शनिवार, 21 मार्च 2015

रेलगाड़ी घास लकडिय़ां ढोने का जुगाड़: अधिकारी कर्मचारी शामिल:रेल आमदनी को चपत:


डिब्बों में लकडिय़ां घास भरे होने से यात्रियों को परेशानी:




सूरतगढ़ पहुंचने वाली गाडिय़ों में मिली भगत से चलता धंधा:
टीटी और सुरक्षा बल करते हैं कौनसी ड्यूटी?
- खास खबर -



सूरतगढ़ 21 मार्च 2015.
श्रीगंगानगर से सूरतगढ़ और अनूपगढ़ से सूरतगढ़ पहुंचने वाली दिन की यात्री गाडिय़ों में कई डिब्बों में लकडिय़ां और घास की बड़ी बड़ी गठरियां लदी होती हैं। यहां तक की कई बार तो लग्गेज वान में भी यह फ्री का सामान भरा होता है। जिन डिब्बों में दरवाजों के पास में ये लकडिय़ों के गठर और घास की गठरियां लदी होती हैं उनमें आम यात्रियों को प्रवेश करना और बाहर निकलना बड़ा मुश्किल होता है। मिली भगत से हो रहे इस घोटाले से रेल को हानि और यात्रियों को भारी परेशानी होती है मगर मिलीभगत करने वाले रेल अधिकारियों व कर्मचारियों को इससे कोई परवाह नहीं। अधिकांश महिलाएं लड़कियां ये लकडिय़ों के  गठर और घास की गठरियां लेकर सवार होती है। ये महिलाएं और लड़कियां सूरतगढ़ से सुबह रवाना होने वाली गाडिय़ों में बिना टिकट सवार होती हैं तथा नजदीकी स्टेशनों पर उतर जाती हैं। वहां से स्टेशन के आसपास व रेल पटरियों के पास से पेड़ों की व कीकर झाडिय़ों की लकडिय़ां घास काटती हैं। वापसी में आने वाली गाडिय़ों में बिना टिकट अपने घास व लकडिय़ों को लेकर सवार हो जाती हैं तथा सूरतगढ़ में प्लेटफार्म के दूसरी ओर पटरियों की तरफ उतरती हैं। उनका पटरियों की तरफ उतरना और रेल पटरियों के ऊपर से गठर व गठरियों को ले जाना खतरे से भरा होता है।
यह सब रेल कर्मचारी रोजाना ही देखते हैं। जब कभी दुर्घटना होगी तब इसके लिए कौन जिम्मेदार होंगे? रेल प्रशासन उस वक्त किस पर यह जिम्मेदारी डालेगा?
इस मिली भगती से प्रतिदिन रेल की आय को चपत लगती है तथा वह आय अधिकारियों कर्मचारियों की जेब में जाती है।




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