रविवार, 19 जून 2016

काजल राज भ्रष्टाचार को समर्पित:भ्रष्टाचार नहीं हटाया बोर्ड हटा दिए:

27~9~2015
update 19-6-2016
- ब्लास्ट की आवाज की तीसरी आँख -
सूरतगढ़। नगरपालिका बोर्ड में जुगाड़ से भाजपा की काजल छाबड़ा अध्यक्ष चुनी गई तब शहर वासियों को बड़ी आशाएं थी कि कांग्रेस की फैलाई गंदगी से मुक्ति मिलेगी और शहर का हर वार्ड और कच्ची बस्तियां विकसित होंगी व शहर स्वर्णिम सूरतगढ़ की ओर आगे बढ़ चलेगा। यह विश्वास विधायक राजेन्द्रसिंह भादू  ने और काजल छाबड़ा दोनों ने भी दिए थे। दोनों के दिए विश्वास भ्रष्टाचार को समर्पित हो गए। दोनों पर इतने आरोप लगे हैं कि उनका स्पष्टीकरण दे नहीं पाऐंगे।
अभी यहां पर काजल छाबड़ा पर नजर डालें।
पालिका बोर्ड की अध्यक्ष चुनी जाने पर शहर में प्रमुख पांच जगहों पर जीत की खुशी में बड़े बड़े बोर्ड लगवाए। इन पर लिखे गए वाक्य इतने बड़े बड़े थे कि कमजोर से कमजोर नजर वालों को भी दिखाई पड़ जाएं। यही हुआ। जनता खुश हुई। लोग बोर्ड देखते और आश्चर्य प्रगट करते हुए कहते कि बड़ी अच्छी दिलेर औरत अध्यक्ष आई है। भ्रष्टाचारियों का खाया पिया सब निकाल देगी और आगे किसी को खाने नहीं देगी। यह दिलेरी दूसरी तरफ उतर गई। भ्रष्टाचार का काला रंग अधिक प्रभावशाली रहा और काजल राज पर ऐसा चढ़ा है कि उतरने का नाम नहीं ले रहा है। इतनी दिलेरी जरूर हुई है कि जो बोर्ड लगाए गए थे वे उतरवा दिए गए। न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी। बोर्ड देख कर ही तो जनता भ्रष्टाचार हटाने की मांग करती सो बोर्ड ही हटवा दिए। किसी को याद भी नहीं रहेगा कि कोई वादे किए थे और विश्वास दिया था। दोनों हाथ जोड़ कर। बोर्ड की फोटो यहां दी जारही है और जिस स्वर्णिम सूरतगढ़ को देखना चाहते हैं उसकी तस्वीरें इसी अंक में अन्य खबर में देखें कि कैसे बनाया गया है सूरतगढ़ को स्वर्णिम।
जनता के विश्वास और आशीर्वाद के आगे नत मस्तक होने अभिभूत होने की घोषणा की और उसके टुकड़े टुकड़े कर दिए कुछ महीनों में ही।
भ्रष्टाचार के एक नहीं अनेक प्रमाण उजागर हो गए हैं। कुछ तो जाँच के लिए भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो में दर्ज भी हो गए हैं। नगरपालिका बोर्ड की बैठकों में भ्रष्टाचार को दबाने के लिए पार्षदों की आवाज को दबाने की साफ तस्वीरें हैं। बोर्ड की बैठकों की कार्यवाही की प्रतिलिपियां दी ही नहीं जाती जो कि पार्षदों को दिए जाने के नियम बने हुए हैं। बड़े लोगों के अतिक्रमणों तोडऩे के बजाय उनके व्यावसायिक रूप को अपनी मनमर्जी से मान लिया है। नगरपालिका के नियमों के विपरीत निर्माण करवाए जा रहे हैं। भाजपा के पार्षदों को साथ लेकर विधायक राजेन्द्र भादू ने जो शिकायतें वसुंधरा राजे को करवााई थी। उन फाईलों के अनोखे पंख लग गए हैं और उन पर कार्यवाही किए जाने के बजाय उनको सुशोभित किया जाने लगा है। काजल राज में लोग गैरकानूनी ढ़ंग से मालामाल हो रहे हैं लेकिन राजकोष व पालिका कोष को हर माह लाखों रूपए की हानि हो रही है।
अब कुछ उदाहरण अच्छी व्यवस्था के अच्छे दिन आने के।
1.दो बार दमकल की जरूरत पड़ी और दोनों ही वक्त उसमें पैट्रोल नहीं था।
2.सन सिटी के पीछे एक घर में पानी भर गया। ईओ नहीं थी। उनकी छुट्टियां देखें। वे कितने दिन सूरतगढ़ में रहती हैं। फोन करके तरसेम अरोड़ा को सूचना दी गई। लाचारी की हालत में ईंजन भिजवाया गया। ईंजन नहीं चला। उसमें तेल नहीं था। उसके बाद में खराबी सामने आई कोई पुरजा भी खराब था।
वर्षा के दिनों में कब आफत आ जाए इसलिए ईंजन मोटरें आदि सर समय दुरूस्त रखे जाने चाहिए लेकिन किसी को भी परवाह नहीं। कोई जिम्मेदारी नहीं। पालिकाध्यक्ष का कर्तव्य है कि वर्षा काल में और साधारण समय में भी वार्डों का निरीक्षण करती रहें। लेकिन जब अध्यक्ष को परवाह नहीं हो तब ईओ व अन्य कर्मचारियों को परवाह क्यों होगी।

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