मंगलवार, 30 दिसंबर 2014

रेलवे द्वारा मकानों के हटाने का नोटिस:मकान मालिक पट्टेवाले:

रेलवे के नोटिस से करीब 50 से अधिक परिवार प्रभावित
मकान बने हुए चालीस पचास साल बीत गए
पार्षदों व मकान मालिकों की हुई बैठक:
खास रिपोर्ट: करणीदानसिंह राजपूत
रेलवे ने अपनी सीमा बतलाते हुए रेलवे सीमा से सटे हुए मकानों को हटाने का नोटिस दिया है जिस पर हड़कम्प मचा है। मकान मालिकों के पास नगरपालिका के दिए हुए पट्टे भी हैं। रेलवे ने इस प्रकार की कार्यवाही पहले भी की थी लेकिन वह शांत हो गई थी। अब फिर रेलवे के नोटिस से करीब 50 से अधिक परिवार प्रभावित हैं और भयानक शीत लहर में वे अचानक कहां जाएं?
रेलवे जिस भूमि को अपनी बता रहा है उस पर मकान बने हुए चालीस पचास साल बीत गए हैं। रेलवे ने अपनी जमीन की सुरक्षा क्यों नहीं की? रेलवे अपनी सीमा तक लोहे की पटरियों के टुकड़े गाड़ कर सीमा चिन्हित करतर रहा है। यहां पर यह चिन्ह क्यों नहीं लगाए गए थे? रेलवे जिस भूमि को अपनी बतला रहा है, उसके बारे में कोई मैप आदि संबंधित नागरिकों को बताया ही नहीं गया है। रेलवे को सीमा ज्ञान किसने करवाया?
रेलवे की कुल कितनी भूमि पालिका क्षेत्र में आती है और वह कहां से कहां तक है? इस भूमि का ज्ञान शहर वासियों को होना जरूरी है।
रेलवे जब तब नागरिकों को नोटिस थमा कर उनके परेशानी डालने वाले कार्य करता रहा है।
अगर यह भूमि रेलवे की है और पालिका ने उसके पट्टे दे दिए हैं तथा रेलवे को अब भूमि की आवश्यकता है तो वह अन्य स्थान पर नगरपालिका से ली जानी चाहिए। नगरपालिका ने संबंधित भूमि के जो भी रियायती दर थी उसके हिसाब से पैसे लिए हैं। नगरपालिका की भी जुम्मेदारी बनती है, इसलिए इस मामले को निपटाने के लिए पालिका बोर्ड को भी पहल करनी चाहिए तथा मकान मालिकों को राहत दिलानी चाहिए।
रेलवे के नोटिस से पचास से अधिक परिवारों का चैन खत्म हो गया है।
इस मामले की गंभीरता को लेकर पार्षदों व प्रभावित लोगों की एक बैठक 30 दिसम्बर 2014 को वार्ड नं 24 के सामुदायिक भवन में हुई है। उक्त बैठक में गोपीराम नायक,ज्योति महंत, अजय धींगड़ा,विनयसिंह चंदेल,जगदीश मेघवाल,पंकज सैनी,प्रदीप भारद्वाज,यशपाल शर्मा,जगदीश आचार्य,विक्रम आचार्य आदि उपस्थित हुए हैं।

रविवार, 28 दिसंबर 2014

मैडम,बचो। ये आपको फंसवा देंगे। 1 चेयरमेन 1 ईओ जेल की हवा खा आए और कईयों पर मुकद्दमें दर्ज हैं।


टिप्पणी - करणीदानसिंह राजपूत
नगरपालिका के भाजपा बोर्ड की पहली बैठक और राजनीति में एकदम नई आई काजल छाबड़ा की अध्यक्षता में विधायक राजेन्द्रसिंह भादू की उपस्थिति  में भाजपा के ही पार्षद सुभाष सैनी ने ये वाक्य कह कर अध्यक्ष को सावधान किया। एजेंडे का मुद्दा था पुराने 2004 में नीलाम हुए भूखंड और उनकी इतने साल बाद रकम भरवा कर बोली दाताओं को देने का। देखने में तो यह मामला साधारण सा ही लगता है लेकिन विचार करें तो इसके पीछे कोई षडय़ंत्र या दलाली में मोटा माल जीमने की बात ही लगती है। सन 2004 के बाद कितने अध्यक्ष आए गए और कितने ही ईओ तथा कार्यवाहक ईओ आए लेकिन उनके कार्यकाल में यह मामला नहीं आया। खरीदारों ने पहले तो रकम जमा नहीं करवाई तो अब ऐसा क्या हो गया कि वे रकम जमा करवा कर भूखंड के मालिक बनना चाहते हैं।
ऐजेंडे में जो भी मुद्दा लिया जाता है उसके लिए प्रारूप भूमिका नोट तैयार किया जाता है। इस मुद्दे में यह नोट किसने तैयार किया और उस पर किस किस के हस्ताक्षर हुए? बिना ईओ और अध्यक्ष की स्वीकृति के भी यह ऐजेंडे में शामिल नहीं हुआ होगा। उनकी स्वीकृति जरूर रही है। हंगामें के बाद इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया और यहां तक कहा गया कि भविष्य में भी यह प्रस्ताव दुबारा नहीं आना चाहिए। पार्षद भी पालिका नियमों की जानकारी के बगैर ही सभा बैठक में जाते हैं। प्रस्ताव आया तब इस मुद्दे से संबंधित पत्रावलियां सदन में मंगवाते और देखते कि उनमें किस किसने क्या क्या गोल माल किया है? अभी भी मंगवा कर देख सकते हैं।
इस मुद्दे के अलावा एक मंदिर की जमीन का नियमन का मामला भी आया और खारिज किया गया। उसकी पत्रावली भी देखी जा सकती है कि कितनी जमीन उसके पास पहले से है और कितनी जमीन उसकी असल में रोकी हुई है। इस प्रस्ताव के साथ अभियंताओं की रिपोर्ट भी होगी। जिसमें कब्जे का वर्णन कितने साल से है, लिखा होगा।
नगरपालिका में केवल अध्यक्ष ही नहीं कई पार्षद भी पहली बार चुन कर आए हैं। उनको सावधान होकर ही कार्यवाही करनी चाहिए और प्रस्ताव पारित करने चाहिए। अगर गलत घोटालों का नगरपालिका को चूना लगाने का प्रस्ताव पारित किया जाता है तो उसमें अकेली अध्यक्ष इ्रओ ही नहीं फंसेंगे। उसमें प्रस्ताव पारित करने वालों की नीयत होगी और वे भी उसी जुर्म के भागीदार होंगे। किसी गलत घोटाले के कार्य को बोर्ड में पारित करवा लिये जाने से वह सही नहीं हो जाता है। और पार्षद इसलिए नहीं बच सकते कि बोर्ड की बैठक में आया था। सभी की सहमति थी या विरोध नहीं था। नगरपालिका कानूनों में एकदम साफ लिखा हुआ है कि नगरपालिका को राज्य के कोश को हानि नहीं होनी चाहिए।
अब एक बात मैं और बताना चाहता हूं कि मामला केवल भूखंडों का ही नहीं है। सूरतगढ पालिका में तो ना जाने कितने घोटाले भरे हुए हैं।
नियमानुसार जिन घरेलू आवासीय भूखंडों शॉपिंग काम्पलेक्स कटले बन नहीं सकते उनमें भी राजनैतिक प्रभाव व धन बल से ईओ से पक्ष में रिपोर्टें तैयार करवा ली जाती है और उस पर अध्यक्ष भी कभी न कभी हस्ताक्षर करके बैठ जाता है। रिपार्टों में लिखा जाता है कि नियमानुसार कार्यवाही की जाए। बड़ी होशियारी से यही लिखा जाता है स्पष्ट रूप में कानून और उसकी धाराएं नहीं लिखी जाती कि इनके तहत सही हो तो कार्यवाही की जाए। ऐसे कटलों की फाईलें भी इसी पालिका में हैं और किसी न किसी दिन उन पर हस्ताक्षर भी हो जाने का खतरा है। जब बात आएगी राजनैतिक प्रभाव या धन बल की या अहसान उतारने की तब कुर्बानी हो जाएगी। कौन कौन और कब तक सावधान करते रहेंगे पार्षद। सावधानी तो यह होनी चाहिए कि पार्षद इस प्रकार के मामलों में चुप नहीं रहें। संपूर्ण फाईलें देखें और जरूरी नहीं है कि उसी बैठक में प्रस्ताव पर सहमति देदें। उसे रोक दें या निरस्त करदें। राज्य सरकार के पास पूरी फाइल भिजवादें। मौके पर खुद जाकर देखें। नगरपालिका के कानूनी सलाहकार भी इस प्रकार के मामलों में कानून की धाराओं के अनुसार साफ रिपोर्ट नहीं देते और अपनी और से सुझाव तक दे डालते हैं। ऐसी रिपोर्ट पर भी पार्षद गौर कर सकते हैं। जब बड़े लोगों के भूखंडों के मामले आते हें तो सतर्क जरूर हो जाना चाहिए कि कोई घोटाला तो नहीं हो रहा है। वैसे घाटालों के मामले छुपे नहीं होते। वे आम जनता के सामने पहले से ही होते हैं तथा उनमें भी मजबूरी में अहसान में अध्यक्ष व ईओ आदि फंस जाते हैं।
लेकिन पार्षद चाहें तो ऐसे घोटाले के प्रस्तावों को पारित करने पर रोक और जाँच तक करवा सकते हैं।
यहां सूरतगढ़ में भाजपा का बोर्ड है, ऐसी हालत में कांग्रेस पार्टी के पार्षदों को पूरी तैयारी के साथ बैठकों में शामिल होना चाहिए और अपनी असहमति लिखवानी चाहिए। जरूरी हो तो वोटिंग भी करवानी चाहिए। इसके अलावा जो निर्दलीय जीत कर पार्षद बने हैं उनकी भी पूरी ड्यूटी है कि वे भी घोटालों आदि के प्रस्ताव पर चुप ना बैठें।
हर पार्षद हर प्रस्ताव पर अपने विचार रख सकता है। कोई टोक नहीं सकता। कई बार दबाव से कहा जाता है कि अपने वार्ड का मामला हो तों बोलें, लेकिन यह रोकना गलत होता है।
तो रहें सावधान कि कोई भी आपकी कुर्बानी न ले सके और फंसा न सके। जो फंसते हैं वे बाद में अकेले काननी लड़ाईयां लड़ रहे हैं। राजनैतिक आका किसी के काम नहीं आ रहे हैं।
तो बचो और आगे के लिए भी बचे रहो।
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शनिवार, 20 दिसंबर 2014

श्रीगंगानगर सूरतगढ़ के आपातकाल 1975 के बंदी क्रांतिकारियों को पेंशन आदेश:


स्वर्गवास हो चुके क्रांतिकारियों के आश्रितों को पेंशन:
पेंशन जनवरी 2014 से मिलेगी।
इंदिरागांधी के शासन की क्रूरता के विरूद्ध आवाज उठाई:राष्ट्रीय सुरक्षा कानून में जेल में ठूंस दिया गया था:
विशेष खबर - करणीदानसिंह राजपूत

सूरतगढ़, दिसम्बर,2014.
राजस्थान की भाजपा वसुंधरा राजे सरकार ने आपातकाल के बंदी सूरतगढ़ क्रांतिकारियों को पेंशन शुरू कर दी है। जिला कलक्टर आर.एस.जाखड़ श्रीगंगानगर ने 21 अक्टूबर को समिति की बैठक कर आदेश जारी कर दिए। जिनकी
पेंशन
  शुरू की गई है उनके नाम निम्र हैं। इनकी जो राशि शुरूआत में मंजूर हुई है वह निम्र है।






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मंगलवार, 16 दिसंबर 2014

आपातकाल लोकतंत्र सेनानी गोपसिंह की अंतिम यात्रा शहीदों को नमन करते निकाली गई


15 दिसम्बर 1975 को आपातकाल के विरूद्ध गिरफ्तारी दी और 15 दिसम्बर 2014 को संसार से विदाई ली:
अनेक संघर्षों के साथी रहे:
स्पेशल रिपोर्ट- करणीदानसिंह राजपूत
सूरतगढ़ 16 दिसम्बर 2014.
आपातकाल की क्रूरताओं के विरोधी लोकतंत्र सेनानी गोपसिंह सूर्यवंशी की अंतिम यात्रा शहीदों की प्रतिमाओं को नमन करते हुए निकाली गई। सुभाष चौक, महाराणा प्रताप चौक, भगतसिंह चौक,चन्द्रशेखर आजाद चौक, भारत माता चौक और महारी लक्ष्मी बाई चौक होकर अंतिम यात्रा निकाली गई और कल्याण भूमि में अंतिम संस्कार किया गया। अंतिम संस्कार में परिजनों के अलावा सैंकड़ों विभिन्न समुदाय व वर्गों के लोगों ने भाग लिया।
गोपसिंह ने आपातकाल का विरोध किया था।
एक दल में  6 जने गोपसिंह सूर्यवंशी पूर्व पार्षद निवासी लाइनपार वार्ड नं 19 सूरतगढ़, सुगनपुरी जो अब अध्यापक है,महावीर प्रसाद तिवाड़ी जो फार्म में सर्विस में है, नेमीचंद छींपा पूर्व पार्षद हैं,स्व़मदनलाल मेघवाल, चम्पालाल जो आजकल हैदराबाद में हैं। इन्होंने 15 दिसम्बर 1975 को गिरफ्तारी दी थी। इस दल का नेतृत्व गोपसिंह ने किया था। गोपङ्क्षसह ने इसी दिन 15 दिसम्बर को संसार से विदाई ली। गोपसिंह का निधन 15 दिसम्बर 2014 को राजकीय चिकित्सालय श्रीगंगानगर में हुआ। सुबह उनको राजकीय चिकित्सालय सूरतगढ़ में दिखलाया गया व वहां से रेफर होने पर श्रीगंगानगर ले जाया गया था। अंतिम समय में उनके पास उनकी पत्नी श्रीमती रोमिला, बड़े भाई पत्रकार करणीदानसिंह राजपूत व छोटे भाई प्रेमसिंह सूर्यवंशी थे।
राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार ने आपातकाल के रासुका बंदियों को पेंशन स्वीकृत की थी। वह पेंशन गोपसिंह की स्वीकृत हुई। उसके संबंधित स्वयं के फोटो आदि 15 दिसम्बर 2014 को श्रीगंगानगर में पेश करने थे। बलराम वर्मा का फोन आया था कि गोपसिंह को श्रीगंगानगर आने का कहो। लेकिन उस समय गोपसिंह चिकित्सालय में भर्ती थे। ये अजीब संयोग ही रहे। गोपसिंह का पार्थिव शरीर जब राजकीय चिकित्सालय से लिया गया तब बलराम वर्मा व नेमीचंद छींपा मौजूद थे। गोपसिंह के अङ्क्षतम संस्कार के समय उनके साथ गिरफ्तारी देने वाले, आपातकाल का विरोध करने वाले कई साथी मौजूद थे।
गोपसिंह ने सूरतगढ़ में राजकीय महा विद्यालय खुलवाने के आंदोलन में सहयोग दिया। उसके बाद महाविद्यालय में वाणिज्य संकाय खुलवानेके आदोलन में सहयोग दिया। उसी दौरान मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर एक पत्थर वर्षा में घायल हुए और गिरफ्तारियां हुई जिसमें अन्य लोगों के साथ गोपसिंह भी गिरफ्तार हुए और यह प्रकरण अदालतों में 12 साल तक चला। बाद में इसमें सभी बरी किए गए।
राजकीय चिकित्सालय सूरतगढ़ में पहले महिला चिकित्सक नहीं थी जिसके लिए चिकित्सालय के आगे गोपसिंह ने अनशन किया।
विद्यार्थीकाल में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सदस्य रहे।
रेलवे रामलीला में 10-12 साल तक गोपसिंह ने राम और छोटे भाई प्रेमसिंह ने लक्ष्मण का अभिनय किया। जो अत्यन्त प्रसिद्ध अभिनय रहा।
बेडमिंटन खेलने में भी गोपसिंह प्रेमसिंह की जोड़ी सालों तक प्रसिद्ध रही।
सन् 1994 से 1999 तक नगरपालिका में पार्षद रहे।
अनेक आंदोलनों में गोपसिंह शामिल रहे।
सूरतगढ़ के इतिहास में गोपसिंह सूर्यवंशी का नाम रहेगा। 


रविवार, 14 दिसंबर 2014

छापै री खबर कोनी काढ़णी- कविता


बड़ी बड़ी दुकानां माथे
छापा पडिय़ा
बिजळी चिमके ज्यूं
सगळै सैर री गळी गळी
मांय चरचा फैली अर
अैड़ी फैली जाणै लाय लागगी
घण करा दुकानदार
भरी दुपारां ताळा कूंची कर
भाग छूट्या।
आयकर महकमे रा छापा
बड़ा बड़ा सेठ मालिक
जकां रा दिमाग रैवे
सातवें आभै सूं ऊंचा
ब भी भाग नाठ्या।
थोड़ी ताळ होई
अर मोबाइल पर घंटियां बाजण लागी
भाईजी
बड़े भईया
पत्रकार साब
आ छापै आळी खबर काढ़णी कोनी
अ म्हारा बेली दोस्त है
यूं समझ लिया कै छापा पड्या ही कोनी
आपरो आदेस है सा
तो म्हैं कुण हां खबर काढ़ण वाळा
आपरो आदेस सिर माथै
आप म्हाने इण मिस याद तो कर्या
आगले दिन फेरूं
मोबाइल पर घंटियां बाजी
भाईजी थै बिसवास दिलायो हो कै
खबर  काढ़ां कोनी
थे तो खबर काढ़ नाखी।
ना सा आपरौ कहणो मान्यो सा
थै देखलो खबर कोनी काढ़ी
आ तो रपट है सा।

रपट काढ़ी है सा
थै म्हाने खबर काढ़ण सारूं मना कर्या हा।
म्है खबर कोनी काढ़ी
आ तो रपट है सा।
म्है भी पूरो फर्ज निभायौ है सा
थारा बेली दोस्त
जका म्हारा बेली
दोस्त
- करणीदानसिंह राजपूत,
पत्रकार
सूरतगढ़
94143 81356
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शनिवार, 13 दिसंबर 2014

वसुंधरा राज का हल्ला। भाजपा के प्रजातंत्र में पावर का बंटवारा क्यों नहीं?

वसुंधरा है ना? जिला नगर संगठनों की जरूरत नहीं है? कौन बोले?

टिप्पणी- करणीदानसिंह राजपूत

राजस्थान में भाजपा का एक साल । जयपुर में एक साल का भाजपा का सम्मेलन 13 दिसम्बर को हुआ। असल में इसे भाजपा का 1 साल का सम्मेलन नहीं बल्कि वसुंधरा राजे के 1 साल का सम्मेलन कहा जाना चाहिए। इस सम्मेलन में वसुंधरा का गुणगान।  किसी में सच्च बोलने की हिम्मत नहीं। इस 1 साल में वही हुआ जो वसुंधरा ने चाहा।
वसुंधरा राजे की उपलब्धियों की चर्चा और बढ़ चढ़ कर बखान। सारे राजस्थान में वसुंधरा राज का हल्ला।
वसुंधरा की निगाहों में गुड बुक्स में रह सकें ऐसे ही बयान समस्त राजस्थान में जारी हुए हैं और कई दिनों तक आगे जारी रहेंगे।
इस एक साल में जो पाया होगा उसकी चर्चा बढ़ा चढ़ा।
लेकिन जो कीमती खोया या ठुकरा दिया गया उसकी चर्चा वसुंधरा खुद तो करेगी ही नहीं। दूसरों की इतनी हिम्मत नहीं की वे वसुंधरा के कार्यों और नीति पर अपने विचार रख पाएं। इसका कारण यह है कि वसुंधरा ही नहीं उसके चाटुकार तक नाराजगी प्रगट करने में आगे रहेंगे। जो बोले उस अकेले को घेरे में लेकर राजनैतिक हत्या कर डालो।
वसुंधरा राजे ने प्रजातंत्रीय भाजपा के रूप पर अपना वर्चस्व इस कदर बनाया हुआ है कि प्रदेश में पूर्ण रूप से संगठन तक नहीं बना है।
राजस्थान में भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष पद पर कहने भर को अशोक परनामी हैं लेकिन उनको सारा कार्य वसुंधरा से पूछ कर उनकी सहमति लेकर करना पड़ता है।
जिलाध्यक्षों की नियुक्तियां महीनों तक पड़ी रहीं। वसुंधरा राजे की सहमति से उनके नाम घोषित किए गए। जिलाध्यक्षों ने अपनी कार्यकारिणी भेजी तो वह बस्ते में बंद ही पड़ी रही। वसुंधरा के पास समय नहीं। लेकिन सच्च यह है कि पूरे प्रदेश में यह घोषणा हो रही हे दबदबा कायम किया जा रहा है या हो रहा है कि वसुंधरा की सहमति के बिना एक पता भी नहीं खड़क सकता।
जब जिले की कार्यकारिणी ही घोषित नहीं की जाए तब नगर और देहात मंडलों के बारे में तो सोचना ही बेकार है।
कभी किसी चुनाव का बहाना तो कभी किसी चुनाव का बहाना चलाया जाता रहा है।
समस्त तिजोरियों की चाबियां वसुंधरा राजे अपने पास रखना चाहती हैं।
अब फिर पंचायतों के चुनाव के नाम पर संगठन के पदाधिकारियों की घोषणा को रोक कर रखा जाएगा।
कहने को भाजपा में प्रजातंत्र है लेकिन सच्च में राजशाही है और इसे केन्द्रीय कमान ने स्वीकृति दे रखी है।
वसुंधरा चाहे जिसकी घोषणा करे और चाहे जब पदाधिकारी का गला घोट कर मार दे। ना आरोप सुनाए ना उसका जवाब ले। केवल आदेश ही सुनाए। लेकिन इस तरह की तानाशाही से भीतर ही भीतर नुकसान होते हैं उनका मालूम नहीं पड़ता।
भाजपा के कुचले पीडि़त और अपने को चतुर समझने वाले सभी इस खेल को समझ भी रहें हैं,लेकिन बोल नहीं रहे हैं।
कुछ हिम्मत कर जयपुर पहुंच जाते हैं तो उनको मिलने का समय तत्काल नहीं दिया जाता। जयपुर में एक दिन रहना मुश्किल वहां वसुंधरा राजे को मिलने के लिए चार पांच दिन रूकना पड़े तो? कई बड़े नेताओं तक वसुंधरा राजे को मिलने के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ती है।
प्रजातंत्र में भाजपा में सारा कुछ केन्द्रीयकरण क्यों? पावर का बंटवारा क्यों नहीं?

गुरुवार, 11 दिसंबर 2014

मुझे प्यार करो



तुरन्या का नृत्य
झिलमिलाते पंखों
में से आती
ध्वनि तरंगे
जो सुन पाया
मैं
मुझे प्यार करो
मुझे प्यार करो

तितिली सी कोमल
तुरन्या
और मोहक नृत्य
कितने भाव
बदन में
कितने चंचल नयनों में।

वह तो उड़ती
पलक झपक
क्या मैं उसे
पकड़ पाऊंगा?

मैं सोच रहा था
देख रहा था
उसका नृत्य
खोया था उसमें

ना जाने कैसे हाथ खुला
वह आ बैठी
हथेली में
नृत्य करती
इठलाती
और सुरीली आवाज
आई
मुझे प्यार करो
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करणीदानसिंह राजपूत
पत्रकार,
सूरतगढ़
94143 81356



रविवार, 7 दिसंबर 2014

राजे के तानाशाही आदेश से परनामी ने नागपाल का सिर कल्म कर दिया:


अशोक जी नागपाल की भाजपा में वापसी मुश्किल:
नागपाल का एक ही  पुत्र जो सिरियस जिंदगी मौत में था और उस समय टिकटों के निर्णय हो रहे थे।
भाजपा में तानाशाही रूल-पार्टी के संविधान पर नहीं चलाई जा रही पार्टी।
विशेष रिपोर्ट - करणीदानसिंह राजपूत -
भाजपा के जिलाध्यक्ष रहे अशोक नागपाल की नगर परिषद के चुनाव में गलती थी या नहीं थी? अभी इस विषय के बजाय मैं सीधे रूप में ीााजपा के प्रजातंत्र और संगठन विषय को पाठकों के सामने और भाजपा के दिग्गजों से लेकर कार्यकर्ताओं के सामने रख रहा हूं।
भाजपा के दिग्गज नेता पार्टी में पूर्ण प्रजातंत्रीय प्रणाली बतलाते हैं और दावा करते रहे हैं। लेकिन भाजपा नेताओं के इन दावों में कहीं भी सच्चाई नहीं है।
नागपाल का सिर कलम किए जाने में मुख्यमंत्री का आदेश क्यों हुआ? और अभी भी कहा जा रहा है कि नागपाल का स्पष्टीकरण मुख्यमंत्री के सामने रखा जाएगा। नागपाल दोषी हैं या नहीं हैं? इसका फैसला तो संगठन के अध्यक्ष अशोक परनामी को ही करना चाहिए था? फैसला वसुंधरा राजे ने किया और वह पूरा अशोक परनामी ने किया। भाजपा के बड़े नेता आखिर अपनी जुबान इस विषय पर जोरशोर से क्यों नहीं खोलते? राष्ट्रीय नेताओं ने वसुंधरा राजे को निर्णय करने की छूट कैसे और क्यों दे रखी है और राज्य के भाजपा अध्यक्ष का पद बौना क्यों बना रखा है?
प्रजातंत्रीय भाजपा के संविधान को कितना कुचला गया है यह हर कार्यकर्ता जान रहा है।
जिलाध्यक्ष श्रीगंगानगर के पद पर अशोक नागपाल की नियुक्ति की गई लेकिन उनके द्वारा बनाई गई कार्यकारिणी को नागपाल के हटाए जाने तक मंजूरी ही नहीं दी गई। इसके लिए आखिर प्रदेशाध्यक्ष की भी मंजूरी क्यों जरूरी है?
जिलाध्यक्ष बना ही दिया तो उसको कार्यकारिणी बनाने की स्वतंत्रता दी जानी चाहिए थी। हर पद के लिए जयपुर की ओर ताकना और मंजूरी लेना। प्रदेश में ही सारे अधिकार अपने आप में समेटे रखना कौनसा प्रजातंत्र हैं? यह तो राजतंत्र है और उसी के अनुरूप राजाज्ञा से नागपाल का सिर कलम कर दिया गया। संगठन का यह फैसला नहीं। यह फैसला राजशाही का। राजा को किसी ने शिकायत की और राजा ने तुरंत ही आदेश फरमा दिया। अच्दे राजा भी पहले अपने मंत्रि परिषद से विचार विमर्श करके निर्णय किया करते थे। किसी का सिर कलम कर दिया जाने का आदेश देने से पहले यह भी मालूम किया जाना चाहिए था कि गलती या षड्यंत्र हुआ था तो उसमें अन्य कितने लोग शामिल थे? यह भी अन्याय ही है कि एक का सिर कलम और बाकी के विरूद्ध कोई कार्यवाही नहीं।
यहां पर सूरतगढ़ का मसला बिना जोड़े रह नहीं सकता।  नगरपालिका चुनाव में टिकटों के वितरण में जो गड़बड़ी की गई उसमें अकेले नागपाल का हाथ नहीं था। उसमें विधायक राजेन्द्र भादू पर आरोप लगाए जाते रहे हैं। टिकट वितरण में जो अन्य समिति सदस्य थे उनको भी दंडित किया जाना था? भाजपा की कार्यवाही में अभी तक यह तय नहीं हो पाया है कि अन्य लोग पूर्ण रूप से दोष मुक्त हैं। जो कार्यकर्ता पीडि़त हुए हैं वे सभी तो अन्य लोगों को भी दंडित किए जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
अनेक लोगों का सोच है कि नागपाल को पार्टी में वापस ले लिया जाएगा लेकिन वापस जिलाध्यक्ष बनाया जाना मुश्किल होगा।
मेरा सोच यह है कि पार्टी में वापसी भी मुश्किल है। यह सोच इसलिए है कि जिस तानाशाही तरीके को पार्टी में चलाया जा रहा है उसको समझा नहीं जा रहा है। उस तानाशाही तरीके से लिए निर्णय में तानाशाह अपना निर्णय बदल कर अपनी हेठी कभी नहीं दिखलाएगा कि पूर्व में उसने निर्णय गलत कर लिया था।
अभी भी यह बात इसलिए कहना चाह रहा हूं कि नागपाल जी भी उन्हीं लोगों सामने स्पष्टीकर देकर आए हैं जो वसुंधरा राजे से दबे हुए हैं और उनके सामने अपना मुंह तक नहीं खोल सकते। परनामी में इतना साहस नहीं कि वह वसुंधरा राजे के निर्णय को बदलने के लिए उन पर दबाव डाल सके। सूरतगढ़ का मसला भी तो जयपुर में पेश हो गया था फिर उसे वसुंधरा राजे के सामने पेश करने की हिम्मत क्यों नहीं की जा सकी। गुलाबचंद कटारिया तक को अवगत करवाया जा चुका था।

श्रीगंगानगर व सूरतगढ़ में टिकटोंके वितरण बारे में हो रही बैठकों की अवधि में अशोक नागपाल अपने एक ही पुत्र की जिंदगी बचाने को जयपुर दिल्ली भाग रहे थे। बेटा जयपुर बाद में दिल्ली में सीरीयस भर्ती करवाया गया था। उस वक्त निर्णय लेने वाले तो अन्य ही थे। लेकिन उस समय के षडय़ंत्र और गलतियों से जो विवाद पैदा हुए और बढ़ते गए। जिन पर कोई गौर नहीं कर रहा है।
मुख्यमंत्री केवल श्रीगंगानगर पर कार्यवाही करने में आगे रही जहां भाजपा का बोर्ड नहीं बन पाया। सूरतगढ मसलों पर कार्यवाही इसलिए नहीं हो रही क्यों कि यहां भाजपा को बोर्ड बन गया चाहे जुगाड़ से बना है। श्रीगंगानगर में भी जुगाड़ से बोर्ड भाजपा का बन जाता तो वसुंधरा राजे खुश हो जाती। चाहे वह किसी भी तरीके से बन जाता।
एक बात और भी है कि अध्यक्ष मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री का नाम थोपा क्यों जाता हैï? जिसके पक्ष में ज्यादा सदस्य होंगे उसको ही चुने जाने की परंपरा क्यों नहीं निभाई जाती?
भाजपा को अपने संविधान पर चलना चाहिए। मोदी जी ने अपनी सरकार को संविधान के हिसाब से चलाने का कहा था। तब पार्टी को भी अपने संविधान पर चलने के लिए कोई बात क्यों नहीं कही जा रही?
भाजपा के हर नेता को ही नहीं हर कार्यकर्ता तक को संविधान पढ़ लेना चाहिए। सच्च तो यह है कि पार्टी में तानाशाही निर्णयों को लेने के लिए संविधान कहीं किसी कार्यालय में उपलब्ध तक नहीं है और उपलब्ध करवाया भी नहीं जाएगा।
चलते चलते एक बात और कि नागपाल को जिलाध्यक्ष बहुत सोच कर ही बनाया गया था तब हटाने का फैसला उनका जवाब लेकर ही किया जाना चाहिए था। यह बहुत जल्दबाजी में किया गया फैसला है और जल्दबाजी में किए गए फैसले आगे चल कर परेशानियां ही पैदा करते हैं।

बहु रूप में बेटी पधारी:



- करणीदानसिंह राजपूत -

बहु को बेटी मानो के विचार और वक्तव्यों को अनेक मंचों पर सांझा करते हुए गुजरते जीवन की एक परिकल्पना को अपने ही घर परिवार में साकार होते देख हम आनन्दित हैं। हम मतलब मैं करणीदानसिंह राजपूत और पत्नी विनीता सूर्यवंशी। हमारे बड़े पुत्र कुंवर योगेन्द्रप्रतापसिंह बैंस और कुंवरी रीतिका भाटी के विवाह पर यह विचार साकार हुआ।  विचार को  परिवार जनों,मित्र परिवारों,सामाजिक धार्मिक एवं शिक्षण संस्थाओं के जागरूक पदाधिकारियों ने कार्यकर्ताओं ने आशीर्वाद प्रदान कर और दृढ किया। सूरतगढ़ में राष्ट्रीय उच्च मार्ग नं 15 पर सन सिटी रिसोर्ट में यह आशीर्वाद समारोह 4 दिसम्बर 2014 को दिन में हुआ। अनेक राजनैतिक हस्तियों ने इस समारोह में शामिल होकर गौरव बढ़ाया और साक्षी बने इस विचार का। नारी संस्थाओं ने एवं नारी प्रतिनिधियों ने इस विचार को और आगे बढ़ाने का विचार संकल्प लिया।
    बहु को बेटी मानो के विचार समाज में बदलाव लाने को सर्व श्रेष्ठ हैं। अनेक समारोहों में इस सच्च को साकार करने के लिए हम ही नहीं अनेक लोग लगे हुए हैं। सूरतगढ़ की अनेक संस्थाएं इस विचार में लगी हुई हैं।
पत्रकारिता क्षेत्र में करीब 48 साल में इस सच्च को साकार करने को चल रहा था। मुझे पूरी आशा है कि ईश्वर मेरे साथ रहेंगे।

आशीर्वाद समारोह में पधार कर आशीर्वाद प्रदान करने वाले शुभ कामनाएं प्रदान करने वालों के अलावा मोबाईल फोन व पत्रों से शुभ कामनाएं देने वाले सभी लोगों ,संस्थाओं का मैं और मेरा परिवार आभारी हैं। 




आशीर्वाद समारोह स्थल          सन सिटी रिसोर्ट सूरतगढ़

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