गुरुवार, 30 जुलाई 2015

मील होटल रेस्टोरेंट टी पोईंट का रिकार्ड ले एसीबी की जांच शुरू :


सूरतगढ़। भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो की गंगानगर चौकी ने मील के थर्मल टी पोईंट पर राष्ट्रीय उच्च मार्ग नं 15 पर बनाए गए विशाल होटल एवं रेस्टोंरेंट का रिकार्ड राजस्व तहसील से लेकर जाँच शुरू कर दी है।
कृषि भूमि पर होटल अवैध रूप से बनाए जाने की शिकायत है। कृषि भूमि का भू उपयोग परिवर्तन कराना था लेकिन मील के सत्ता में होने के वक्त बिना नियम पूरे किए होटल बनाया गया। राजस्व विभाग का कोई अधिकारी पटवारी,तहसीलदार,उपखंड अधिकारी आदि ने खबरें छपती रहने के बावजूद वहां देखने की और जाँच करने की आवश्यकता नहीं समझी। इसकी शिकायत विभिन्न स्तरों पर हुई।
भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो में इसकी शिकायत वरिष्ठ वकील स.हरचंदसिंह सिद्धु की ओर की गई थी। इस शिकायत पर रिकार्ड लिया गया है व प्राईमरी स्तर पर जाँच शुरू की गई है।
इस जांच में शिकायत प्रमाणित होने व सरकार को राजस्व की हानि पहुंचने का साबित होने पर मुकद्दमा दर्ज हो सकता है।

बुधवार, 22 जुलाई 2015

आपातकाल1975 में शांतिभंग आरोप में जेलों में बंद को पेंशन की संभावना:


 भाजपा प्रदेश कार्यालय में राजस्थान प्रभारी अविनाश राय खन्ना की मंत्री युनसअली खान से बात हुई:
खबर- करणीदानसिंह राजपूत
सूरतगढ़,22 जुलाई 2015.
आपातकाल 1975 में शांतिभंग के आरोपों में जेलों में बंद यात्नाएं भोगने वालों को मीसा रासुका के बंदियों की तरह ही पेंशन दिए जाने की मांग प्रबल हुई है तथा संभाना है कि जल्दी ही इस पर राजस्थान की सरकार निर्णय सुनादे।
राजस्थान प्रदेश के नए प्रभारी बनाए गए श्री अविनाश राय खन्ना के जयपुर आगमन पर आपातकाल लोकतंत्र सेनानी संगठन के कई कार्यकर्ता खन्ना से मिले और कहा कि लोकतंत्र के लिए शांति भंग की धाराओं भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धाराओं 107, 151,116/3 में अनेक लोग बंदी रहे। जेलों में महीनों तक यात्नाएं भोगी लेकिन राजस्थान सरकार ने मीसा व रासुका वालों को तो पेंशन सुविधा दी लेकिन उनको टाल दिया जबकि वे भी जेलों में यात्नाएं सहन करने वालों में थे तथा उनके व्यवसाय कारोबार आदि नष्ट हो गए व बंद हो गए।

इसके बाद कार्यकर्ता भाजपा प्रदेश कार्यालय पहुंच गए जहां पर मंत्री युनिस अली खान कार्यकर्ताओं से बातचीत कर रहे थे। वहां पर पुन: अविनाश राय खन्ना ने मंत्री से इस बाबत पूछा कि शांति भंग आरोपों में जेलों में बंद रहे लोगों को पेंशन सुविधा क्यों नहीं दी गई?
इस बाबत मंत्री ने बताया कि पेंशन क्यों नहीं दी गई यह तो मालूम नहीं है। लेकिन माननीय गुलाबचंद कटारिया की अध्यक्षता में एक रिपोर्ट तैयार हुई है और वह सकारात्मक है जिस पर जल्दी ही निर्णय होने की संभावना है। यह निर्णय संभवतया स्वतंत्रता दिवस पर हो सकता है। यह संभावना है।
इस प्रकार की सूचना मिली है जो खबर के रूप में लगा दी गई है। घोषणा का इंतजार है। जब भी होगी तब वह खबर भी लगाई जाएगी।
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मंगलवार, 21 जुलाई 2015

हाथी निकल जाता है लेकिन कई बार पूंछ फंस जाती है: सावधान सरकारी स्टाफ:


- करणीदानसिंह राजपूत - 
हर व्यक्ति चाहे वह सरकारी सेवाओं में हो चाहे गैर सरकारी किसी व्यवसाय में हो,किसान मजदूर हो। उसकी आइडी यानि कि पहचान एक ही होती है। एक व्यक्ति की दो पहचान नहीं हो सकती और दोहरी पहचान है या वह रखता हे तो मतलब स्पष्ट  है कि उसमें एक पहचान फर्जी है और उसका इस्तेमाल कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में गलत हो रहा है,जानते बूझते गलत इस्तेमाल किया जा रहा है। सरकारी अधिकारी व कर्मचारी है तो उसका जो नाम सरकारी रिकार्ड में है वहीं उसकी असली पहचान है। असली आइडी है। उसके अलावा अगर वह व्यक्ति अनय नाम से पहचान बनाने की कोशिश करता है या कर चुका है तो वह गैर कानूनी ही है। आदमी एक और एक फोटो को वह सरकारी नाम के साथ और उसी फोटो को दूसरे नाम के साथ इस्तेमाल करता है तो बहुत बड़ा धोखा है। निश्चित रूप में वह कोई ऐसा कार्य कर रहा है जिसकी अनुमति उसका सरकारी विभाग नहीं देता।
उदाहरण के रूप में एक शिक्षक सरकारी सेवा में वी नाम से है और फोटो का इस्तेमाल करता है। आज वेतन आयोग की सिफारिश पर वेतन भी बहुत अच्छा होता है। इसके बावजूद अपनी अलग पहचान अलग नाम ए धारण कर प्राईवेट कोचिंग सेंटर चलाने का कार्य भी करना। उसके संपर्क में मोबाइल नम्बर देना और वहां भी फोटो एक का ही इस्तेमाल करना। फर्जी नाम से अन्य नाम से फेस बुक पर एकाउन्ट खोलना। कानूनी जुर्म है। लेकिन पैसे के लिए गुमराह होना या अपराध करना जायज समझने लगते हैं। यहां बात मीडिया से जुड़े लोगों की भी है कि वे भी फर्जी नाम को हाइलाईट करने में उकसाते हैं। सही नाम होते हुए भी फर्जी नाम को छापने में अपनी यारी या दोस्ती समझते हैं। आश्चर्य तो यह होता है कि सरकारी स्टाफ फर्जी नाम से उसी संस्था में कार्यक्रम तक आयोजित कर लेते हैं। जिसकी विभाग अनुमति नहीं देता।

एक और उदाहरण । यह दूसरा उदाहरण भी शिक्षा विभाग का ही है।
एक व्यक्ति शिक्षक प्रशिक्षण महा विद्यालय में नियमित छात्र के रूप में प्रवेश लिए हुए है। वह वहां की कक्षाओं में जाता नहीं है लेकिन उसकी उपस्थिति वहां लगती रहती है। वह सैंकड़ों किलोमीटर दूर अन्य सरकारी महा विद्यालय में स्व वित्त पोषी कक्षाओं को नियमित रूप से पढ़ाता है और वहां से हजारों रूपए मासिक पारिश्रमिक लेता है। पूरे वर्ष में तीस बत्तीस हजार रूपए। वहां हाजिरी लगती हे ओर उसकरी प्रमाणिकता पर पारिश्रमिक मिलता है। व्यक्ति एक ही है उसकी हाजिरी दो स्थानों पर लग रही है। वह परीक्षा देता है और बी.एड.की डिग्री प्राप्त कर लेता है।
किसे पता चलता है। लेकिन पता चल जाता है तब?
जब वह सरकारी महाविद्यालय में अध्यापन के लिए नियमित रूप में हाजिरी लगा कर पढ़ाता है। तो स्पष्ट है कि वह डिग्री फर्जी भी है और सरकार को धोखा देने व फर्जी दस्तावेज तैयार कर असली की जगह इस्तेमाल करने का अपराधी। जिसकी सजा सात साल कड़ी कैद की है। अब इस फर्जीवाड़े में वह अकेला नहीं फंसता। शिक्षक प्रशिक्षण महा विद्यालय में हाजिरी लगाने वाला भी साथ ही फंसता है।
दिल्ली सरकार का कानून मंत्री तोमर फर्जी डिग्री में जेल में बंद है।
अभी भी फर्जी आईडी का उपयोग करते और समारोह करते लोग डरते नहीं है।

आदमी अधिक कमाने के लिए नैतिकता को परे रख कर अनैतिक गैर कानूनी कार्य करता है। कहीं सरकारी नौकरी करता है तो वहां के नियमों को धत्ता बतलाते हुए अन्य कार्य करता है जिसकी मंजूरी उसके विभाग की ओर से नहीं होती मगर वह करता है। सरकारी वेतन जो आज काफी अच्छा है मगर उसमें धाप नहीं।
कोई कह दे तो जवाब मिलता है कि इसमें गलत क्या है?
ऐसा तो चलता है।
कितने ही ऐसा करते हैं।
फंसेंगे तब जो होगा देखा जाएगा।
लेकिन ये होशियारी कभी न कभी धोखा दे जाती हैं।

लोगों को खासकर शिक्षित लोगों को भी परवाह नहीं है कि वे दोहरी आईडी से गलत कार्य कर रहे हैं।
लेकिन एक तथ्यपूर्ण बात कहना चाहता हूं कि हाथी निकल जाता है लेकिन पूंछ फंस जाती है और वह कई बार दंड तक पहुंचा देती है।
साल दो साल नहीं दस पन्द्रह साल बाद भी कहीं न कहीं कानूनी दांव पेंच में फंस ही जाता है।
 

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शनिवार, 18 जुलाई 2015

ललित मोदी बटन दबाते हैं और वसुंधरा कूदने लगती हैं-राहुल


टिप्पणी-हाय। ललित मोदी ने कांग्रेसियों के खजानों में क्यों नहीं डाला?
- करणीदानसिंह राजपूत -
राहुल गांधी जयपुर में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को संबोधन में जो बोले। वे शब्द अनजाने में मुंह से निकले हुए नहीं लगते। कांग्रेस ने भाषणों में हमला करने के लिए वसुंधरा राजे और ललित मोदी को पकड़ रखा है।
राहुल ने जयपुर में भाषण दिया। उसके शब्द काफी तेज वार वाले थे।
राहुल ने कहा ललित मोदी बटन दबाते हैं और वसुंधरा राजे यहां कूदने लगती हैं।
इसके बाद खुलासा करते हुए कहा। यहां की सरकार का रिमोट ललित मोदी के पास में है वह इंग्लैंड में बटन दबाते हैं और राजस्थान की सरकार चलाते हैं। राहुल ने कहा यहां वसुंधरा की सरकार नहीे है,यहां ललित मोदी की सरकार है।
उन्होंने और वार करते हुए कहा कि ऐसा क्यों न हो? आखिर ललित मोदी ने उनके बेटे के रेस्टोरैंट में रूपए लगाए हैं।
राहुल ने वसुंधरा राजे पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि लललित मोदी के लिए वसुंधरा राजे ने जो शपथपत्र दिया जिसमें लिखा कि इसे हिन्दुस्तान की सरकार को न बतलाया जाए। यह मामला गंभीर है।
वसुंधरा राजे को इतना आगे जाकर लिखने की नौबत क्यों आई?
शपथपत्र में उनका सहयोग देना ही काफी था फिर इसके आगे लिखने का क्या कारण हो सकता है?
1.वसुंधरा राजे ने ललित मोदी की पत्नी को अपनी बहन सरीखी सखी मानते हुए यह लिखा।
2.ललित मोदी ने वसुंधरा राजे को अपनी पत्नी की सखी मान कर बहुत बड़ी रकम शेयर के माध्यम से वसुंधरा के पुत्र के होटल में लगाई।
3.वसुंधरा राजे व ललित मोदी के वर्षों के मित्र संबंध रहे हैं और पहले किसी का इस ओर ध्यान भी नहीं था। कांग्रेस भी ध्यान नहीं रख रही थी।
अब कांग्रेस वसुंधरा राजे और ललित मोदी के मित्र संबंधों को तूल देने में लगी है।
क्या इसका कारण यह तो नहीं है कि ललित मोदी ने वसुंधरा राजे के पुत्र के होटल में तो करोड़ों रूपए लगा दिए और बड़े बड़े कांग्रेसियों के खजाने खाली रह गए। अब खाली खजानों को देख कर अपने पेट पीट रहे हैं कांग्रेसी नेता और उनके विलाप का फीड बैक लेकर भाषण दे रहे हैं राहुल गांधी।

गुरुवार, 16 जुलाई 2015

यह क्या बोल गए राहुल बाबा?


- करणीदानसिंह राजपूत -
श्री गंगानगगर व हनुमानगढ़ की यात्रा में यह क्या बोल गए राहुल बाबा जो शायद किसी भी कांग्रेसी को नहीं सुहाएगा।
राहुल ने कह दिया कि कांग्रेसी नेताओं का लोगों के बीच में रहने व उनके दुखदर्द को सुनने के रिपोर्ट कार्ड पर आगे पद व कार्य सौंपा जाएगा। कांग्रेसी नेताओं के भविष्य का निर्धारण लोगों के बीच में आने जाने,लोगों की तकलीफों को दूर करने के रिपोर्ट कार्ड पर तय होगा। मतलब उस कांग्रेसी नेता को आगे चुनारव में टिकट मिलेगी जो जनता के बीच में रहने वाला होगा। इसे यों भी कहा जा सकता है कि राहुल ने चेतावनी भरा संदेश दिया है कि लोगों दुख दर्द जानने के लिए कोठी बंगले कार एसी छोड़ो और लोगों के बीच में जाकर रहो।
राहुल को पद यात्रा में लोगों के सीधे संवाद में अनेक पीड़ाएं सुनने को मिली औा साथ में यह भी सुनने को मिला कि वर्तमान भाजपा सरकार के राज में उनकी परेशानियां बढ़ी हैं लेकिन कांग्रेसी नेता भी उनके दुख दर्द में भागीदार नहीं है।
लोगों की बात में दम रहा है और तत्कालिक भाषण इसी प्रकार का ही दिया जा सकता था जो राहुल ने दिया।
राहुल ने कांग्रेसी नेताओं को नसीहत तो दी है लेकिन क्या कांग्रेसी नेता इसका पालन कर पाऐंगे या फिर अगले ही दिन भूल जाऐंगे।
कांंग्रेसी नेता दुख दर्द में लोगों के साथ रहते तो राज क्यों जाता और इतने बुरे तरीके से क्यों जाता कि राजस्थान में 200 सीटों में से भाजपा 163 जीत गई और कांग्रेस को 21 सीटों पर ही समेट दिया।
राज बदले हुए डेढ़ साल बीत गया। यह तो कहा जा रहा है कि वसुंधरा राज में लोग बहुत पीडि़त व परेशान हैं लेकिन कांग्रेस के मंत्री,विधायक रहे नेता व राज्य व जिला स्तरीय पदाधिकारियों में से कितनों ने लोगों की पीड़ाओं को सुना व जानना चाहा? उत्तर मिलेगा शून्य।
कांग्रेसी लोगों ने अपने स्वभाव को रत्ती भर नहीं बदला।
भाजपा के राज में जिन भाजपा विधायकों व मंत्रियों पर आरोप लगते रहे हैं या प्रशासन पर आरोप लगते रहे हैं वहां किसी को भी कांग्रेसी नेताओं ने मुद्दा बना कर लड़ाई लडऩे की कोशिश नहीं की।
मुझे एक नारे पर आश्चर्य हो रहा था।
राहुल की पदयात्रा में लोगों के बीच संवाद कार्यक्रम में बार बार नारा लग रहा था।
राहुल तुम संघर्ष करो हम तुम्हारे साथ हैं।
मतलब कि स्थानीय नेताओं में तो कोई संघर्ष करने के लायक ही नहीं है और स्थानीय नेता संघर्ष करना ही नहीं चाहते।
राहुल को फीड बैक के लिए सूरतगढ़ के सन सिटी रिसोर्ट में बैठक हुई जिसमें केवल चुनिंदा 25 कांग्रेसियों को ही शामिल होने का प्रवेश पत्र दिया गया था।
जहां तक फीड बैक देने का सवाल है। इन कांग्रेसियों ने राहुल को सच्चाई बताई ही नहीं होगी। कौनसा नेता होगा जो कहेगा कि हम लोगों के बीच में गए ही नहीं। केवल राहुल की स्तुति करने का फीड बैक लगा।
पुराने कांग्रेसियों को भीतर प्रवेश की इजाजत नहीं थी। वे बाहर कुनमुना रहे थे। पुराने का मतलब जो विधायक रह चुके एक बार भी नहीं दो बार विधायक रह चुके लोगों को भी प्रवेश पत्र नहीं दिया गया था। आखिर यह सूची किसने बनाई और पुराने कांग्रेसियों को क्यों ठुकराया गया? जब घंटे आध घंटे के लिए पुराने दिग्गज ही नहीं सुहा रहे तो ये जनता को कैसे गले लगा कर रखें।
सूरतगढ़ में राहुल के विचार सुनने के लिए अधिक से अधिक संख्या में पुहंचने की अपीलें हर नेता ने की और उनके समाचार भी लगवाए। आश्चर्य है कि जब सूरतगढ़ में जन सभा नहीं थी तब यह प्रचार क्यों किया गया? स्पष्ट शब्दों में यह झूठा प्रचार था।
बड़े मजे की एक बात और रही कि पिछले तीन चार दिनों से समाचार दे रहे और राहुल के कसीदे काढ़ रहे मीडिया को भी पास बने होने के बावजूद प्रवेश नहीं दिया गया। राहुल से मिलने के लिए केवल दो मिनट का समय मांगा गया लेकिन राहुल ने मिलने से मना कर दिया।
एक भी नेता ऐसा नहीं रहा जो राहुल के दो मिनट मीडिया को दिला सकता हो। वैसे मीडिया वाले साथियों को भी यह मालूम पडऩा ही चाहिए था जो अनावश्यक कसीदे निकाल रहे थे।
यहां पर मैं एक बात कहना चाह रहा हूं कि राहुल के लिए स्थानीय मीडिया के लिए 2 मिनट का भी समय नहीं है तो वे और कांग्रेसी नेता भली भांति सोच लें कि चुनाव में या अन्य समारोह में या कार्यक्रमों में दिल्ली का मीडिया काम नहीं आएगा। इस इलाके में तो यहां के ही मीडिया वाले काम आऐंगे।
एक और बात कि राहुल जनता के बीच में रहने की बात कह रहे थे।
राहुल के पास में मीडिया वालों के लिए दो मिनट का भी समय नहीं था तब यह कैसे मान लें कि कांग्रेसी नेता रोजाना लोगों के बीच में रह लेंगे।
राहुल की यात्रा की कहानी कितने ही दिन चलेगी और ज्यों ज्यों बातें मालूम होंगी हम पाठकों तक पहुंचाने का पूरा प्रयास करेंगे। 





गुरुवार, 9 जुलाई 2015

वसुंधरा और संघअपने अपने पाले में कबड्डी कबड्डी करते रहे


वसुंधरा सरकार और संघ संगठन की जाम कबड्डी
अपने अपने पाले में कबड्डी कबड्डी करते रहे

जयपुर में मंदिरों को तोड़े जाने के मामले को लेकर भारतीय जनता पार्टी की सरकार में केवल मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को निशाना बना कर 9 जुलाई को सुबह 9 बजे से 11 बजे तक जयपुर में रास्ते जाम किए गए। इस जाम आंदोलन में संघ सीधे रूप में शामिल नहीं था। संघ आंदोलनों में किसी न किसी संगठन या समिति को माध्यम बना कर साथ देता है ताकि जब भी कोई घातक प्रहार वाला विवाद हो तब गली निकालते हुए बयान दिया जा सके।
जयपुर में दो घंटे जाम लगा कर कबड्डी खेली गई। इसमें न सरकार को परेशानी हुई न संघ संगठनों को परेशानी हुई। इसमें केवल आम जनता को परेशानी हुई और इस कबड्डी से वसुंधरा को राज से हटाना संभव नहीं। इस कबड्डी में किस तरह के पैंतरे डराने धमकाने के चले। इनको समझें।
सरकार की ओर से गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने कहा कि सरकार कानून व शांति व्यवस्था बनाए रखेगी। वे लोग यानि कि प्रदर्शनकारी अपनी बात शांति से कहते हैं आंदोलन करते हैं तो उनको अपनी बात कहने का हक है। दूसरी बात उन्होंने कही कि भाजपा विधायक व कार्यकर्ता आदि आंदोलन में शामिल होते हैं तो पार्टी चाहेगी तो कार्यवाही करेगी। वह पार्टी का मसला है। मतलब यह कि कोई गड़बड़ी नहीं होगी तो कोई कार्यवाही नहीं होगी। बहुत ही सुलझी हुई शांति के पैकेट में लपेटी हुई चेतावनी या धमकी या ईशारा। इसे और स्पष्ट करदूं कि आप अपने पाले में खेलते रहें हमारे सरकार के पाले में आकर कबड्डी कबड्डी ना करें।
इस पर कबड्डी का रूख यह रहा कि सौ से अधिक संगठनों ने सरकारी पाले में जाकर कबड्डी कबड्डी नहीं किया। सरकार अपने कार्यालयों में ठंडी हवा में मस्त रही और संघ व संगठन सड़कों पर चौराहों पर रामधुन में या केवल नारों में लगे रहे। 70 से अधिक स्थानों पर जाम लगाया गया लेकिन पद्धति लगभग यही रही।
बात आती है चैनलों की वे भी इस कबड्डी में भागीदार रहे। जो लोग चैनलों पर 2 घंटे हालात देखने को जमे रहे उनको बार बार एक ही प्रकार के दृश्यों के दिखलाए जाने से कोफत होने लगी थी।
चैनल कह रहे थे कि जयपुर आगरा सड़क पर 7 किलोमीटर तक का जाम लगा है वहनों की कतार लगी है। लेकिन दृश्य नहीं दिखलाया।
पुलिस के बंदोबस्त का कहा जाता रहा लेकिन केवल एक दो स्थानों पर ट्रैफिक वाले या एक दो बार पुलिस जीप नजर आई। सामान्य प्रदर्शन आदि में सड़कों चौराहों आदि पर सेंकड़ों की संख्या में पुलिस वाले दिखाई देते हैं। ढाल व डंडों सहित। महिला पुलिस अलग से। दिखाई देती है लेकिन ऐसे दृश्य आज के जाम में नहीं थे।  केसरिया पताकाओं से प्रदर्शन करते हुए व रामधुन गाते दृश्य जरूर थे। उत्तेजित भाषण नारे आदि कुछ भी नहीं।

वसुंधरा राजे पर वार करने का या चेतावनी देने का यह एक तरीका ही माना जा सकता है। किसके कहने पर या किसके इशारे पर यह खेल हो रहा है। लोग जानते हैं। मंदिरों के तोड़े जाने का एक विषय या बहाना खोजा गया। यह इसलिए लिख रहा हूं कि पूर्व वर्ती कांग्रेस की अशोक गहलोत की सरकार में संपूर्ण प्रदेश में सड़कों में आने वाले व सड़कों के विस्तार विकास में आने वाले मंदिरों व अन्य धार्मिक स्थलों को हटाने की सूची तैयार हुई थी। उस समय जहां जहां नगरपालिकाओं में कांग्रेस के बोर्ड थे व उनका रूखा रवैया था वहां पर राजनैतिक दलों व अन्य जागरूक लोगों व संगठनों द्वारा आवाज भी उठाई गई व धार्मिक स्थलों को हटाने नहीं दिया गया था।
अशोक गहलोत की सरकार के काल में ही मेट्रो ट्रेन का कार्य जयपुर में शुरू हो चुका था।
वसुंधरा पर वार करने के लिए मंदिर मुद्दे को चुना जाना चकित करने वाला नहीं होना चाहिए क्योंकि हमारे देश में धार्मिक मुद्दे पर जनता को एकत्रित करना आसान होता है। संघ व संगठन अन्य भ्रष्टाचार या दुराचार गलत घटिया निर्माण या घोटालों पर आंदोलन करते नहीं दिखते।
यह मुद्दा चुना गया और इसमें जो तरीका चुना गया उसे हवाई फायर कहना चाहिए।
इसे अन्य नाम भी दिए जा सकते हैं चिडिय़ों को उड़ाने के लिए या खुशी में केवल धमाका कारतूस चलाए जाते हैं। आवाज करने के लिए।
वसुंधरा पर वार करना इसलिए नहीं कह रहा कि अगर वार कान नाक को सिर को छूता हुआ हो तब कहा जाता है कि वार फलां पर किया गया। जिस पर किया गया हो वह डर भी जाए। ऐसा वार करने वाले की हिम्मत भी होनी चाहिए। चिडिय़ों को उड़ाने वाले धमाकों से वसुंधरा डरने वाली नहीं।
यह बात घर छोड़ कर या खेत की ढाणी छोड़ कर भाग जाने की नहीं है। खेत की ढ़ाणी भी कोई नहीं छोड़ता। देश के बहुत बड़े प्रदेश राजस्थान की सत्ता छोड़ कर भाग जाना मामूली नहीं हो सकता। वसुंधरा राजे इतनी कच्ची नहीं है कि धमाकों या हवाई फायरों से डर जाए।
मेरा ख्याल है कि जयपुर की 2 घंटे की अपने ही पाले में खेली गई कबड्डी का परिणाम सत्ता बदलाव में आना संभव नहीं। हां, वसुंधरा को यह बतलाया गया है कि संघ राजी नहीं है।
मैं यहां संघ नाराज है शब्द नहीं लिख रहा। हालांकि दोनों की बात एक जैसी ही नजर आती है मगर दोनों की तासीर में अंतर है। संघ के मंदिर टूटते जाने पर अब आने पर उत्तर दिया गया है कि संघ का कार्य करने का अपना तरीका है और वह जब उचित होता है तब कार्यक्रमों में सहयोग करता है।
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मंगलवार, 7 जुलाई 2015

वसुंधरा सामने डसने को खड़ी हो गई तब दिल्ली नेताओं व संघ का क्या होगा?



मंदिर तोड़े जाने से संघ वसुंधरा से नाराज:9 जुलाई जयपुर बंद:
क्या संघ मंदिरों के तोड़े जाने की संख्या की गणना करने में लगा हुआ था अब तक?
वसुंधरा पर इस्तीफे के दबाव का नया पैंतरा:
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- करणीदानसिंह राजपूत -

जयपुर में मैट्रो ट्रेन के लिए एक एक करके मंदिर टूटते रहे और यह संख्या सौ से पार हो गई। कोई नहीं बोला। किसी को बोलते नहीं सुना। किसी का समाचार नहीं देखा। एक एक कर कई माह बीत गए।
अब अचानक संघ की दृष्टि कूपित हुई और वसुंधरा से जवाब मांगा जाने लगा व जयपुर बंद की चेतावनी भरी घोषणा कर दी गई। सवाल यह नहीं है कि जयपुर बंद हो पाएगा या नहीं। जयपुर संपूर्ण बंद नहीं हो पाएगा। यह संघ भी जानता है।
सवाल यह है कि क्या इसके पीछे कोई और राजनैतिक खेल चलाया जा रहा है?
क्या राजनीति की चतुर खिलाडिऩ वसुंधरा इस सांकेतिक दबाव से इस्तीफा देकर सत्ता छोड़ भाग जाएगी?
दिल्ली के राजनैतिक बंदे भी अच्छी तरह से जानते कि वसुंधरा राजे पूरी जिद्दी नेता है और ताकत में कहीं भी कमजोर नहीं है। वह मुख्यमंत्री पद से आसानी से इस्तीफा देने वाली नहीं है।
दिल्ली के उच्च पार्टी नेता जानते हैं कि वसुंधरा को इस्तीफा देने का कहने के बाद वह सामने अड़ गई तो मर्यादा व पावर के तार तार हो जाने में पल भी की देरी नहीं होगी। वसुंधरा के आसानी से इस्तीफा देने की हालत होती तो अब तक दिल्ली नेता कह देते या मोदी ही इशारा कर देते।
खुद नरेन्द्र मोदी को यह भय है कि वसुंधरा को त्यागपत्र का इशारा मात्र करना ही जहरीली नागिन को छेडऩा होगा।
वसुंधरा सामने डसने को तैयार हो जाए तब?
वसुंधरा राजे की इसी शक्ति के कारण ही अब तक चुपी छाई हुई है।
वसुंधरा पर ललित मोदी की मित्रता को लेकर सवाल उठते रहे।
वसुंधरा राजे ने चैनलों के दिन रात के शोर के बावजूद मुंह से कुछ नहीं बोला।
इसके बाद उनके पुत्र दुष्यंत की कंपनी में ललित मोदी द्वारा करोड़ों रूपए लगाए जाने का मामला उछाला गया।
वसुंधरा ने इस पर भी इस्तीफा नहीं दिया।
धौलपुर पैलेस को लेकर एक बार फिर प्रयास किया गया लेकिन पार नहीं पड़ी।
अब नया तरीका अपनाया गया है कि मंदिरों के तोड़े जाने का दबाव राजस्थान की मुख्यमंत्री पर बनाया जाए कि उनकी सरकार की जिम्मेदारी थी। यह प्रचारित किया जाए कि वसुंधरा राजे से संघ भी नाराज है।
एक दिन के जयपुर बंद से क्या वसुंधरा दबाव में आ जाएगी?
वसुंधरा को संघ की ताकत का मालूम है। कहीं ऐसा न हो जाए कि संघ की हवा निकल जाए।
एक दिन के बाद संघ क्या करेगा?
संघ के हालात भी कोई अच्छे नहीं हैं।
राजस्थान में अब कितनी शाखाएं लगती हैं?
अपने अपने शहर कस्बे में ही देखलें कि कितनी शाखाएं लगती हैं और उनमें कितने सेवक उपस्थित होते हैं।
ऐसा लगता है कि संघ अब चैनलों में व समाचार पत्रों में ही रह गया है जिसमें बड़े का भाषण ही सुन पाते हैं।
आजकल संघ जिस दुर्दशा पर है वह पथ संचलन में दिखाई पड़ता है। आजकल नगाड़े की धमक पर सेवकों के कदम सधे हुए एक जैसे न उठते हैं न पड़ते हैं। संघ के नाम का दबाव पहले हुआ करता था जब संघ में पूर्ण रूप में देश के प्रति समर्पण की भावना से काम होता था।
संघ से जुड़े स्कूलों में कार्यक्रमों व समारोहों में किस प्रकार के नेता अतिथि होने लगे हैं। आरोपी लोगों को क्यों बुलाया जाने लगा है? पैसा तो संघ के स्कूलों में भी अब कम नहीं है,उनकी फीस भी अंग्रेजी स्कूलों के समतुल्य है।
संघ के लोग कितने ईमानदार रहे हैं और सरकारी कर्मचारी अधिकारी के पद पर बैठे कितने लोग स्वच्छ रह पाए हैं?
ऐसी हालत में कैसे किसी पर दबाव बनाया जा सकेगा?
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करणीदानसिंह राजपूत,
स्वतंत्र पत्रकार,
सूरतगढ़।
94143 81356

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शनिवार, 4 जुलाई 2015

भूखंडों के पट्टे देने में बनवारीलाल का पालिका बोर्ड भी जिम्मेदार


सूरतगढ़। पालिकाध्यक्ष बनवारीलाल मेघवाल और मदनसिंह बुडानिया ने जो पट्टे जारी किए उनके जारी करने में कई मामलों में तो पालिका बोर्ड के सभी सदस्य भी पूरी तरह से जिम्मेदारी के घेरे में हैं। करोड़ों रूपए के खांचा भूमि के सभी मामले बोर्ड की बैठकों में प्रस्ताव पारित हुए हैं। बोर्ड के सदस्य जो भी उन बैठकों में हाजिर रहे हैं वे भी पूर्ण जिम्मेदार हैं। एक एक खांचा करोड़ों रूपयों का आँख बंद कर नींद में नहीं दिया जा सकता। बनवारीलाल के शिकायती पत्र में खांचा भूमि के पट्टे देने के मामले भी शामिल हैं।

शुक्रवार, 3 जुलाई 2015

नगरपालिका उपाध्यक्ष पवन औझा भी पट्टा शिकायत में आरोपी:



पत्नी गीतादेवी के पार्षदकाल में लिया पट्टा:
बनवारीलाल मेघवाल ने शिकायत में किया उल्लेख:
सूरतगढ़ 3 जुलाई 2015.
नगरपालिका के वर्तमान बोर्ड में उपाध्यक्ष पवन औझा पर भी आरोप है कि उन्होंने अपनी पत्नी के पार्षद काल में पिछले बोर्ड में भूखंड का स्टेट ग्रांट में पट्टा लिया।
 पिछले नगरपालिका बोर्ड में अध्यक्ष रहे बनवारीलाल मेघवाल ने गलत पट्टे जारी होने की शिकायत की थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि ईओ मदनसिंह बुडानिया ने भ्रमित कर गलत पट्टे जारी करवा लिए। बनवारीलाल ने उनकी जाँच करवाने व निरस्त करवाने का लिखा था।
बनवारीलाल के काल में स्टेट ग्रांट में दिए समस्त पट्टों की जाँच होती है तो उनमें भी बड़े राज खुलेंगे। कई राजनैतिक परिवारों,सेठों,बणियों को बिना दस्तावेजों को पूरा कराए या असलियत को छिपा कर पट्टे दिए और लिए गए।

गुरुवार, 2 जुलाई 2015

पट्टाघोटाला:बनवारी की शिकायत में 61 नाम:ईओ मदन बुडानिया पर आरोप:



पूर्व पालिकाध्यक्ष ने जाँच व पट्टा निरस्त करने का मांग पत्र दिया था:

बनवारीलाल ने लिखा कि ईओ मदनसिंह बुडानिया ने भ्रमित कर पट्टे जारी करवाए:
5 साल बाद पत्र परेशानी का कारण बनेगा:लोग नकलें निकलवाऐंगे और जाँच करवाऐंगे:

स्पेशल रिपोर्ट-करणीदानसिंह राजपूत
सूरतगढ़,2 जुलाई।
बनवारीलाल मेघवाल ने अपने पालिका अध्यक्ष काल में जो शिकायत पत्र जयपुर भेजा उसमें लिखा कि नया अध्यक्ष बना था और ईओ मदनसिंह बुडानिया ने भ्रमित कर पट्टे जारी करवाए। बुडानिया ने पूछने पर इन पट्टों को नियमानुसार सही बतलाया। अगर ये पट्टे गलत हैं तो बुडानिया के विरूद्ध कार्यवाही की जाए तथा पट्टों को निरस्त किया जाए। बुडानिया के बाद ईओ पद पर आए भंवरलाल सोनी ने बनवारीलाल को बताया कि पट्टे नियम विरूद्ध हैं। विदित रहे कि मदनसिंह बुडानिया यहां दुबारा और आए या लाए गए। सेवानिवृति पर शानदार समारोह हुआ और अब उनकी बेटी प्रियंका बुडानिया ईओ पद आई हैं या लाई गई हैं।
बनवारीलाल मेघवाल ने जिन लोगों के नाम लिखे हैं वे यहां दिए जा रहे हैं।
1.दुर्गादेवी पत्नी श्यामसुंदर खंडेलवाल नगरपालिका में भूमि शाखा इंचार्ज।
2.अशोक कुमार पुत्र श्यामसुंदर खंडेलवाल नगरपालिका में भूमि शाखा इंचार्ज।
3.कृष्ण तरड़
4.करूणा रत्न पत्नी विजयकुमार शर्मा। विजयकुमार शर्मा आरसीपी कर्मचारी थे।
5.हंसराज पुत्र नन्दलाल यादव
6.जयदेव पुत्र रघुनाथ सहाय
7.आनन्द पुत्र रघुनाथ सहाय
8.हनुमान पुत्र हीरालाल पुत्र रघुनाथ सहाय
9.देवेन्द्र वर्मा पुत्र राजेन्द्र वर्मा
10.फकीरचंद नाई पुत्र प्रभाती लाल नाई
11.चेतराम पुत्र सुरजाराम आसेरी
12.कलावन्ती पत्नी भागीरथ सुथार
13.मुरलीधर पुत्र किशनलाल पारीक
14.जसवीरसिंह पुत्र स्वर्णसिंह रामगढिया
15.बाबूलाल पुत्र छबीलाराम
16.सुभाष पुत्र छबीलाराम
17.मदनलाल पुत्र लछमन राम मेघवाल
18.जयभगवान पुत्र कस्तूरीलाल
19.नंदलाल पुत्र मंहगाराम
20.राजकुमारी पत्नी रघुनाथ राम
21.बन्तासिंह पुत्र मालासिंह
22.गुड्डीदेवी / रतनलाल
23.मीरादेवी पत्नी कृष्णचन्द्र गोदारा
24.मक्खूशाह पीर पुत्र मिल्लूशाह पीर
25.सुभाषचन्द्र /अशोककुमार/सुरेशकुमार/महेशकुमार/संजयकुमार/दिनेशकुमार  पिसरान नन्दकिशोर
26.नन्दराम पुत्र चेतराम
27.पार्वतीदेवी पत्नी शंकरलाल
28.परमेश्वरीदेवी पत्नी छगनलाल
29.विजय शंकर पुत्र शिवपतराय मून्धड़ा
30.नरेन्द्रकुमार पुत्र सोहनलाल गोलछा
31.संपतलाल पुत्र सोहनलाल गोलछा
32.पवन ओझा पुत्र शंकरलाल उस समय इनकी पत्नी पार्षद थी।
33.मंगतराय अग्रवाल पुत्र गजानन्द अग्रवाल
34.पूनमचंद जैन वार्ड नं 17 पुराना
35.संतोषदेवी पत्नी दलेलसिंह। पति एमइएस में नौकरी। राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर।
36.सौरभकुमारी पत्नी अनिलकुमार अग्रवाल। राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर।
37.हीरालाल पुत्र ओमप्रकाश राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर।
38.दलीपकुमार पुत्र हरसुखराम राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर।
39.संजयकुमार पुत्र पूनमचंद राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर।
40.जितेन्द्र कांडा पुत्र छगनलाल कांडा राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर।
41.रामचन्द्र पुत्र होलाराम अरोड़ा राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर।
42.हेतराम पुत्र लूणा राम
43.केहरसिंह पुत्र लूणा राम
45.आत्मचन्द्र पुत्र श्योजी राम
46.छोटू खां पुत्र सन्तू खां
47.राजू खां पुत्र छोटू खां
48.सोना पत्नी बून्दी राम
49.कलाली देवी प्तनी स्व.नानुराम
50.लूणाराम पुत्र कल्याणा राम
51.मनजीतकौर पत्नी अजैबसिंह
52.गजेन्द्रसिंह पुत्र सोहनसिंह
53.मुन्नी देवी पत्नी रामेश्वर लाल
54. महावीरसिंह पुत्र लालसिंह
55.मानक पुत्र नत्थूराम
56.विनोद कुमार पुत्र उत्तमचन्द्र
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भंवरलाल सोनी

मदनसिंह बुडानिया के स्थानानतरण के बाद यहां आए भंवरलाल सोनी ईओ ने यह तो साफ कर दिया कि पट्टे नियम विरूद्ध जारी हुए हैं तब बनवारीलाल ने अपना बचाव करने की सोच के साथ यह पत्र लिखा। लेकिन जब पट्टे नियम विरूद्ध जारी हुए तो बनवारीलाल व मदनसिंह बुडानिया ने साधुत्व के नाते तो इनको जारी नहीं किया होगा। इनमें भारी भरकम डील हुई होगी और किस किस रूपए लिए गए होंगे? यह जाँच में ही उजागर हो सकेगा।  आखिर उस डील की रकम का हिस्सेदार कौन कौन रहा होगा? इस पत्र ने लोगों के लिए भारी परेशानी पैदा करदी है। मदनसिंह बुडानिया की पुत्री प्रियंका बुडानिया अब यहां ईओ आई है या लाई गई है लेकिन क्या वह जाँच को प्रभावित नहीं करेगी।
बनवारीलाल मेघवाल का पत्र 8 पेज फोटो देखने के लिए यहां क्लिक करें।

सूरतगढ़ में बनवारी के पत्र से पट्टे वालों में खलबली:8 पेज:

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