बुधवार, 28 सितंबर 2011

करणी की बात: काल चक्र-1 : नवरात्रा में शक्ति का पूजन : नारी अत्याचारों पर चुप क्यों है आराधना करने वाले

करणी की बात: काल चक्र-1
नवरात्रा में शक्ति का पूजन : 
नारी अत्याचारों पर चुप क्यों है आराधना करने वाले

चैत्रीय नवरात्रों पर इस ब्लॉग करणी प्रेस इंडिया पर कार्य शुरू हुआ था और इतने महीनों में बहुत कुछ देने का प्रयास किया गया जो बड़े कहे जाने वाले समाचार पत्रों में नहीं होता या वे जानते हुए भी छापना नहीं चाहते तथा चैनल वाले भी देने से दूर रहते हैं। आज शारदीय नवरात्रा के प्रारंभ में करणी की बात : काल चक्र नाम से नया लेबल शुरू किया जा रहा है। जिसमें उन विषयों पर लिखा जाएगा या टिप्पणियां होंगी जो अब तक छूटे से रहे हैं। वैसे तो एक लेबल सामयिक तीखे तेवर है लेकिन कुछ विषय हैं जो उसमें लिखे नहीं जा सकते। अब इसको पूरा किया जाएगा इस नए लेबल करणी की बात में ।
    आज का दिन इस लेबल को शुरू करने के लिए सर्व श्रेष्ठ है। शक्ति दिवस और मेरी जननी मां का आशीर्वाद इस लेबल को शक्ति प्रदान करेंगे। आम जन का पठनीय सहयोग मिला है। करणी प्रेस इंडिया के पाठक निरंतर बढ़े हैं। देश में और विदेश में भी।
    आज इस लेबल के शुरू में शक्ति आराधना करने वालों से और नारी सशक्तिकरण का नारा लगाने वालों से कहना जरूरी समझता हूं। नारी अत्याचार दुराचार शीलहरण यौनशोषण पर चुपी क्यों है? घर परिवार में मामूली झगड़ों तक को दहेज अत्याचार और घरेलू हिंसा का रूप देकर तो पुलिस थानों और अदालतों में प्रकरण दर्ज करा दिए जाते हैं। लेकिन जब कोई प्रभावशाली व्यक्ति नेता मंत्री या अध्यक्ष आदि नारी पर अत्याचार करने दुराचार करने यौन शोषण करने में सामने आता है तो सब चुपी धारण कर जाते हैं। शक्ति का पूजन अर्चन करने वाले क्या रस्म अदायगी करते हैं? नारी सशक्तिकरण के नारे मंच पर भाषण और संगठन चलाने वाले सब चुप। राजनैतिक दलों  के नारी प्रकोष्ठ और अन्य नारी संगठन जिनमें पदाधिकारी और संचालक पढ़ी लिखी नारियां ही हैं वे भी चुप। राजस्थान का केबिनेट मंत्री महिपाल मदेरणा का प्रकरण हो चाहे सूरतगढ़ के नगरपालिका अध्यक्ष बनवारीलाल का यौन शोषण प्रकरण हो या कोटा जिले के थाने में महिला कांस्टेबल के साथ में सहकर्मियों का बलात्कार हत्या प्रकरण हो। सब में नारी संगठन चुप रहे हैं। राजनैतिक दलों के महिला प्रकोष्ठ भी चुप रहे हैं। इनकी दशा को देख कर तो लगता है कि केवल कागजों में ही ये संगठन और प्रकोष्ठ हैं। इनमें जो संचालक या पदाधिकारी बनाए हुए होते हैं वे भी केवल पदों को सुशोभित करने वाले होते हैं।
    एक बात मानी जा सकती है कि पुरूष संगठन चुप हैं। लेकिन महिला संगठनों को तो आवाज उठानी ही चाहिए। नारी की अस्मिता से रोजाना किसी न किसी जगह खिलवाड़ होता रहे तो वह कैसे रूकेगा? कम से कम नारी संगठनों को पत्रों के जरिए तो अभियान चला कर अपनी सजगता का परिचय देना ही चाहिए। नारी संगठन अपना विरोध दर्ज कराएं और दबाव बनाए तो फिर किसी भी राजनेता और प्रभावशाली की हिम्मत नहीं होगी कि वह नारी से दुराचार करे और अपने पद पर बैठा हुआ अध्यक्षता करे और समारोहों में अतिथि बने। सरकार के कार्य भी चलाए।
    आज इस बात के लिखने का एक उद्देश्य है कि नारी संगठन अपनी शक्ति को पहचाने और अपनी चुपी तोड़ें। कलम उठाएं और उसे देवी शक्ति के त्रिशूल तलवार बना कर शक्ति को जताएं।
करणीदानसिंह राजपूत
94143 81356

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