्कार शोषण की पीडि़ता के लिए छापना रचनात्मक कार्य नहीं है।
सतयुग से लेकर अब तक लोग पीडि़त होते रहे हैं। रोते हुए लोगों का साथ देना  रचनात्मकता
नहीं है? जनता तो रोएगी तो रोती रहेगी।
रचनात्मकता की जो परिभाषा आज की संस्थाएं, शिक्षाविद् घोषित करते हैं कि लूटे जा, खाए जा, पचाए जा। वही मानते हुए चलते रहें


सोमवार, 1 फ़रवरी 2016

आपातकाल के शांतिभंग बंदियों को पेंशन दिए जाने की मुख्यमंत्री से मांग:

आपातकाल लोकतंत्र रक्षा सेनानी संगठन संयोजक ने एडीएम के मारफत ज्ञापन दिया:
सूरतगढ़,1 फरवरी। आपातकाल लोकतंत्र रक्षा सेनानी संगठन ने राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधराराजे से मांग की है कि आपातकाल में मीसा रासुका बंदियों की तरह शांति भंग में जेलों मे बंद रहे लोगों को भी पेंशन व मेडिकल सुविधा दी जाए। संगठन के संयोजक करणीदानसिंह राजपूत ने अतिरिक्त जिला कलक्टर सूरतगढ़ के माध्यम से यह ज्ञापन मुख्यमंत्री को भिजवाया है। 
संयोजक ने अतिरिक्त जिला कलक्टर को उस समय की हालत से अवगत करते हुए जानकारी दी कि सूरतगढ़ से 12 लोगों को शांतिभंग में व 12 लोगों को रासुका में गिरफ्तार किया गया था।
        ज्ञापन में लिखा गया है कि शांति भंग के तहत जेलों में बंद रहे कार्यकर्ताओं को आपने जयपुर जन सुनवाई दिनांक 3 फरवरी 2014 को आपने आश्वस्त किया था। इसके बाद राजस्थान विधान सभा में माननीय मंत्री गुलाबचंद कटारिया ने एक जवाब में बताया था कि सरकार इस पर विचार कर रही है। 
माननीय युनुस खानजी ने भी राजस्थान के प्रभारी अरूण राय खन्ना जी से भेंट कर कार्यकर्ताओं को आश्वस्त किया था कि शीघ्र ही इस पर निर्णय घोषित किया जाएगा। ओंकारसिंह लखावत जी आदि ने भी समय समय पर कार्यकर्ताओं को आश्वस्त किया कि मुख्यमंत्री वसुंधराजी विचार कर रही हैं।
        संयोजक ने लिखा है कि यह निर्णय शीघ्र ही घोषित किया जाए ताकि जो वृद्धावस्था में हैं वे लाभ उठा सकें।
चूंकि यह अत्याचारी घटना 41 वर्ष पूर्व हुई थी। आपातकाल में बंदी रहे
जीवित लोगों की उम्र इस समय 60 वर्ष से अधिक है और कई 90-95 वर्ष के  लोग बीमार व लाचार हैं। अनेक लोग यह संसार भी छोड़ चुके हैं जिनके पीछे उनकी पत्नियां बहुत बुरे हालात में हैं। अनेक कार्यकर्ता व उनकी पत्नियां संसार छोड़ चुके हैं।
आपातकाल में भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धाराओं 107,151,116/3 आदि
में शांति भंग में भी अनेक कार्यकर्ताओं को बंदी बनाया गया व जेलों में
ठूंस दिया गया था। उस समय पुलिस और प्रशासनिक मजिस्ट्रेट तत्कालीन सरकार के दिशा निर्देशों के तहत ही कार्य कर रहे थे।
शांति भंग अधिनियम में भी जेलों की यातनाएं कम नहीं थी। जेलों में महीनों तक बंद रहे कार्यकर्ताओं का जो नुकसान हुआ और व्यवसाय आदि चौपट हुआ उसे वापस जमाया नहीं जा सका।
आपातकाल का विरोध करने वाले अनेक लोग बीपीएल परिवारों में हैं तथा रहने को मकान तक नहीं है।
आपसे अग्रह है कि उस समय शांति भंग कानून में बंदी बनाए गए लोगों को भी पेंशन सुविधा प्रदान की जाए ताकि शेष जीवन शांतिमय बीता सकें।
संयोजक ने यह जानकारी भी दी है कि सूरतगढ़ एक मात्र स्थान था जहां पर आपातकाल के विरोध में  27 जून 1975 को आम सभा हुई थी। यहां के बंदी बनाए गए कार्यकर्ताओं को श्रीगंगानगर बीकानेर अजमेर आदि जेलों में रखा गया था।
श्रीगंगानगर जेल में तो 15 अगस्त 1975 को आमरण अनशन आँदोलन भी हुआ औरसितम्बर में राज्य सरकार ने सभी को अधिकारिक तौर पर राजनैतिक बंदी मानतेहुए आदेश जारी किया था।

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