रविवार, 28 दिसंबर 2014

मैडम,बचो। ये आपको फंसवा देंगे। 1 चेयरमेन 1 ईओ जेल की हवा खा आए और कईयों पर मुकद्दमें दर्ज हैं।


टिप्पणी - करणीदानसिंह राजपूत
नगरपालिका के भाजपा बोर्ड की पहली बैठक और राजनीति में एकदम नई आई काजल छाबड़ा की अध्यक्षता में विधायक राजेन्द्रसिंह भादू की उपस्थिति  में भाजपा के ही पार्षद सुभाष सैनी ने ये वाक्य कह कर अध्यक्ष को सावधान किया। एजेंडे का मुद्दा था पुराने 2004 में नीलाम हुए भूखंड और उनकी इतने साल बाद रकम भरवा कर बोली दाताओं को देने का। देखने में तो यह मामला साधारण सा ही लगता है लेकिन विचार करें तो इसके पीछे कोई षडय़ंत्र या दलाली में मोटा माल जीमने की बात ही लगती है। सन 2004 के बाद कितने अध्यक्ष आए गए और कितने ही ईओ तथा कार्यवाहक ईओ आए लेकिन उनके कार्यकाल में यह मामला नहीं आया। खरीदारों ने पहले तो रकम जमा नहीं करवाई तो अब ऐसा क्या हो गया कि वे रकम जमा करवा कर भूखंड के मालिक बनना चाहते हैं।
ऐजेंडे में जो भी मुद्दा लिया जाता है उसके लिए प्रारूप भूमिका नोट तैयार किया जाता है। इस मुद्दे में यह नोट किसने तैयार किया और उस पर किस किस के हस्ताक्षर हुए? बिना ईओ और अध्यक्ष की स्वीकृति के भी यह ऐजेंडे में शामिल नहीं हुआ होगा। उनकी स्वीकृति जरूर रही है। हंगामें के बाद इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया और यहां तक कहा गया कि भविष्य में भी यह प्रस्ताव दुबारा नहीं आना चाहिए। पार्षद भी पालिका नियमों की जानकारी के बगैर ही सभा बैठक में जाते हैं। प्रस्ताव आया तब इस मुद्दे से संबंधित पत्रावलियां सदन में मंगवाते और देखते कि उनमें किस किसने क्या क्या गोल माल किया है? अभी भी मंगवा कर देख सकते हैं।
इस मुद्दे के अलावा एक मंदिर की जमीन का नियमन का मामला भी आया और खारिज किया गया। उसकी पत्रावली भी देखी जा सकती है कि कितनी जमीन उसके पास पहले से है और कितनी जमीन उसकी असल में रोकी हुई है। इस प्रस्ताव के साथ अभियंताओं की रिपोर्ट भी होगी। जिसमें कब्जे का वर्णन कितने साल से है, लिखा होगा।
नगरपालिका में केवल अध्यक्ष ही नहीं कई पार्षद भी पहली बार चुन कर आए हैं। उनको सावधान होकर ही कार्यवाही करनी चाहिए और प्रस्ताव पारित करने चाहिए। अगर गलत घोटालों का नगरपालिका को चूना लगाने का प्रस्ताव पारित किया जाता है तो उसमें अकेली अध्यक्ष इ्रओ ही नहीं फंसेंगे। उसमें प्रस्ताव पारित करने वालों की नीयत होगी और वे भी उसी जुर्म के भागीदार होंगे। किसी गलत घोटाले के कार्य को बोर्ड में पारित करवा लिये जाने से वह सही नहीं हो जाता है। और पार्षद इसलिए नहीं बच सकते कि बोर्ड की बैठक में आया था। सभी की सहमति थी या विरोध नहीं था। नगरपालिका कानूनों में एकदम साफ लिखा हुआ है कि नगरपालिका को राज्य के कोश को हानि नहीं होनी चाहिए।
अब एक बात मैं और बताना चाहता हूं कि मामला केवल भूखंडों का ही नहीं है। सूरतगढ पालिका में तो ना जाने कितने घोटाले भरे हुए हैं।
नियमानुसार जिन घरेलू आवासीय भूखंडों शॉपिंग काम्पलेक्स कटले बन नहीं सकते उनमें भी राजनैतिक प्रभाव व धन बल से ईओ से पक्ष में रिपोर्टें तैयार करवा ली जाती है और उस पर अध्यक्ष भी कभी न कभी हस्ताक्षर करके बैठ जाता है। रिपार्टों में लिखा जाता है कि नियमानुसार कार्यवाही की जाए। बड़ी होशियारी से यही लिखा जाता है स्पष्ट रूप में कानून और उसकी धाराएं नहीं लिखी जाती कि इनके तहत सही हो तो कार्यवाही की जाए। ऐसे कटलों की फाईलें भी इसी पालिका में हैं और किसी न किसी दिन उन पर हस्ताक्षर भी हो जाने का खतरा है। जब बात आएगी राजनैतिक प्रभाव या धन बल की या अहसान उतारने की तब कुर्बानी हो जाएगी। कौन कौन और कब तक सावधान करते रहेंगे पार्षद। सावधानी तो यह होनी चाहिए कि पार्षद इस प्रकार के मामलों में चुप नहीं रहें। संपूर्ण फाईलें देखें और जरूरी नहीं है कि उसी बैठक में प्रस्ताव पर सहमति देदें। उसे रोक दें या निरस्त करदें। राज्य सरकार के पास पूरी फाइल भिजवादें। मौके पर खुद जाकर देखें। नगरपालिका के कानूनी सलाहकार भी इस प्रकार के मामलों में कानून की धाराओं के अनुसार साफ रिपोर्ट नहीं देते और अपनी और से सुझाव तक दे डालते हैं। ऐसी रिपोर्ट पर भी पार्षद गौर कर सकते हैं। जब बड़े लोगों के भूखंडों के मामले आते हें तो सतर्क जरूर हो जाना चाहिए कि कोई घोटाला तो नहीं हो रहा है। वैसे घाटालों के मामले छुपे नहीं होते। वे आम जनता के सामने पहले से ही होते हैं तथा उनमें भी मजबूरी में अहसान में अध्यक्ष व ईओ आदि फंस जाते हैं।
लेकिन पार्षद चाहें तो ऐसे घोटाले के प्रस्तावों को पारित करने पर रोक और जाँच तक करवा सकते हैं।
यहां सूरतगढ़ में भाजपा का बोर्ड है, ऐसी हालत में कांग्रेस पार्टी के पार्षदों को पूरी तैयारी के साथ बैठकों में शामिल होना चाहिए और अपनी असहमति लिखवानी चाहिए। जरूरी हो तो वोटिंग भी करवानी चाहिए। इसके अलावा जो निर्दलीय जीत कर पार्षद बने हैं उनकी भी पूरी ड्यूटी है कि वे भी घोटालों आदि के प्रस्ताव पर चुप ना बैठें।
हर पार्षद हर प्रस्ताव पर अपने विचार रख सकता है। कोई टोक नहीं सकता। कई बार दबाव से कहा जाता है कि अपने वार्ड का मामला हो तों बोलें, लेकिन यह रोकना गलत होता है।
तो रहें सावधान कि कोई भी आपकी कुर्बानी न ले सके और फंसा न सके। जो फंसते हैं वे बाद में अकेले काननी लड़ाईयां लड़ रहे हैं। राजनैतिक आका किसी के काम नहीं आ रहे हैं।
तो बचो और आगे के लिए भी बचे रहो।
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